करेली के पास बिखरी है प्राचीन सभ्यता के अवशेष - गुफाओं में मिले अनोखे शैल चित्र
करेली के पास बिखरी है प्राचीन सभ्यता के अवशेष - गुफाओं में मिले अनोखे शैल चित्र
डिजिटल डेस्क करेली। दुनिया विविधताओं से भरी पड़ी है। मानव की पहुंच कहां रही है, इसे लेकर खोज अनवरत जारी है। आज हम जिन्हे दुर्गम स्थान मानते है, वहां भी मानव की पुहंच रही है, इसके कुछ प्रमाण नरसिंहपुर जिले के करेली विकासखंड की ग्राम पंचायत नयाखेडा के ग्राम बिनैकी टोला में देखने मिले है। एक एक गुफा में अनूठे वित्तीय व शैल चित्र मिल है। चित्रों में अस्त्र शस्त्र, युद्ध कौशव व वन्यप्राणीयों को दर्शया गया है यह कंद्रा दुर्गम इलाकों में है यह इतिहासकारों व पुरातत्व विभाग के लिए शोध का विषय हो सकती है।
दैनिक भास्कर टीम ने बिनैकी टोला के पहाड़ी और जंगली क्षेत्र में शक्कर नदी के किनारे खेरे घाट की तलहटी की पहाडिय़ों पर पहुंची। यह कंद्राओं में अनूठे शैल चित्र नजर आये देखकर ही प्रतीत होता है कि यह हजारों वर्ष पुरानी है यह इलाका पहुंच ही दुर्गम है जहां पर ग्राम के वाशिंदे भी नही जाते यहां पहुंचने के लिए दुर्गम जंगली रास्ता और चटटान के किनारे किनारे पैदल मार्ग है गुफा में उकेरी गयी कलाकृतियां रायसेन जिले के भीम बैठका की तरह है जोकि विश्व धरोहर के रुप में संरक्षित है।
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के कराती है दर्शन
इस स्थान पर बनी सैकडों वर्ष प्राचीन यह कलाकृतियां प्राचीन मानव सभ्यता के दर्शन कराती है इनमें पाषण युग के प्रमाण भी मिलते है गुफाओं और पत्थरों पर षैल चित्र के रुप में अनेक आकृतियां उकेरी गयी है इनके विशेष अध्ययन और विश्लेषण से खोज में एक नया अध्याय जुड सकता है।
मानव सभ्यता के जागते सबूत
दुर्गम रास्ते और सतपुडा की पहाडी पर शक्कर नदी किनारे हजारो वर्ष पहले मानव की बस्ती और मानव सभ्यता फल फूल रही थी। यहां पहाडों व गुफा की दीवारों पर सैंकडों बने शैल चित्रों में मानवाकृति, रेखांकित चित्र बने हुए है जिनमें लाल, गेरुआ और सफेद रंग का प्रयोग भी किया गया है। इन आकृतियों में दैनिक क्रियाकलाप, जानवरों का शिकार, युद्ध, सामुहिक नृत्य की आकृतियां भी उकेरी गयी है।
युद्ध शिकार उत्सव की तस्वीरे
यहां बने चित्रों में यु़द्ध कौशल दिखाया गया है जिनमें हाथी, घोडा और पैदल सेना भी दिखायी पड़ती है इसके अलावा युद्ध में भाला, धनुष बाण, तलवार, ढाल, कुल्हाड़ी, फावडा जैसे अस्त्र शस्त्रों का भी प्रयोग करते हुए आकृतियां बनी हुई है। वहीं हिरण, भेड, बारहसिंगा, जंगली सूअर और भैंसे जैस जानवरों का शिकार करते हुए प्रदर्शित आकृतियां बिखरी पडी है।
अफसरों को नही फुरसत
पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं को संजोने के बदले भारी भरकम पगार ले रहे अफसर और कर्मचारी अपने दायित्व को लेकर कितने गंभीर है इसकी बानगी इस मामले मे सामने आयी। जब इस संबंध में भोपाल के पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग के आयुक्त कार्यालय व जबलपुर के रानी दुर्गावती संग्रहालय उपसंचालक से बात करनी चाही तो उन्होंने उनके पीए ने कार्यालय में अधिकारी ना होने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर लिया जबकि 3 दिन से इस संबंध में संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया जा रहा है जानकारी देने के बावजूद जिम्मेदार विभाग इस पर गंभीर दिखाई नहीं पड़ रहा है।