आगे क्या?: गर्भपात मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, केवल मां के चाहने पर बंद नहीं करवा सकते अजन्मे बच्चे की धड़कन, जानें क्या है इसके नियम
- सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को लेकर की अहम टिप्पणी
- याचिकाकर्ता के वकील से पूछे तीखे सवाल
- जानिए भारत में क्या है अबॉर्शन कानून?
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (12 अक्टूबर) को 26 सप्ताह से गर्भ में पल रहे बच्चे को समाप्त करने के मामले में अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि गर्भपात के लिए तय कानूनी मियाद पूरी हो चुकी हो और गर्भ में बच्चा स्वस्थ हो, तो केवल परिवार के चाहने से बच्चे की धड़कन बंद कर देना सही नहीं है।
कोर्ट ने गर्भवती विवाहिता महिला को सलाह दी कि अब जब 26 हफ्ते का गर्भ है तो कुछ हफ्ते का इंतजार कर बच्चे को जन्म दें। कोर्ट ने आगे कहा कि सरकार बच्चे का ध्यान रखने को तैयार है। साथ ही यह भी कहा कि हमें गर्भ में पल रहे बच्चों के अधिकारों और माता पिता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यता है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से किया सवाल
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया कि क्या आप चाहते हैं कि एम्स के डॉक्टरों को हम कहें की भ्रूण के दिल की धड़कने बंद कर दें। वकील ने इस सवाल पर नहीं में जवाब दिया तो पीठ ने कहा कि अब जब 26 हफ्ते का गर्भ है तो कुछ हफ्ते का इंतजार कर स्वस्थ बच्चे को जन्म दें।
कोर्ट ने एएसजी ऐश्वर्या भाटी और याचिकाकर्ता के वकील को उससे बात करने की बात कही। अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार(13 अक्टूबर) को होगी।
कोर्ट ने बच्चे के अधिकारों को लेकर याचिकाकर्ता के वकील से कहा "आप माता-पिता के लिए पेश हुए हैं, सरकार के लिए भी वकील यहां पर है, लेकिन क्या उस बच्चे का कोई वकील यहां पर है? क्या हम उसकी धड़कन बंद करने का आदेश दे दें? या फिर उसे शारीरिक या मानसिक अक्षमता के साथ दुनिया में आने दें। हो सकता है कि आपकी परिस्थितियां ऐसी रही हों कि आप गर्भपात का निर्णय देरी से ले पाएं। लेकिन अब जब 26 हफ्ते का गर्भ है। तो कम से कम 2 हफ्ते का इंतजार कर लेना ही बेहतर होगा। इस अवधि के बाद बच्चे के विकृति के साथ पैदा होने की आशंका खत्म हो जाएगी। आप सब आपस में बात करें। हम कल मामले को दोबारा सुनेंगे."
क्या है अबॉर्शन कानून?
बता दें वर्तमान में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमपीटी) अधिनियम के तहत अधिकतम 24 सप्ताह तक ही गर्भपात की अनुमति दी गई है। पहले भारत में कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक गर्भ गिराने की मंजूरी दी जाती थी। लेकिन साल 2021 में कानून में संसोधन कर इसके लिए समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई। वहीं कुछ मामलों 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराने की अनुमति ली जा सकती है।
गर्भ को गिराने की अनुमति 0 से 20 हफ्ते तक उन महिलाओं को है जो मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है। या फिर महिला ना चाहते हुए भी प्रेग्नेंट हो गई है। हालांकि, ऐसे मामलों में रजिस्टर्ड डॉक्टर की लिखित अनुमति आवश्यक होती है।
20 से 24 हफ्ते तक के गर्भ गिराने की अनुमति उन मामलों में दी जाती है जिसमें मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह के खतरा का अनुमान होता है। वहीं इस तरह के मामले में दो डॉक्टरों की लिखित अनुमति आवश्यक होती है।
विशेष कारणों से 24 हफ्ते बाद भी गर्भ गिराने की अनुमति
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमपीटी) अधिनियम के तहत भारत में कुछ मामलों में 24 हफ्ते बाद भी गर्भ समाप्त करने की अनुमति है। अगर महिला किसी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है या फिर रेप के कारण वह प्रेग्नेंट हो गई है तो ऐसे मामलों में 24 हफ्ते बाद भी गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई है। वहीं अगर महिला माइनर गर्भवती हो,विकलांग हो, मानसिक रूप से बीमार हो या इसके अलावा गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई बड़ी मानसिक या शारीरिक समस्या हो ऐसे मामलों में भी गर्भपात के लिए 24 हफ्ते बाद भी अनुमति दी जा सकती है।
क्या है पूरा मामला?
बता दें मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने शादीशुदा महिला के 26 सप्ताह के गर्भ में पल रहे भ्रूण के गर्भपात करने पर रोक लगा दी। एक दिन पहले ही कोर्ट ने एम्स के डॉक्टरों के पैनल को महिला का महिला का चिकित्सकीय गर्भपात कराने ऑर्डर जारी किया गया था। लेकिन 10 अक्टूबर को एम्स के एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने केंद्र सरकार की वकील को ईमेल कर जानकारी दी कि बच्चा गर्भ में सामान्य लग रहा है। डॉक्टर ने आगे बताया कि अगर उसे मां के गर्भ से बाहर निकाला गया, तो उसके जीवित बाहर आने की संभावना है। ऐसे में गर्भपात करने से पहले ही उसकी धड़कन बंद करनी होगी। वहीं डॉक्टर ने आगे यह भी बताया कि अगर बच्चे को अभी बाहर निकाल कर जीवित रखा गया, तो वह मानसिक और शारिरिक रूप से अपाहिज हो सकता है। डॉक्टर की रिपोर्ट आने के बाद केंद्र सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से गर्भपात के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया।
बता दें बुधवार को इस मामले की सुनवाई में जस्टिस हिमा कोहली और बी वी नागरत्ना की बेंच ने अलग-अलग आदेश दिया था। इस वजह से ही आज इस मामले को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जे बी पारडीवला के बेंच ने सुना। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की के तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टर की तरफ से दी गई जानकारी को कोर्ट के सामने रखा। कोर्ट के सामने उन्होंने कहा कि सरकार मां के स्वास्थ का ध्यान रखने के साथ बच्चे को अपने संरक्षण में रखने को तैयार है। जिसके बाद कोर्ट ने गर्भपात को लेकर टिप्पणी की है। मामले की सुनावई 13 मई को दोबारा होगी।