चीन की सेना के आधुनिकीकरण का भारत पर प्रभाव
नई दिल्ली चीन की सेना के आधुनिकीकरण का भारत पर प्रभाव
- सेना का क्या इस्तेमाल करना चाहती है चीन
डिजिटल डेस्क, नयी दिल्ली। चीन की सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगुवाई में पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में वर्ष 2015 में कई ऐतिहासिक संगठनात्मक बदलाव किये। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य सेना पर शी जिनपिंग की पकड़ को और मजबूत करना तथा सेना में आपसी समन्वय को बढ़ाने के लिये सैन्य क्षेत्रों की जगह देश में थियेटर कमांडर की स्थापना करना था।
इन बदलावों के जरिये पीएलए की पारंपरिक सैन्य क्षमता को दो नयी सेवाओं -- ज्वाइंट लॉजिस्टिक सपोर्ट फोर्सेज (जेएलएसएफ) और स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स (एसएसएफ) का गठन करके मजबूती भी दी गयी। सेना में ये बदलाव सिर्फ संगठनात्मक स्तर पर नहीं किये गये बल्कि उसे अत्याधुनिक करने के प्रयास भी तेज किये गये। चीन की सेना का बजट आवंटन वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पार पहुंच गया, जिससे साफ पता चलता है कि चीन की सरकार अपनी सेना के आधुनिकीकरण पर कितना जोर दे रही है और अपने वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने में वह सेना का क्या इस्तेमाल करना चाहती है।
चीन की सेना में किया गया यह आमूलचूल परिवर्तन भारत पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला है क्योंकि अब पीएलए कोई भ्रष्टाचार से भरपूर भारी-भरकम सेना नहीं रही बल्कि अब यह नयी सैन्य क्षमताओं का नमूना है। पीएलए अब जल, साइबर और प्रौद्योगिकी आधारित खतरों को भांपकर उसका सामने करने के लिये अधिक तैयार है और लगातार इन क्षमताओं में बढ़ोतरी भी कर रही है।
कार्यप्रणाली
इस विषय पर शोध के लिये अंग्रजी और मैंडरिन भाषा में उपलब्ध पीएलए और चीन के रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक दस्तावेजों का खंगाला गया। अमेिरका के एयर यूनिवर्सिर्टी ने चीन की सेना पीएलए के मुख्य सैद्धांतिक दस्तावेज साइंस आफ मिलिट्री स्ट्रैटजी, 2013 को सार्वजनिक किया था।
चीन के विश्लेषकों की टिप्पणियां चीन के नेशनल नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर पोर्टल पर उपलब्ध हैं। इनका अनुवाद करके शोध के लिये इस्तेमाल किया गया। इस शोधपत्र में पीएलए पर अमेरिका का रणनीतिक विश्लेषण भी उद्धृत है। इस शोध के लिये कई भारतीय रणनीतिक विश्लेषकों से भी चर्चा की गयी । ये वो विश्लेषक हैं, जो पीएलए की सैन्य क्षमताओं तथा चीन की सत्तारुढ़ पार्टी तथा सेना के बीच संबंधों का अध्ययन करते हैं।
पृष्ठभूमि
पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चीन (चीन का आधिकारिक नाक) का उदय वर्ष 1949 में हुआ, जो कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक संघर्ष के कारण संभव हो पाया था। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के लिये सेना का महत्व वर्ष 1927 में दिये गये पार्टी के संस्थापक माओ जेदांग के नारे सत्ता बंदूक की नली से निकलती है से समझा जा सकता है। कम्युनिस्ट पार्टी ने अक्सर यह दावा किया है कि वह चीन के नागरिकों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। इसी का हवाला देकर उसने कहा कि अगर सेना पार्टी के अधीन है तो वह देश और चीन के नागरिकों की ही सेवा कर रही है।
इसी गठजोड़ को आधिकारिक रूप देने के लिये कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष को सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का भी अध्यक्ष बनाया गया। सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) सेना संबंधी मामलों का निर्णय लेने वाली सर्वोच्च समिति है। पार्टी की स्थापना के सात दशक बीत गये लेकिन सीसीपी अब भी देश को एकीकृत करने और उस पर शासन करने के लिये पीएलए का भरोसा करती है, इससे पीएलए के महत्व को अच्छी तरह समझा जा सकता है। चाहे साल 1960 में हुई सांस्कृतिक क्रांति हो या 1989 में तियानमेन चौक पर हुआ ऐतिहासिक प्रदर्शन, इनमें पीएलए की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि किस तरह उसने कानून व्यवस्था को दोबारा कायम किया।
