Special Story: 15 महीने बाद खिला 'कमल'! हारे 'नाथ', ऐसे हुई भाजपा की सत्ता में वापसी

Special Story: 15 महीने बाद खिला 'कमल'! हारे 'नाथ', ऐसे हुई भाजपा की सत्ता में वापसी

Bhaskar Hindi
Update: 2020-03-20 12:44 GMT
Special Story: 15 महीने बाद खिला 'कमल'! हारे 'नाथ', ऐसे हुई भाजपा की सत्ता में वापसी
हाईलाइट
  • 15 महीने तक चली कांग्रेस सरकार
  • कमलनाथ ने दिया सीएम पद से इस्तीफा
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया की रही सरकार गिराने में अहम भूमिका

डिजिटल डेस्क, भोपाल। आज (20 मार्च 2020) से ठीक 15 महीने पहले 11 दिसंबर 2018 को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) का परिणाम आया था। 114 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस (Congress) ने गठबंधन कर 15 साल बाद सत्ता में वापसी की। 17 दिसंबर को कमलनाथ (Kamal Nath) ने मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। भाजपा को हराने के लिए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने जान लगा दी। ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर दिग्विजय सिंह तक सभी ने कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए जमकर प्रचार-प्रसार किया।

हार के बाद सामने आई सिंधिया की नाराजगी
विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित किया। कांग्रेस को पूरा यकीन था कि विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा में भी जनता पूरा साथ देगी, लेकिन ऐसा हो न सका। लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में उतरे कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ के लिए छिंदवाड़ा सीट पर जमकर प्रचार किया, लेकिन नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे। छिंदवाड़ा सीट को छोड़कर सभी 28 सीटों पर कांग्रेस को बड़ी हार मिली। 

भोपाल से दिग्विजय सिंह को प्रज्ञा ठाकुर और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके चेले केपी यादव ने हरा दिया। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सिंधिया को उत्तरप्रदेश का भी प्रभारी बनाया, लेकिन वहां भी कुछ नहीं कर सके। मुख्यमंत्री पद न मिलना और लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनका नाम मप्र कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी कई बार आगे आया, लेकिन पार्टी ने अध्यक्ष पद के लिए किसी का भी नाम फाइनल नहीं किया। पार्टी से खफा सिंधिया ने कमलनाथ के काम पर कई बार सवाल उठाए। सिंधिया ने किसानों की कर्जमाफी और तबादलों व पोस्टिंग पर सवाल खड़े किए।

कांग्रेस में दिखने लगी गुटबाजी
सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि दिग्विजय कमलनाथ सरकार को ब्लैकमेल करते हैं। सिंघार ने सिंह ने सरकार में दखल देना का आरोप भी लगाया। यहां तक सिंघार ने पूर्व सीएम की शिकायत पत्र लिखकर सोनिया गांधी से भी कर दी। इस मुद्दे पर भाजपा ने कांग्रेस पर जमकर चुटकी की। यह बात सामने आने लगी कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन है ? यहां तक सिंधिया भी उमंग सिंघार के साथ खड़े नजर आए। 

प्रदेश अध्यक्ष बनाने में देरी
विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के बाद भी कांग्रेस पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर पाई। दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ कई बार कमलनाथ ने अध्यक्ष पद को लेकर मीटिंग की लेकिन किसी भी नाम पर मुहर नहीं लगी। 

भाजपा विधायक आए साथ
कांग्रेस में चल रही अंतर्कलह और सिंधिया के बयान का भाजपा ने फायदा उठाने का प्रयास किया। भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने सरकार गिराने पर बयान दिया। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने यह तक कहा दिया था कि ऊपर से एक बार ऑर्डर आ जाएं, सरकार एक दिन में गिर जाएगी। हालांकि नया मोड़ तब आया जब कमलनाथ सरकार द्वारा विधानसभा में पेश किए क्रिमिनल लॉ संशोधन बिल पर भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने क्रॉस वोटिंग कर कांग्रेस को वोट कर दिया। कमलनाथ को विश्वास हो गया कि उनकी सरकार सुरक्षित और मजबूत है। लेकिन सिंधिया के मन में कुछ ओर ही चल रहा था। 

सिंधिया का भाजपा के तरफ झुकाव
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोदी सरकार के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन देकर सबको हैरान कर दिया। ट्विटर पर अपना बॉयो बदलकर खुद को एक खेल प्रेमी बताया। पार्टी लाइन से हटकर सिंधिया मोदी सरकार के फैसलों पर उनके साथ खड़े नजर आए। इधर राज्यसभा चुनाव के नाम में मध्य प्रदेश से प्रियंका गांधी का नाम आगे आने लगा। यहां तक कमलनाथ सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने ट्वीट कर प्रियंका गांधी वाड्रा को मप्र से राज्यसभा भेजने की वकालत की। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम राज्यसभा के लिए आगे नहीं आया। 

