दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू की विपक्षी नेताओं से मुलाकात, कहीं 'थर्ड फ्रंट' तो नहीं वजह ?
दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू की विपक्षी नेताओं से मुलाकात, कहीं 'थर्ड फ्रंट' तो नहीं वजह ?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग ठुकराए जाने के बाद मुख्यमंत्री और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) के चीफ एन. चंद्रबाबू नायडू अब अपनी पार्टी की तरफ से लाए गए "अविश्वास प्रस्ताव" पर समर्थन जुटाने की कोशिश में लग गए हैं। इसी को लेकर चंद्रबाबू नायडू अभी दिल्ली में हैं और कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर रहे है। बुधवार को नायडू ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से आंध्र भवन में करीब घंटे भर तक मुलाकात की। माना जा रहा है कि बुधवार को नायडू एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर सकते हैं। बता दें कि आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग ठुकराए जाने के बाद टीडीपी ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया था।
Interacted with NCP President Sri Sharad Pawar @PawarSpeaks, JKNC President Dr Farooq Abdullah, Mr @derekobrienmp, Mr Sudip Bandyopadhyay from TMC Congress Leader Sri @JM_Scindia, regarding no-confidence motion, highlighting the injustice done to AP for it"s "Special Status". pic.twitter.com/FW6olg5oOA
— N Chandrababu Naidu (@ncbn) April 3, 2018
क्या हुई दोनों नेताओं के बीच बात?
आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार सुबह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच एक घंटे से ज्यादा तक बातचीत हुई। हालांकि दोनों नेताओं के बीच क्या बात हुई, इस बात की जानकारी अभी नहीं दी गई है। माना जा रहा है कि नायडू ने केजरीवाल से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर बात की। इस दौरान नायडू ने टीडीपी की तरफ से लाए गए केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर आम आदमी पार्टी का समर्थन भी मांगा। बता दें कि लोकसभा में आम आदमी पार्टी के पास 4 सांसद हैं, जबकि टीडीपी के 16 सांसद हैं।
Met with Sri Jithender Reddy from TRS, Sri Tariq Anwar from National Congress and Smt. @HarsimratBadal_ from Shiromani Akali Dal Party today in New Delhi. pic.twitter.com/fM1o4xPLp1
— N Chandrababu Naidu (@ncbn) April 3, 2018
अब तक कितने नेताओं से मुलाकात?
चंद्रबाबू नायडू मंगलवार को दिल्ली पहुंचे थे। पहले दिन उन्होंने 7 विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की। मंगलवार को नायडू ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के शरद पवार, कांग्रेस के वीरप्पा मोईली और ज्योतिरादित्य सिंधिया, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय, समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव, अकाली दल की हरसिमरत कौर और शिवसेना सांसद संजय राउत से मुलाकात की। इसके साथ ही नायडू ने बीजेपी सांसद हेमा मालिनी और मुरली मनोहर जोशी के साथ भी आंध्र को विशेष राज्य के मुद्दे पर बात की।
आखिर क्यों मोदी से दोस्ती तोड़ रहे हैं नायडू, क्या हैं इसके मायने?
सरकार के खिलाफ 4 पार्टियों के अविश्वास प्रस्ताव
नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ 4 पार्टियों ने अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया है। हालांकि, लगातार हंगामे की वजह से ये प्रस्ताव एक बार भी सदन में पेश नहीं किया जा सका। फिलहाल इस बात की उम्मीद न के बराबर ही है कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बजट सेशन में पेश हो पाए। ऐसा इसलिए क्योंकि 6 अप्रैल को बजट सेशन खत्म हो रहा है, लिहाजा अब अगले सेशन में ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। सरकार के खिलाफ सबसे पहले 16 मार्च को YSR कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था और उसके बाद से तीन पार्टियों ने भी नोटिस दिया, लेकिन हंगामे के कारण लोकसभा की कार्यवाही रोजाना स्थगित कर दी गई। मोदी सरकार के खिलाफ YSR कांग्रेस के अलावा, टीडीपी, कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था।
क्या थर्ड फ्रंट में शामिल होंगे नायडू?