पीएलए को मूल रूप से थल सेना के रूप में गठित किया गया था लेकिन धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया और साथ ही इसका आधुनिकरण भी हुआ। शी जिनपिंग की अध्यक्षता में पीएलए सीसीपी के सिद्धांतों में पूरी ढलकर वर्ष 2049 तक विश्वस्तरीय सेना बनने का लक्ष्य रखती है। नवंबर 2012 के 18वें पार्टी कांग्रेस वर्क रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय रक्षा और सशस्त्र सेना के आधुनिकीकरण के लिये माओ जेदांग के सेना के प्रति विचारों का जरूर पालन करना चाहिये। हमें नये ऐतिहासिक दौर में सेना की क्षमता बढ़ाने के लिये डेन शिआओपिंग के विचार, राष्ट्रीय रक्षा एवं सशस्त्र सेना को मजबूती देने के जिंआंग जेमिन के विचार और नयी परिस्थितियों के अनुरूप अपनी सेना को मजबूत करने के सीसीपी के विचारों का अनुसरण करना चाहिये।
इसी को ध्यान में रखते हुये सीसीपी ने पीएलए में सुधारों को सिलसिला शुरू किया। पीएलए के शब्दों में कहें तो इसका लक्ष्य प्रणालीगत, ढांचागत और नीतिगत बाधाओं को तोड़कर सेना का आधुनिकरण करना और युद्ध क्षमता को बेहतर करना था।
पीएलए के सुधारों का आधार
पीएलए दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत है, जिसके पास 20 लाख से अधिक सक्रिय सैनिक हैं। माओ के बाद सत्ता पर काबिज होने वाले डेन शिओओपिंग ने पीएलए को पार्टी के चंगुल से हटाकर देश के नियंत्रण में देने की काफी कोशिश की। उनके बाद भी सत्ता में आने वाले नेताओं ने भी इसी दिशा में प्रयास किया लेकिन वर्ष 2013 में शी जिनपिंग के सत्ता में आने से पूरी बात बदल गयी। शी जिनपिंग पीएलए को पार्टी के रंग में रंगने लगे और उसके आधुनिकीकरण पर जोर देने लगे। शी की इस पहल को आगे ले जाते हुये नवंबर 2015 में पार्टी ने पीएलए में कई बदलावों की घोषणा की। सीसीपी के एजेंडे में इन सुधारों का जिक्र 18वें नेशनल कांग्रेस से ही होना शुरू हो गया था।
पीएलए में पहले भी कई सुधार किये गये लेकिन वर्ष 2015 में किये गये बदलाव ऐतिहासिक साबित हुये। इसने पीएलए के मौजूदा ढांचे को गिराकर एक नयी सेना का निर्माण किया। यह पहली बार था, जब सीएमसी ने इन सुधारों को लागू करने की निर्धारित समयसीमा की घोषणा की और कहा कि वर्ष 2020 तक सेना एकीकृत होगी, वर्ष 2035 तक प्रौद्योगिकी रूप से दक्ष और 2049 तक विश्व स्तर की हो जायेगी।
हालांकि चीन की सेना के लिये विश्वस्तरीय होने के क्या मायने हैं, इसकी आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन पीएलए डेली के सर्वेक्षण से यह बात सामने आती है कि विश्व स्तरीय सेना का मतलब बड़ी सैन्य ताकतों से हैं, जैसे अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन और कुछ हद तक भारत। इसका यह भी मतलब है कि सेना अपने देश के हितों की रक्षा के लिये कहीं भी कभी भी बड़ी आसानी और तीव्रता के साथ सैनिकों की तैनाती कर सकती है।
चीन की सेना में किये गये ये सुधार बाहरी देशों में उसके बढ़ते कदम के अनुसार हैं। बेल्ट रोड पहल के तहत विदेशों में किये जाना वाला निवेश, एंटी पाइरेसी ऑपरेशन में पीएलए की नौसेना की बढ़ती क्षमता, जिबूती में पहले विदेशी सैन्य अड्डे का निर्माण और चीन की सेना में सुधार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इन सुधारों के कारण पीएलए सेना की स्थिति और संयुक्त क्षमता के मामले में दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के बराबर हो गयी है।
(आईएएनएस)