सरकारी ब्लड बैंकों की ओर रुझान कम

नागपुर सरकारी ब्लड बैंकों की ओर रुझान कम

Bhaskar Hindi
Update: 2023-03-27 13:15 GMT
सरकारी ब्लड बैंकों की ओर रुझान कम

डिजिटल डेस्क, नागपुर.  निजी ब्लड बैंकों की अपेक्षा सरकारी ब्लड बैंकों की ओर रक्तदाताओं का रुझान कम हो रहा है, जबकि निजी ब्लड बैंकों में एक यूनिट रक्त के लिए 1800 से 2000 रुपए चुकाने पड़ते हैं और सरकारी ब्लड बैंकों में मुफ्त में रक्त मिलता है। इसके पीछे बताया जा रहा है कि सरकारी ब्लड बैंकों में रक्तदाताओं को रिफ्रेशमेंट के लिए सिर्फ 25 रुपए मिलते हैं और निजी ब्लड बैंकों में रक्तदाताओं को उपहार में अलग-अलग सामग्री दी जाती है।

निजी में दस गुना अधिक रक्त संकलन : जिले में चार सरकारी अस्पतालों में प्रमुख ब्लड बैंक हैं। इनमें शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल), सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो), डागा शासकीय स्मृति महिला अस्पताल का समावेश है। यहां हर महीने औसतन 2250 यूनिट रक्तदान होता है। इसके अलावा शिविरों के माध्यम से महीनाभर में 2500 यूनिट रक्त संकलन होता है। कुल 4750 यूनिट रक्त संग्रहण होता है। इन रक्तदाताओं को रिफ्रेशमेंट के लिए 25 रुपए के हिसाब से 1.18 लाख रुपए से अधिक हर महीने खर्च किया जाता है। दूसरी तरफ जिले में 9 निजी ब्लड बैंक हैं। यहां प्रतिमाह सरकारी ब्लड बैंक से दस गुना रक्त संकलन होता है। यानी 47 हजार से अधिक यूनिट रक्त संकलन होता है। सरकारी ब्लड बैंकाें में मरीजों को मुफ्त में रक्त मिलता है, वहीं निजी ब्लड बैंकों में कम से कम 1800 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से भुगतान करना पड़ता है।

उपहार करता है आकर्षित : निजी ब्लड बैंक में रक्तदाताओं को विविध उपहार दिए जाते हैं। चाय-नाश्ता की भी व्यवस्था होती है, जबकि सरकारी में आओ रक्तदान करो और जाओ की तर्ज पर काम होता है। जो स्वेच्छा से आया, उसे रक्तदान के बाद 25 रुपए देकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। हास्यास्पद यह है कि अब नाश्ता भी 30 रुपए प्रति प्लेट मिलता है, ऊपर से चाय के 6 रुपए अलग से देने पड़ते हैं। इसका असर यह हो रहा है कि सरकारी में रक्तदाताओं की संख्या कम हो रही है। 

पहले मिलते थे 10 रुपए : सरकारी अस्पताओं में पहले 10 रुपए रिफ्रेशमेंट के रूप में मिलते थे, जिसे वर्ष 2020 से बंद कर दिया गया। ऐसे में सरकारी अस्पताल प्रशासन ने स्वप्रेरित होकर रक्तदाताओं को रिफ्रेशमेंट के लिए 25 रुपए या इतने रुपए का नाश्ता-चाय देने का निर्णय लिया है। यह राशि अस्पताल व्यवस्थापन से खर्च की जाती है। सरकारी में रक्तदान शिविर आयोजित करने की मंशा किसी ने जताई, तो कागजी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है। आयोजक ऐसी समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं, जबकि निजी ब्लड बैंकों को केवल फोन करने पर सारी प्रक्रियाएं पूरी कर तरह-तरह की सुविधाएं दी जाती हैं।

कागजी प्रक्रिया बनी उलझन

नरेंद्र सतीजा, संस्थापक- कलामंच (रक्तदान-देहदान) के मुताबिक वर्तमान स्थिति व जरूरत को देखते हुए सरकार खुद सरकारी ब्लड बैंकों में सुधार के लिए प्रयासरत नहीं है। रक्तदाताओं या शिविर आयोजकों के लिए कोई सुविधाएं या संसाधन नहीं हैं। कागजी प्रक्रिया में उलझाने की कोशिश की जाती है। सरकार को रक्तदान के लिए अध्ययन समिति बनाकर निजी ब्लड बैंकों की तर्ज पर सुधार करना चाहिए।

सरकारी में रक्तदान जरूरी

पुरुषोत्तम भोसले, सेवा फाउंडेशन मेडिकल के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में गरीब वर्ग के मरीज आते हैं। यहां उन्हें मुफ्त में रक्त मिलता है, इसलिए रक्तदाताओं को लालच के चक्कर में न पड़कर सरकारी में ही रक्तदान करना चाहिए। सरकारी ब्लड बैंकों की मदद से शिविरों का आयोजन कर रक्त संकलन करना जरूरी है। किसी को रक्तदान के लिए कोई परेशानी हो ताे हमसे संपर्क कर सकता है।
 

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