कांग्रेस में बगावत
इधर तीन मार्च को दिग्विजय सिंह ने नरोत्तम मिश्रा और शिवराज सिंह चौहान पर कांग्रेस विधायकों को करोड़ों रुपए देने का आरोप लगाया। 5 मार्च को कांग्रेस के 11 विधायक गुड़गांव के आईटीसी मराठा होटल पहुंचे। जिसमें से 6 विधायक भोपाल वापस लौट आए। इस दौरान एक विधायक के गनमैन के कारण भाजपा का ऑपरेशन लोटस फेल हो गया। 6 मार्च को दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ से मुलाकात की। इसके बाद कमलनाथ ने सभी विधायकों को भोपाल बुलाया और उन्हें राजधानी न छोड़ने को कहा। उधर दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के आवास पर भाजपा सत्ता वापसी को लेकर खिचड़ी पका रही थी।

इस बीच पीसी शर्मा ने प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार बजट सत्र के बाद होने की बात कही, लेकिन कांग्रेस के बागी और निर्दलीय विधायक होली के बाद और बजट सत्र से पहले मंत्रिमंडल का विस्तार चाहते थे। इस सब के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोई बयान नहीं दिया। वहीं सिंधिया गुट के विधायक महेंद्र सिंह सिसोदिया ने बड़ा बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि अगर सिंधिया जी का अनादर हुआ तो सरकार पर संकट आ सकता है। 8 मार्च को बेंगलुरू में रुके कांग्रेस विधायक बिसाहूलाल सिंह भोपाल लौट आए। उन्होंने कमलनाथ से मुलाकात की और कहा कि वो तीर्थ पर गए थे। उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया है। बसपा विधायक रामबाई दिल्ली चली गई। उन्होंने इसकी वजह बेटी की तबीयत खराब होना बताया।

कमलनाथ ने सोनिया गांधी से की मुलाकात 
9 मार्च को कमलनाथ ने कांग्रेस अंतरिम कांग्रेस सोनिया गांधी से मुलाकात की। कमलनाथ ने कहा कि पार्टी में कोई कलह नहीं है। वहीं दोपहर को खबर आई कि सिंधिया खेमे के विधायक और मंत्री गायब हो गए है, जिनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है। 10 मार्च होली के दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वहीं 22 विधायकों ने अपना त्याग पत्र राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष को भेजा। इसके पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अमित शाह से मिलने पहुंचे और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। सिंधिया के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी ने दिल्ली में अपने आवास पर बैठक बुलाई। भोपाल में सीएम आवास पर कई कांग्रेस नेता कमलनाथ से मिलने पहुंचे। शाम 6 बजे कमलनाथ के आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई जिसमें 94 विधायकों शामिल हुए। इधर शाम को भाजपा ने अपने विधायकों को भोपाल के बाहर भेज दिया। इसके बाद कांग्रेस ने भी अपने विधायकों को जयपुर रवाना कर दिया। 11 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए। उन्हें बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। 12 मार्च को जीतू पटवारी बेंगलुरु बागी विधायकों से मिलने पहुंचे। वहां पुलिस ने उन्हें और लाखन सिंह को हिरासत में ले लिया। वहीं सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही ईओडब्ल्यू ने जमीन घोटाले की जांच शुरू कर दी। 

सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफे मंजूर
14 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने 6 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर दिए। इसके बाद राज्यपाल लालजी टंडन ने 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दे दिए। 15 मार्च को कांग्रेस के सभी विधायक जयपुर से भोपाल लौट आए। देर रात करीब 1 बजे बीजेपी के विधायक भी गुरुग्राम से वापस आ गए। 16 मार्च को राज्यपाल ने विधानसभा में अभिभाषण शुरू किया, लेकिन 15 मिनट बाद ही अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोविड-19 का हवाला देते हुए 26 मार्च तक सदन स्थगित कर दिया। शाम को राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ को लेटर लिखा। उन्होंने 24 घंटे का समय देते हुए 17 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने को कहा। इधर पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और भाजपा नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जल्द फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की। 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और बागी विधायक की प्रेस कॉन्फ्रेंस
17 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। अदालत ने फ्लोर टेस्ट कराने की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष और कमलनाथ को नोटिस जारी कर जवाब देने के निर्देश दिए। इधर कमलनाथ का राज्यपाल लालजी टंडन को लिखा पत्र सामने आया। जिसमें उन्होंने लिखा कि फ्लोर टेस्ट नहीं कराने पर यह माना जाएगा कि हमारी सरकार के पास बहुमत नहीं है। इससे पहले शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार के अल्पमत में होने की बात कहीं। वहीं 16 बागी विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात रखी। उन्होंने कमलनाथ सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया है। यहां तक की इमरती देवी ने कहा दिया कि सिंधिया हमारे नेता है। उनके लिए मैं कुएं में कूदने को तैयार हूं। 

दिग्विजय सिंह का धरना और कमलनाथ का इस्तीफा
18 मार्च को दिग्विजय सिंह बागी विधायकों से मिलने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें मिलने से रोक दिया। नाराज दिग्विजय वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस ने उन्हें करीब 1 घंटे हिरासत में रखा। जिसके बाद वह भूख हड़ताल पर बैठ गए। विधायकों से मुलाकात के लिए उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका तक लगाई जिसे खारिज कर दिया गया। 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 20 मार्च को शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया। 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट से पहले कमलनाथ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी और उन्हें अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। 

 

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