- चंद्रबाबू नायडू के दिल्ली दौरे को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले की तैयारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि नायडू भी थर्ड फ्रंट के साथ आ सकते हैं, हालांकि इस बारे में पार्टी या खुद नायडू की तरफ से कोई बात नहीं कही गई है।
- पिछले दिनों वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दिल्ली का दौरा किया था और कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी। ममता ने हाल ही में चंद्रबाबू नायडू से भी मुलाकात की थी। जिससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि नायडू भी थर्ड फ्रंट की वकालत कर रहे हैं।
- 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के खिलाफ एक थर्ड फ्रंट बनाए जाने की कोशिशें चल रही हैं। जिसमें सभी पार्टियों को शामिल करने की कवायद शुरू हो गई है। दिल्ली दौरे के दौरान ममता बनर्जी ने कहा था कि बीजेपी के साथ वन-टू-वन मुकाबला होना चाहिए। इसका मतलब जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत हो, वो बीजेपी के खिलाफ लड़े और बाकी पार्टियां उसे सपोर्ट करे और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी काफी मजबूत है।
- अगले साल लोकसभा चुनावों के बाद आंध्र में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। नायडू मोदी सरकार से नाता तोड़ चुके हैं और अगला चुनाव अकेले दम पर ही लड़ेंगे। नायडू ने आंध्र को विशेष राज्य का मुद्दा उठाकर पहले ही बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अब थर्ड फ्रंट की वकालत कर रहे बाकी नेता भी नायडू को अपने साथ लाना चाहते हैं, ताकि बीजेपी को दक्षिण में टक्कर दी जा सके। अगर नायडू थर्ड फ्रंट में आते हैं या समर्थन देते हैं, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
- जानकारों की माने तो चंद्रबाबू नायडू की एनडीए से दोस्ती तोड़ने का एक मकसद ये भी है कि वो खुद को मजबूत कर सकें। काफी समय पहले से ही बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बनाए जाने की बात हो रही थी और नायडू ये बात अच्छी तरह समझते थे कि बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनने से नुकसान उन पार्टियों को भी होगा, जो एनडीए में शामिल है। नायडू भी चाहते हैं कि बीजेपी के खिलाफ एक थर्ड फ्रंट बने ताकि उसका फायदा क्षेत्रीय पार्टियों को हो और माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव करीब आते-आते नायडू थर्ड फ्रंट को समर्थन भी दे सकते हैं।
ममता ने की सोनिया से मुलाकात, कहा- बीजेपी के खिलाफ हमारा साथ दे कांग्रेस
क्या खतरे में है मोदी सरकार?
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में 282 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन अब लोकसभा में पार्टी के पास अपने 273 सांसद हैं। इसके साथ ही बीजेपी के सहयोगी दलों के 41 सांसद हैं। ऐसे में विपक्षी पार्टियों के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के लिए मोदी सरकार को सिर्फ 270 सांसदों का साथ चाहिए। अगर बीजेपी के सहयोगी दलों को भी छोड़ दिया जाए तो बीजेपी अकेले अपने दम पर सदन में विश्वास मत हासिल कर लेगी। ऐसे में देखा जाए तो मोदी सरकार को इस अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है।
क्या है अविश्वास प्रस्ताव का गणित?
दरअसल, लोकसभा में जब किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार विश्वास खो चुकी है तो वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाती है। अगर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है या वो पास हो जाता है, तो फिर रूलिंग पार्टी को सदन में विश्वास मत हासिल करना होता है और बताना होता है कि उसके पास सदन में जरूरी सांसद हैं। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी के लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। सदन में TDP के 16 सांसद और YSR कांग्रेस के 9 सांसदों के अलावा कांग्रेस के 48 सांसद, AIADMK के 37 सांसद, तृणमूल कांग्रेस के 34 सांसद, बीजू जनता दल के 20 सांसद, शिवसेना के 18 सांसद, TRS के 11 सांसद, CPI (M) के 9 सांसद और समाजवादी पार्टी के 9 सांसद हैं। अगर ये सभी सांसद मिल जाते हैं तो इस अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाएगी।