जानें क्यों मचा है हलाल पर विवाद, आखिर क्यों लंबे समय से इसे बैन करने की मांग की जा रही है?
हलाल विवाद से सियासत गरम जानें क्यों मचा है हलाल पर विवाद, आखिर क्यों लंबे समय से इसे बैन करने की मांग की जा रही है?
- कर्नाटक सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एंटी-हलाल बिल कर सकती है पेश
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में हलाल का मुद्दा अक्सर चर्चा का विषय बना रहता है लेकिन इस बीच कर्नाटक सरकार हलाल बैन को लेकर बड़ा कदम उठा सकती है। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, कर्नाटक सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एंटी-हलाल बिल पेश कर सकती है। विपक्ष इसे अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहा है। हालांकि कयास लगाया जा रहा है कि आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष सदन में इस बिल के विरोध में हंगामा कर सकता है। वैसे कई देशों में हलाल को बैन करने का मुद्दा उठता रहा है।
हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब जायज होता है। इस्लाम धर्म के अनुसार यदि आप शरीयत के हिसाब से जिबह करते हैं, तभी मीट खाया जा सकता है, वरना नहीं। इस्लामिक जानकार अब्दुल हमीद मोमानी के मुताबिक केवल मीट ही नहीं, बल्कि वह भी हलाल है जो चीज साफ-सुथरी और सही है। अब्दुल हमीद के अनुसार केवल पाक होना काफी नहीं है, बल्कि यह भी ध्यान रखा जाता है जो चीज हम खा रहे हैं उस खाने से कोई नुकसान तो नहीं पहुंच रहा है। उदाहरण के तौर पर इस्लाम में मिट्टी को पाक माना जाता है, लेकिन मिट्टी खाना हराम माना जाता है क्योंकि यह सेहत के लिए खराब होता है।
जानें जिबह की प्रक्रिया
जिबह करते वक्त यह ख्याल रखा जाता है कि जिसे हलाल किया जा रहा है, वह स्वस्थ और होश में होना चाहिए। जिसके बाद ऐसे पशु को उनके गले की नस, ग्रीवा धमनी और श्वासनली को काटकर मारा जाता है। यह पूरी प्रकिया कुछ समय के लिए होता है ताकि पशु के शरीर से पूरा खून निकल सके। इस बीच तस्मिया पढ़ा जाता है। नियम यह कहता है कि एक वक्त में एक ही जानवर की बलि दी जाती है। इसमें एक चीज का और ध्यान दिया जाता है कि उस वक्त दूसरे जानवर उसके जिबह को न देखें।
जानें कब स्टार्ट हुआ हलाल सर्टिफिकेशन?
60 के दशक के बाद जब काफी ज्यादा तादाद में मुस्लिम आबादी युरोपियन देशों में जा रही थी। तब हलाल सर्टिफिकेशन की जरुरत पड़ी ताकि लोगों को इस बारे में जानकारी हो सके कि वह क्या खा रहे हैं। जिसके बाद साल 2000 आते-आते सर्टिफिकेशन का काम मीट तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि दवाओं और कॉस्मेटिक्स तक पर भी ये बताया जानें लगा कि ये हलाल है अथवा नहीं। लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसके पीछे की बड़ी वजह मुस्मिल मार्केट को बनाना था।
हलाल के वक्त दर्द से गुजरते हैं जानवर
जिबाह करते वक्त पशु को धीरे-धीरे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है इस दौरान पशु को काफी दर्द सहना पड़ता है। हालांकि इसके लिए एनिमल संस्था लगातार विरोध करती रही है। पेटा के अनुसार, हलाल के वक्त जानवर खुद को धीरे-धीरे मरता देखता है, जोकि पशु के लिए काफी पीड़ादायक होता है। ब्रिटिश वेटरनरी एसोसिएशन के मुताबिक यदि हलाल करने से पहले जानवर को बेहोश कर दिया जाए तो उसे मरते वक्त दर्द नहीं होगा। इन सब के अलावा फार्म एनिमल वेलफेयर काउंसिल का भी कहना है कि पशु के गले की नस कटना काफी पीड़ादायक होता है इसलिए वो भी मानते है कि जानवर को बेहोश करके हलाल करना चाहिए।
यूरोपियन यूनियन ने कही ये बातें
