हलाल उत्पादों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में याचिका हलाल उत्पादों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग

Bhaskar Hindi
Update: 2022-04-22 16:30 GMT
हलाल उत्पादों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग
हाईलाइट
  • उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण अन्य समुदायों के प्रति भेदभावपूर्ण है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर हलाल प्रमाणित (सर्टिफिकेशन) उत्पादों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने और हलाल प्रमाणन (सर्टिफाइड) को वापस लेने की मांग की गई है।

अधिवक्ता विभोर आनंद की याचिका में कहा गया है कि देश के 15 प्रतिशत लोगों के लिए 85 प्रतिशत आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है, ये गैर-मुस्लिमों के मूल अधिकारों का हनन है। एक धर्म निरपेक्ष देश में किसी एक धर्म की मान्यताओं और विश्वास को दूसरे धर्म पर थोपा नहीं जा सकता।

याचिका के अनुसार, वर्तमान याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए देश के 85 प्रतिशत नागरिकों की ओर से याचिकाकर्ता द्वारा दायर की जा रही है, क्योंकि उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। यह देखा जा रहा है कि 15 प्रतिशत आबादी की खातिर बाकी 85 प्रतिशत लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल उत्पादों का उपभोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, अधिकांश व्यवसायों ने हलाल और गैर-हलाल मांस के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को बनाए रखने की लागत को बचाने के लिए अब केवल हलाल मांस परोसना शुरू कर दिया है और जो लोग हलाल मांस के साथ सहज नहीं हैं, या किसी धर्म वाले लोगों के लिए, जहां केवल झटका मीट की इजाजत है, उनके लिए हलाल प्रोडक्ट चुनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है।

याचिका में कहा गया है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद और कुछ अन्य वैसे ही निजी संगठनों द्वारा हलाल प्रमाणीकरण की स्वीकृति का मतलब है कि उपभोक्ता उत्पादों पर आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे मौजूदा सरकारी प्रमाणीकरण पर्याप्त नहीं हैं।

याचिका के अनुसार, उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण अन्य समुदायों के प्रति भेदभावपूर्ण है और यह गैर-अनुयायियों (नॉन-फॉलोअर्स) पर भी एक धार्मिक विश्वास थोपता है।

इसमें कहा गया है कि निजी संगठनों द्वारा हलाल प्रमाणीकरण के एक समुदाय की मांग को अनुमति देने से अन्य समुदायों की धार्मिक आस्था के आधार पर इसी तरह के प्रमाणीकरण की मांग सामने आने की आशंका पैदा होती है।

याचिका में दलील दी गई है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक, जो आबादी का 15 फीसदी है, हलाल मांस खाना चाहता है, बाकी 85 फीसदी लोगों पर इसे थोपा जा रहा है। याचिका के अनुसार, अब, यह हलाल प्रमाणीकरण केवल मांस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे खाद्य पदार्थों, सौंदर्य प्रसाधन, दवाओं, अस्पतालों, हाउसिंग सोसाइटी और मॉल में मिलने वाले विभिन्न उत्पादों तक भी बढ़ा दिया गया है। इन उत्पादों में स्नैक्स, मिठाई, अनाज, तेल, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, आदि शामिल हैं।

याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र सरकार को विभिन्न संगठनों द्वारा जारी किए गए सभी प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने का निर्देश देने और केंद्र को हलाल प्रमाणित सभी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।

(आईएएनएस)

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