जल विवाद का मुद्दा गरमा सकती है रिवर लिंकिग परियोजना
दक्षिण भारत जल विवाद का मुद्दा गरमा सकती है रिवर लिंकिग परियोजना
- दक्षिण भारत में नदियों के पानी को साझा करने को लेकर पहले से ही विवाद है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस वर्ष के बजट को पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने रिवर लिंकिन परियोजना की घोषणा की, जिससे दक्षिण भारत में नदियों के पानी को साझा करने का विवादास्पद मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
दक्षिण भारत में रिवर लिंकिन परियोजना गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार और कोवरी नदी से संबंधित है। इस परियोजना का मूल उद्देश्य है कम इस्तेमाल की जाने वाली नदियों के जल को अधिक इस्तेमाल होने वाली नदी के जल में मिलाना। ऐसा न होने पर नदियों का पानी समुद्र में जाकर मिलता है।
दक्षिण भारत में नदियों के पानी को साझा करने को लेकर पहले से ही विवाद है और रिवर लिंकिग परियोजना से यह मुद्दा और जल्द गरमा सकता है।
कावेरी नदी की उत्पत्ति कर्नाटक में हुई है और यह तमिलनाडु में बहती है। पेन्नार नदी का उद्भाव भी कर्नाटक में हुआ है और यह पूर्वी तट की ओर जाती हुई आंध्रप्रदेश से भी गुजरती है। इसी तरह देश की तीसरी सबसे बड़ी नदी गोदावरी महाराष्ट्र से निकलकर तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश होती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।
कृष्णा नदी भी महाराष्ट्र से निकलकर कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश से गुजरती है। कृष्णा नदी के पानी का पूरे रास्ते में इतना अधिक इस्तेमाल होता है कि जब यह बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है, तो इसमें काफी कमि पानी बचा होता है। कोवरी और पेन्नार नदियों की स्थिति भी कमोबेश समान है।
इस समय गोदावरी ही एकमात्र ऐसी नदी है, जिसके पास जल की मात्रा अधिक है और रिवर लिंकिग परियोजना के जरिये इसके जल से अन्य नदियों को भरना है।
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी के अनुसार, छत्तीसगढ़ में गोदावरी के जल को कृष्णा और पेन्ना नदियों के जरिये कावेरी नदी में मिलाया जा सकता है।
कृषि प्रधान राज्य होने और शहरी क्षेत्रों में पीने के पानी की बढ़ती मांग के कारण नदियों के जल पर सही अधिकार का विवाद दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। मौजूदा माहौल में आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ गोदावरी नदी के जल पर अपने दावे को कम करने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने बजट में इस परियोजना की घोषणा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बछावत ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार, गोदावरी का जल जैसे ही तेलुगू राज्य में आता है, तो उसके उस पानी पर उनका ही पूरा अधिकार है।
आंध्रप्रदेश में भी सत्तारूढ़ और विपक्षी दल दोनों ने इस परियोजना कोलकर कोई उत्साह नहीं दिखाया है।
दक्षिण भारत नदियों के पानी के इस्तेमाल को लेकर विवाद हिंसक रूप भी ले चुका है। इन विवादों को देखते हुए इनके निपटारे के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन भी किया गया था। कई साल पहले कावेरी नदी के जल को लेकर सबसे बड़ा विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच रहा था।
ऐसा ही जल विवाद कृष्णा नदी को लेकर कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के बीच और आंध्रप्रदेश से पृथक होकर बने नए राज्य तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश के बीच भी रहा है।
कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी सरकार इस मसले पर सर्तक रुख अपनाए हुए है। यह पार्टी के प्रति वफादारी तथा लोगों की संवेदना के बीच में फंसी है। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई इस मसले पर राज्य के पक्ष को रखने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से बात करने की योजना बना रहे हैं।
दूसरी ओर, जल विवाद पर लोगों की संवेदना को देखते हुए कांग्रेस इस अवसर को भुनाने के लिए राज्य सरकार को आड़े हाथों ले रही है। कांग्रेसके विपक्ष दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एस सिद्दारमैय्या ने तो वित्तमंत्री पर यह भी आरोप लगाया है कि वह तमिलनाडु का पक्ष ले रही हैं, क्योंकि वे वहीं की निवासी हैं। उल्लेखनीय है कि सुश्री सीतारमण कर्नाटक से ही राज्यसभा सदस्य हैं।
आईएएनएस से बात करते हुए जल संबंधी मुद्दों के विशेषज्ञ प्रोफेसर सी नरसिंहप्पा ने कहा कि रिवर लिंकिन परियोजना से कर्नाटक को कोई लाभ नहीं होगा। इससे तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश को लाभ होगा। आंध्रप्रदेश ने गोदावरी नदी को कृष्णा नदी से जोड़ा है। इस परियोजना से सर्वाधिक लाभ तमिलनाडु को होना है।
इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का मसौदा 2020 में तैयार कर लिया गया है लेकिन यह परियोजना तभी लागू होगी जब संबंधित राज्य इस पर अपनी सहमति देंगे।
जल अधिकार को लेकर अभियान चलाने वाले कर्नाटक के कैप्टन राजा राम का मानना है कि कर्नाटक को अपने हितों की रक्षा के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। कर्नाटक को देखना वाहिए कि नदियों को जोड़ने के लिए डीपीआरसे पहले उसे उसका हिस्सा बता दिया जाए।
इस परियोजना का मूल उद्देश्य अधिक जल वाली नदी के पानी को कम पानी वाली नदी से जोड़ना है और इसीलिए कर्नाटक को चुप नहीं रहना चाहिए और यह मांग करनी चाहिए कि उसे उसके हिस्से का पानी मिले, नहीं तो वह इस परियोजना के लिए राजी नहीं होगा।
अब तक मात्र तमिलनाडु ने इस परियोजना पर हामी भरी है और वहां के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन ने केंद्र सरकार से इसे जल्द शुरू करने की मांग की है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मामना है कि तमिलनाडु की लॉबिंग से यह परियोजना अस्तित्व में आई है, लेकिन चूंकि कोई अन्य राज्य इसे लेकर सहमत नहंी हो रहे तो इस परियोजना को शुरू करना इतना आसान नहीं होगा।
इस परियोजना के पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। नेशनल लॉ स्कूल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्षितिज उर्स ने आईएएनएस से कहा कि नहर बनाने से उतना प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन पूरी नदी का प्राकृतिक रुख मोड़ने से आपस के पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इससे नदी के उद्गम स्थल और नदी, जहां जाकर मिलती है, दोनों जगहों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
(आईएएनएस)