यूरोपियन संध के सभी देश इस बात को मानते हैं कि हलाल करने से पहले जानवर को बेहोश करना एक बेहतर विकल्प है और वो कई सालों से जानवर को हलाल करने से पहले बेहोश करते हैं। इसके लिए इन सभी देशों में कई तरीकों को अपनाया जाता है, जैसे बिजली के झटके, गैस या स्टन गन के जरिए। साल 1789 से इन सभी देशों में यह नियम लागू है ताकि पशु को बेवजह के दर्द से छुटकारा मिल सके। लेकिन यूरोपिय संघ को छोड़ दें तो ज्यादातर देश इस फैसले को समुदाय विशेष और स्लॉटर हाउस पर छोड़ देते हैं।
हिटलर की शासन में बने ये नियम
साल 1933 में नाजी जर्मनी ने इसके लिए एक नियम बनाया था कि जानवर को बेहोश करके हलाल किया जाए ताकि इस दौरान उसे दर्द ना हो। बता दें कि ये वहीं लोग थे जिन्होंने गैस चैंबर में लाखों लोगों को बंद करके मौत के नींद सुला दिया था। हालांकि ऐसा माना जाता है कि जावनरों को लेकर हिटलर काफी दयालु थे। हिटलर के शासन काल के दौरान कई नियम बनाए गए थे। जैसे कि जानवरों के कान या पूंछ की छंटाई करते वक्त उसे बेहोश करना जरूरी है। यही नहीं उन्होंने हलाल करने के वक्त भी जानवरों को बेहोश करने को आदेश दिया था। इस बारे में आप एनिमल इन द थर्ड रीच किताब को पढ़ सकते हैं।
सर्टिफिकेशन भी जरूरी
हलाल की विधि पूरी करने के बाद अगला स्टेप सर्टिफिकेशन का आता है। ताकि इससे ग्राहक को पता चल सके कि यह हलाल सर्टिफिकेशन के अंतर्गत है। भारत में बाकी खाने के उत्पादों को फूड सेप्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिकी ऑफ इंडिया से सर्टिफिकेट मिलता है, वहीं हलाल की बात करें तो इसके लिए कई अलग- अलग कंपनियां काम कर रही हैं, जैसे हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट एंव हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड इसके मुख्य स्थानों में से एक है।
भारत में हलाल मार्केट का इतने प्रतिशत कारोबार
एड्राइट मार्केट रिसर्च के अनुसार साल 2019 में हलाल मार्केट का कारोबार 5.6 फीसदी रहा था, तब से लेकर अब तक इसमें लगातार तेजी दर्ज की गई है। वहीं साल 2020 में इसका ग्लोबल मार्केट 7 ट्रिलियन डॉलर के पार चला गया था। गौरतलब है कि इसमें सिर्फ मीट ही शामिल नहीं थे बल्कि खाने की सारी चीजों के अलावा, पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल थे। जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि
कोरोना का वैक्सीन बनने के बाद कई मुस्लिम देश इसका विरोध करने लगे थे कि वैक्सीन हलाल नहीं है। यही नहीं इंडोनिशियाई धर्मगुरुओं ने अपील करते हुए कहा था कि वैक्सीन लगाने से बचें। हालांकि बाद में यह मामला शांत हो गया था।
अन्य धर्मों में भी है हलाल से मिलती जुलती प्रक्रिया
धर्म आधारित खानपान केवल मुस्लिम ही नहीं मानते है, बल्कि दूसरे धर्म के लोग भी इसे प्रधानता देते हैं। जैसे यहूदी धर्म में भी लोग कोशर के मीट खाते हैं। कोशर एक हिब्रू शब्द है, जिसका मतलब शुद्ध या खाने लायक होता है। कोशर मीट का भी एक अपना नियम है जिसके तहत जानवर को काटने के वक्त जानवर का सेहतमंद और होश में रहना आवश्यक माना जाता है। यही नहीं इस धर्म कई चीजों को एक साथ खाने की भी मनाही है। उदाहरण के तौर पर आप मीट के साथ किसी तरह के डेयरी प्रोडक्ट एक साथ नहीं खा सकते हैं। जब यूरोपियन यूनियन ने जानवरों को बेहोश करके काटने का नियम लागू किया था तो यहूदी लोगों की तरफ से इसका काफी विरोध किया गया था।
जाने किन-किन देशों में बैन है हलाल सर्टिफिकेशन
साल 2019 में श्रीलंका में आंतकी हमला होने के बाद वहां मौजूद धर्म विशेष को लेकर मेजोरिटी बुद्धिस्ट समुदाय में काफी ज्यादा नाराजगी देखी गई थी। जिसके बाद वहां की तत्कालीन सरकार ने हलाल बैन करने के लिए चर्चा की। लेकिन सरकार हलाल बैन करने की जगह पर उत्पादों पर लेबलिंग को हटा दिया। श्रीलंका में उसी उत्पाद पर हलाल लेबलिंग किए जाते हैं जो निर्यात के लिए जाते हैं।