तीन महिला जजों के अलावा ये वकील भी बार से सीधे बनेंगे सुप्रीम कोर्ट के जज, कई अहम फैसलों की कर चुके हैं वकालत

ऑर्डर-ऑर्डर तीन महिला जजों के अलावा ये वकील भी बार से सीधे बनेंगे सुप्रीम कोर्ट के जज, कई अहम फैसलों की कर चुके हैं वकालत

Bhaskar Hindi
Update: 2021-08-26 08:37 GMT
तीन महिला जजों के अलावा ये वकील भी बार से सीधे बनेंगे सुप्रीम कोर्ट के जज, कई अहम फैसलों की कर चुके हैं वकालत
हाईलाइट
  • कॉलेजियम ने 9 नामों पर मंजूरी की मुहर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में जज बनाए जाने के लिए प्रस्तावित किए गए 9 नामों की मंजूरी केंद्र सरकार ने दे दी है। इनमें तीन महिला जज भी शामिल हैं। अब इन नामों को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया है। इस पैनल में एक नाम है सीनियर वकील पीएस नरसिम्हा का। जिन्हें कॉलेजियम की सिफारिश पर बार से सीधे शीर्ष अदालत की बेंच में पदोन्नत किया जायेगा। इससे पहले सिर्फ पांच वकीलों को ऐसा मौका मिला है।


कौन हैं पीएस नरसिम्हा?
पीएस नरसिम्हा ऐसे छठे वकील बनेंगे,  जो बार से सीधे पीठ में पदोन्नत होंगे। बार काउंसिल से सर्वोच्च न्यायालय जाना कठिन काम है और बड़े स्तर के वकीलों को कॉलेजियम द्वारा यह पद दिया जाता है। पीएस नरसिम्हा ऐसे ही बड़े वकील हैं। नरसिम्हा को 2014 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। 2018 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी उपलब्धियों में BCCI और रामलला मामले हैं। 

क्या होता है कॉलेजियम सिस्टम?
यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक पैनल जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। इन्हीं सिफारिशों के तहत सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियां की जातीं हैं उसे “कॉलेजियम सिस्टम” कहा जाता है। 

ऐसे होती है जजों की नियुक्ति

कॉलेजियम वकीलों या जजों के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजती है। इसी तरह केंद्र भी अपने कुछ प्रस्तावित नाम कॉलेजियम को भेजती है। केंद्र के पास कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच/आपत्तियों की छानबीन की जाती है और रिपोर्ट वापस कॉलेजियम को भेजी जाती है। सरकार इसमें कुछ नामों की अपनी तरफ से सिफारिश करती हैं। कॉलेजियम, केंद्र द्वारा सिफारिश किए गए नए नामों और कॉलेजियम के नामों पर केंद्र की आपत्तियों पर विचार करके फाइल दोबारा केंद्र के पास भेजती है। यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कॉलेजियम किसी वकील या जज का नाम केंद्र सरकार के पास “दोबारा” भेजती है। तो केंद्र को उस नाम को स्वीकार करना ही पड़ता है। लेकिन “कब तक” स्वीकार करना है, इसकी कोई समय सीमा नही है। राष्ट्रपति के मुहर लगने के बाद लिस्ट फाइनल मानी जाती है।
 

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