सुप्रीम कोर्ट ने एफटीआईआई को दिया निर्देश, कलर ब्लाइंड छात्रों को भी दें फिल्म मेकिंग कोर्स में प्रवेश
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया सुप्रीम कोर्ट ने एफटीआईआई को दिया निर्देश, कलर ब्लाइंड छात्रों को भी दें फिल्म मेकिंग कोर्स में प्रवेश
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) को निर्देश दिया कि वह कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित उम्मीदवारों को फिल्म मेकिग और एडिटिंग के सभी पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने की अनुमति दे। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने कहा, कानून बदलना बहुत आसान है, लेकिन मानसिकता बदलने में लंबा समय लगता है..।
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि संस्थान को इस मामले में अधिक समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और जोर देकर कहा कि संस्थान में प्रवेश पाने के लिए कलर ब्लाइंडनेस के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, प्रतिवादी एफटीआईआई से उदार विचार प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने की उम्मीद की जाती है। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, हमेशा कुछ निहित स्वार्थ होते हैं.. परिवर्तन कठिन होता है और परिवर्तन के लिए एक पुश (प्रेरणा) की आवश्यकता होती है।
पीठ ने कहा कि उम्मीदवारों की भविष्य की व्यावसायिक संभावनाओं को निर्धारित करना एफटीआईआई का काम नहीं है। इसने कहा कि एक एडिटर (संपादक) का काम कहानी, संवाद, संगीत और प्रदर्शन के साथ रचनात्मक रूप से काम करना है। शीर्ष अदालत का आदेश पटना निवासी आशुतोष कुमार द्वारा बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर आया, जिसने एफटीआईआई में फिल्म संपादन में तीन वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में प्रवेश की मांग करने वाली उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
पिछले साल दिसंबर में शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की एक समिति बनाई थी। समिति में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्म संपादक अक्किनेनी श्रीकर प्रसाद, फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता निर्देशक और छायाकार रवि के चंद्रन, जाने-माने रंगकर्मी स्वप्निल पटोले, पटकथा पर्यवेक्षक शुभा रामचंद्र, एफटीआईआई के विभाग प्रमुख (संपादन) राजशेखरन, नेत्र रोग विशेषज्ञ जिग्नेश तस्वाला और एडवोकेट शोएब आलम शामिल हैं। समिति ने सिफारिश की थी कि कलर ब्लाइंडनेस (वर्णान्धता) वाले व्यक्ति एफटीआईआई में सभी पाठ्यक्रमों के लिए नामांकन करने में सक्षम होने चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिबंध लगाने से रचनात्मक प्रतिभा, कला का विकास बाधित हो सकता है और कहा कि किसी भी लिमिटेशन या सीमा को मदद से दूर किया जा सकता है। बता दें कि कलर ब्लाइंडनेस को हिंदी में वर्णान्धता या रंग-बोध (रंगों की पहचान) की अक्षमता कहते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति सब चीजें साफ-साफ देख पाते हैं और उन्हें रंग भी दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ रंगों में वे विभेद नहीं कर पाते हैं। यह समस्या जन्म से भी हो सकती है और बाद में भी विकसित हो सकती है। सरल भाषा में समझें तो जब आंखें सामान्य रूप से रंगों को नहीं देख पातीं हैं तो उसे कलर ब्लाइंडनेस या कलर डिफिशियंसी कहा जाता है।
मेडिकल जांच के दौरान कलर ब्लाइंड पाए जाने के बाद कुमार की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई थी। संस्थान के अधिकारियों ने नियमों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि कलर ब्लाइंड उम्मीदवार फिल्म संपादन सहित कुछ पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए उपयुक्त नहीं हैं। 2016 में, कुमार ने संस्थान द्वारा उनकी अस्वीकृति को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
(आईएएनएस)