समाज के सपनों के साथ संवाद करने का माध्यम हैं फिल्में: प्रो. द्विवेदी

नई दिल्ली समाज के सपनों के साथ संवाद करने का माध्यम हैं फिल्में: प्रो. द्विवेदी

Bhaskar Hindi
Update: 2022-05-05 10:57 GMT
समाज के सपनों के साथ संवाद करने का माध्यम हैं फिल्में: प्रो. द्विवेदी
हाईलाइट
  • फेस्टिवल की थीम 'स्पिरिट ऑफ इंडिया'

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान एवं फिल्म समारोह निदेशालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय "आईआईएमसी फिल्म फेस्टिवल 2022" एवं "राष्ट्रीय लघु फिल्म निर्माण प्रतियोगिता" का शुभारंभ करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि फिल्में समाज के सपनों के साथ संवाद करने वाला माध्यम हैं। उन्होंने कहा कि फिल्‍मों में यह ताकत होती है कि लोग उन्‍हें देखने के लिए अपने घरों से निकलकर थिएटर जाते हैं। इसलिए फिल्‍मों को सराहा जाना भी बहुत आवश्‍यक होता है।  

इस अवसर पर राष्‍ट्रीय नाट्य विद्या‍लय (एनएसडी) के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र गौड़, विख्‍यात रंगकर्मी एवं लेखिका  मालविका जोशी, प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक एवं दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय एवं फिल्म फेस्टिवल की संयोजक प्रो. संगीता प्रणवेन्द्र भी उपस्थित थीं। फेस्टिवल की थीम "स्पिरिट ऑफ इंडिया" रखी गई है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और जल शक्ति मंत्रालय भी इस आयोजन का हिस्सा हैं।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि समाज को संबोधित करना, उसकी आकांक्षाओं और सपनों से जुड़ना और संवाद करना फिल्‍मकार के लिए बेहद जरूरी है। लेखक होना आसान काम है, लेकिन फिल्‍म निर्माण बहुत कठिन कार्य है, क्‍योंकि इसमें एक-एक दृश्‍य, एक-एक संवाद और एक-एक चरित्र पर काम होता है। विद्यार्थियों का उत्‍साहवर्धन करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक ने कहा कि आज मोबाइल फोन की बदौलत कोई भी लघु फिल्‍म बनाकर अपनी बात कह सकता है। फिल्‍में संचार का सबसे प्रभावशाली माध्‍यम हैं। इतना ताकतवर माध्‍यम न तो कोई देखा गया और न आने वाले समय में कोई होगा। 

फिल्‍मों को संरक्षित करना बेहद जरूरी: प्रो. गौड़

राष्‍ट्रीय नाट्य विद्या‍लय (एनएसडी) के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने कहा कि फिल्‍मों को संरक्षित करने और सहेजे जाने की आवश्‍यकता है, क्‍योंकि  ठीक से संरक्षित नहीं करने के कारण 1940 के दशक की कई फिल्‍में आज नष्‍ट हो चुकी हैं। उन्‍होंने कहा कि हमने इन्‍हें संरक्षित करने में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना नहीं सीखा। अनेक लोगों ने बहुत परिश्रम से बेहद रचनात्‍मक और गुणवत्ता के कार्य किए हैं, लेकिन उनके कार्य को संरक्षित करने की कोई नीति या प्रयास दिखाई नहीं देता। 

प्रो. गौड़ ने कहा कि फिल्‍में हमारे इतिहास, परंपरा और संस्‍कृति को संरक्षित करने तथा समकालीन दौर के समाज के प्रत्‍येक पहलू को प्रस्‍तुत करने का माध्‍यम होती हैं। ऐसे में फिल्‍में केवल मनोरंजन का ही माध्‍यम नहीं रह जातीं, बल्कि अकादमिक एवं अनुसंधान गतिविधियों का स्रोत भी बन जाती हैं। उन्‍होंने कहा कि फिल्‍मों के प्रचार-प्रसार की ही नहीं, बल्कि इस सारी सामग्री को डिजिटली आर्काइव करने की जरुरत है, ताकि इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके। 

न्यूनतम संसाधनों के साथ भी बन सकती हैं फिल्‍में: मालविका जोशी

विख्‍यात रंगकर्मी   मालविका जोशी ने कहा कि फिल्‍में अभिव्‍यक्ति का सशक्‍त माध्‍यम हैं। फिल्‍मों के माध्‍यम से जनजीवन के पास पहुंचना संभव है। उन्‍होंने कहा कि आज बहुत ही न्‍यूनतम संसाधनों के साथ भी फिल्‍में बनाई जा सकती हैं। इस अवसर पर कोविड काल के दौरान बनाई गई उनकी दो लघु फिल्‍में "बिना आवाज की ताली" और "शिउली" प्रदर्शित की गईं।

फिल्‍मों को गंभीरता से लेना आवश्यक: अनंत विजय 

समारोह को संबोधित करते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि अभिव्‍यक्ति का सशक्‍त माध्‍यम होने के बावजूद फिल्‍मों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। उन्‍होंने कहा कि फिल्‍मों का प्रभाव इस बात से समझा जा सकता है कि 1950 में वी शांताराम की फिल्‍म "दहेज" के प्रदर्शन के बाद बिहार में "दहेज विरोधी कानून" पारित किया गया। 

फिल्‍मों में काल विभाजन का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि आजादी से पहले बनी फिल्‍मों में भक्तिकाल और आजादी के बाद की फिल्‍मों में समाज सुधार का काल आया। उन्‍होंने कहा कि फिल्मों में सभी तरह के दृष्टिकोणों को दिखाया जाना चाहिए। किसी एक दृष्टिकोण या सोच को दिखाने से सामाजिक असंतुलन पैदा होता है। उन्‍होंने भारतीय जन संचार संस्‍थान में फिल्‍म सोसायटी बनाने का सुझाव भी दिया।  

समारोह के प्रथम दिन सत्‍यजीत रे की फिल्‍म "द इनर आई", कांस फिल्म फेस्टिवल में AngenieuxExcell Lens Promising Cinematographer अवॉर्ड अपने नाम कर चुकी सुप्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर  मधुरा पालित की फिल्म "आतोर", बड़े पैमाने पर सराही जा रही  राजीव प्रकाश की फिल्म "वेद" के अलावा "ड्रामा क्‍वींस", "इन्‍वेस्टिंग लाइफ" और "चारण अत्‍वा" जैसी फिल्में भी प्रदर्शित की गई। इस अवसर पर  मधुरा पालित एवं  राजीव प्रकाश ने विद्यार्थियों के साथ संवाद भी किया।

फेस्टिवल के दूसरे दिन 5 मई को पद्म भूषण से सम्मानित मशहूर फिल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, अभिनेता-निर्माता  आशीष शर्मा और  अर्चना टी. शर्मा एवं सुप्रसिद्ध वन्यजीव फिल्म निर्माताएस. नल्लामुथु समारोह में शामिल होंगे।

Tags:    

Similar News