Film Review: ताजे हवा के झोंके का एहसास कराती हैं निर्देशक दानिश जावेद की फ़िल्म "प्यार के दो नाम"
- फ़िल्म समीक्षा: प्यार के दो नाम
- कलाकार: भव्या सचदेवा, अंकिता साहू, कनिका गौतम, अचल टंकवाल
- निर्देशक: दानिश जावेद
- बैनर: जोकुलर एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, रिलायंस एंटरटेनमेंट
- निर्माता: विजय गोयल, दानिश जावेद
- सह निर्माता: शहाब इलाहाबादी
- अवधि: 2 घंटे 23 मिनट
- सेंसर: U/A
- रेटिंग : 4 स्टार्स
इस सप्ताह सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्म "प्यार के दो नाम" प्रेम की नई परिभाषा बताती है और इस वजह से यह आज के युग की एक अनोखी प्रेम कहानी है। इश्क़ सुभालल्लाह जैसे लोकप्रिय धारावाहिक के लेखक दानिश जावेद ने फ़िल्म का लेखन निर्देशन किया हैं भव्या सचदेवा ने फ़िल्म में अपनी नेचुरल एक्टिंग से प्रभावित किया है। वहीं अंकिता साहू ने भी अपने किरदार को बखूबी निभाया है।
फ़िल्म की कहानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आयोजित हो रहे “शांति” पर एक सेमिनार के इर्दगिर्द घूमती है। कबीर और साइमा को सेमिनार में यूनिवर्सिटी के आतिथ्य का ख्याल रखने के लिए चुना जाता है। कबीर और साइमा एक दूसरे से पागलों की तरह प्यार करते हैं।
कहानी में मोड़ उस वक्त आता है जब कायरा सिंह और आर्यन खन्ना इस सेमिनार में भाग लेने आते हैं, दोनों के विश्वविद्यालयों ने उन्हें उनके संबंधित आदर्शों के लिए शांति पुरस्कार जीतने के लिए भेजा है और उनकी जीत या हार यूनिवर्सिटी में उनके करियर का फैसला करेगी। इसलिए पुरस्कार जीतना उन दोनों के लिए “करो या मरो” की स्थिति है। इत्तेफाक से उन्हें एक ही गेस्ट हाउस में विपरीत कमरों में रहने के लिए कहा जाता है। हालांकि आर्यन को पहली नजर में ही कायरा पसंद आने लगती है लेकिन दोनों के बीच एक लड़ाई भी शुरू हो जाती है। कायरा तय करती है कि उसकी जिंदगी में आर्यन के लिए कोई जगह नहीं है और वो आर्यन के सामने अपनी नफरत भी जाहिर करती है और कहती है कि तुम सिर्फ साथ में रहने में यकीन रखते हो जबकि मेरे लिए साथ से ज्यादा कमिटमेंट जरूरी है। “जो मुझे पहली बार छूएगा मैं उसे ही आख़िरी बार भी छूने दूंगी।"
ट्विस्ट तब आता है जब दो प्रेमियों के बीच दो दर्शनों की लड़ाई शुरू होती है। कायरा इस बात पर अड़ी है कि अगर प्यार है तो हमें जिंदगी भर साथ रहना होगा, जबकि आर्यन का मानना है कि जब तक प्यार है, हम साथ रहेंगे, प्यार खत्म हो गया, साथ खत्म हो गया।
अब क्लाइमेक्स जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी। “प्यार के दो नाम” में प्यार के दो विचारों में से कौन जीतता है, प्यार के दो दर्शनों में से कौन जीतता है।
फ़िल्म एक दूजे के लिए या "एक दूजे के साथ" टैगलाइन पर बेस्ड है। इश्क सुभान अल्लाह, सूफियाना प्यार मेरा और सन्यासी मेरा नाम जैसे टीवी शोज़ के लेखक दानिश जावेद ने इस आधुनिक प्रेम कहानी का बेहतरीन निर्देशन किया है। जिसमे उन्होंने नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी के प्रेम दर्शन और उनके विचारों को सामने रखा है।
भव्या सचदेवा और अंकिता साहू की केमिस्ट्री फ़िल्म में असरदार है। दोनों की नोकझोंक हो या लव मेकिंग सीन हों, या गाने हों दोनों ने कमाल का काम किया है वहीं कनिका गौतम और अचल टंकवाल ने भी अपनी अदाकारी की गहरी छाप छोड़ी है। शेष कलाकारों ने भी यादगार अभिनय किया है।
फ़िल्म के संवाद दिल को छू लेने वाले और याद रह जाने वाले हैं। जैसे आर्यन जब कहता है कि खूबसूरत चेहरे और खूबसूरत दृश्य मुझे मजबूर कर देते हैं और मैं वीडियो बनाने लगता हूँ तो प्रभावी नजर आते हैं। "क्या एक प्यार की कीमत इतनी बड़ी हो सकती है कबीर?" हम हमेशा प्यार करेंगे लेकिन शादी नहीं करेंगे
हमें ऐसा समाज मिला है जहां प्यार के लिए कोई जगह नहीं है।", "समाज को बदले की नहीं बदलाव की जरूरत है।"
आर्यन का एक डायलॉग मन को लगता है कि "कभी किसी के प्यार को इस तरह मत आजमाना दिल दुखता है।"
इस तरह के ढेर सारे डायलॉग हैं जो फ़िल्म की सिचुएशन और किरदारो की जरूरत के अनुसार लिखे गए हैं।
फ़िल्म का गीत संगीत अच्छा और मेलोडियस है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की लोकेशन दर्शनीय है।
कुल मिलाकर अच्छे अभिनय , संगीत और संवाद के साथ फ़िल्म प्यार के दो नाम युवा दर्शकों को पसंद आएगी साथ ही एक बड़े समय के अंतराल प्यार के दो नाम एक ऐसी फ़िल्म हैं जो कॉलेज बैकग्राउंड की लाव स्टोरी है जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता हैं । लेखक निर्देशक दानिश जावेद फ़िल्म को एक संपूर्ण मनोरंजक फ़िल्म बनाने में सफल रहे हैं ।