जज पर आरोप लगाने के बाद झुकना पड़ा सरकार को, बिना शर्त मांगी माफी

जज पर आरोप लगाने के बाद झुकना पड़ा सरकार को, बिना शर्त मांगी माफी

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-29 14:41 GMT
जज पर आरोप लगाने के बाद झुकना पड़ा सरकार को, बिना शर्त मांगी माफी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। ध्वनि प्रदूषण और शांत क्षेत्र (साइलेंस जोन) से जुड़े मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक जज पर पक्षपात का आरोप लगाने के बाद अब राज्य सरकार ने बिना शर्त माफी मांग ली है। सरकार, मामले की सुनवाई करने वाली दो सदस्यीय बेंच में शामिल जस्टिस अभय ओक पर लगाए गए आरोप को वापस लेने के लिए भी राजी हो गई है।

महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा, “यह मेरी गलती थी, जिसे मैं स्वीकार करता हूं। सरकार पूरी तरह से जस्टिस ओक पर अपना विश्वास दर्शाती है और उन पर लगाए गए आरोप को वापस लेती है।” वहीं, पश्चाताप विहीन मौखिक माफीनामे से असंतुष्ट जस्टिस ओक व रियाज छागला की बेंच ने कहा कि क्या सरकार को इस बात का एहसास है कि एक जस्टिस पर आरोप लगाकर 155 साल पुरानी प्रतिष्ठित हाईकोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचायी है। इसलिए हम लिखित रूप में वरिष्ठ अधिकारी की ओर से माफीनामा चाहते हैं। हम यह आश्वासन चाहते हैं कि सरकार आगे से एेसा कोई आरोप नहीं लगाएगी। 

सरकार ने न सिर्फ कोर्ट की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया है बल्कि उसकी इस हरकत से कोर्ट की अपूरणीय क्षति हुई है। क्या इस तरह के आरोप महज एक आवेदन पर लगाए जा सकते हैं, जिसे उपसचिव स्तर के एक अधिकारी ने लिखा हो? वह भी सिर्फ इसलिए कि सरकार बेंच के सामने मामले की सुनवाई से छुटकारा पाना चाहती है। सरकार हमें न सिखाए कि निष्पक्षता क्या है। हाईकोर्ट के जज को किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। इस बीच हाईकोर्ट की एक पूर्ण बेंच ने ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों में संशोधन करने के विरोध में आवाज फाउंडेशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी। याचिका में सरकार के संशोधन को चुनौती दी गई है। इसमें सरकार ने कहा है कि फिलहाल राज्य में कोई शांत क्षेत्र नहीं है।

महाधिवक्ता को लगाई फटकार 

बेंच ने महाधिवक्ता कुंभकोणी को कड़ी फटकार लगाई। कहा कि आखिर क्यों मेरे आदेश को चीफ जस्टिस मंजुला चिल्लूर के ध्यान में नहीं लाया गया। सरकार ने जब जस्टिस ओक पर पक्षपात का आरोप लगाया था तो उन्होंने इस मामले से खुद को अलग करने से इनकार कर दिया था और इस संबंध में विधिवत आदेश दिया था, लेकिन जब सरकार ने चीफ जस्टिस से इस मामले को दूसरे जज के समक्ष सुनवाई के लिए अनुरोध किया तो आदेश की जानकारी चीफ जस्टिस को नहीं दी गई। इसके चलते उनको अपना आदेश वापस लेना पड़ा। जस्टिस ओक ने कहा कि क्या मेरे आदेश की जानकारी देना, महाधिवक्ता व सरकारी वकील की जिम्मेदारी नहीं थी। इसके अभाव में चीफ जस्टिस को अपना आदेश वापस लेना पड़ा है। इसलिए सरकार पहले चीफ जस्टिस को अपना माफीनामा दे। हम महाधिवक्ता पद की गरिमा को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। क्योंकि यह एक संवैधानिक पद है।

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