हॉकी इंडिया के अधिकारियों के वेतन संबंधी जानकारी मांगने की अनुमति HC ने रखी बरकरार
दिल्ली हॉकी इंडिया के अधिकारियों के वेतन संबंधी जानकारी मांगने की अनुमति HC ने रखी बरकरार
- अगली सुनवाई 20 जनवरी को होगी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें एक याचिकाकर्ता को हॉकी इंडिया के सदस्यों और कर्मचारियों के वित्तीय रिकॉर्ड और वेतन के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए मांगने की अनुमति दी गई है। यह देखते हुए कि हॉकी इंडिया, जो एक सार्वजनिक प्राधिकरण है, इस तरह की जानकारी देने से कतरा नहीं सकता, न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि यहां तक कि न्यायाधीशों का वेतन भी सभी को पता है।
अदालत ने कहा प्रथम दृष्टया हमें इस पर गौर करना चाहिए कि सीआईसी के आदेश में क्या गलत है। आप एक सार्वजनिक प्राधिकरण हैं, आप कर्मचारियों के वेतन का खुलासा करने से कतरा नहीं सकते, चाहे वह कितना भी अधिक या कम क्यों न हो। जब हमारे वेतन के बारे में सबको पता चल जाता है, तब आपके कर्मचारियों के वेतन के बारे में जानने में क्या समस्या है। आप एक सार्वजनिक प्राधिकरण हैं, जिसे इतनी सहायता, लाभ और धन मिल रहा है।
केंद्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सचिन दत्ता और स्थायी वकील अनिल सोनी ने खेल निकाय का समर्थन करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय खेल संहिता और केंद्र के दिशानिर्देशों के अनुरूप है। इस मामले में हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय देने के अनुरोध पर अदालत ने पांच दिन का समय दिया। आगे की सुनवाई 20 जनवरी को होगी।
खेल के शासी निकाय ने 13 दिसंबर के सीआईसी के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में बुधवार को चुनौती दी थी। सीआईसी के आदेश का विरोध करते हुए हॉकी इंडिया ने कहा कि वित्तीय विवरण, जिसमें विदेशों में बैंक खातों में फंड ट्रांसफर के रिकॉर्ड शामिल हैं, के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगने की अनुमति दी गई है, जो उचित नहीं है।
शीर्ष हॉकी संस्था द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने हॉकी इंडिया के कर्मचारियों के वेतन और पते, लीज पर लिए गए परिसर के मासिक किराए का विवरण, बैंक खातों के हस्ताक्षर, संबंधित रिकॉर्ड के संबंध, हॉकी इंडिया द्वारा विदेशों में बैंक खातों में धन हस्तांतरण और इसकी नकद निकासी की जानकारी आरटीआई के माध्यम से मांगी है।
याचिका में कहा गया है, ऐसा कोई स्पष्ट जनहित नहीं है जो मांगी गई जानकारी की छूट को ओवरराइड कर सके। यहां यह भी उल्लेख करना उचित है कि याचिकाकर्ता के वार्षिक खाते का विवरण उनकी वेबसाइट पर पहले से ही प्रकाशित है और याचिकाकर्ता के खाते का भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा विधिवत ऑडिट किया जाता है।
(आईएएनएस)