बाजना के पाटन गांव में मिट्टी खदान धसकने से बच्ची दबी,इलाज के दौरान हुई मौत
शव ले जाने नहीं मिला शव वाहन बाजना के पाटन गांव में मिट्टी खदान धसकने से बच्ची दबी,इलाज के दौरान हुई मौत
डिजिटल डेस्क,छतरपुर। बाजना थानांतर्गत पाटन गांव में मिट्टी की खदान धसकने से चार साल की बच्ची दब गई। उसे घायल अवस्था में बिजावर के सरकारी अस्पताल लेकर आए, लेकिन हालत नाजुक होने पर जिला अस्पताल रैफर कर दिया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। परिजनों को शव घर ले जाने शव वाहन उपलब्ध नहीं हुआ। अंतत: बस में रखकर शव ले जाना पड़ा।
जानकारी के अनुसार रजपुरा गांव में रहने वाले रामेश्वर अहिरवार की बेटी प्रीति डेढ़ साल से अपने मामा किशोरी के यहां रह रही थी। मामा पाटन गांव में रहते हैं। बुधवार सुबह प्रीति और पुच्ची सहित 3-4 बच्चे खदान के पास खेल रहे थे, तभी अचानक खदान धसकना शुरू हो गई। प्रीति कुछ समझ नहीं पाई और देखते-देखते ही मिट्टी के ढेर में दब गई। चिल्लाने पर मामा दौड़कर उसके पास पहुंचे और उसे घायल अवस्था में बाहर निकाला। परिजन उसे बिजावर के स्वास्थ्य केंद्र लेकर आए, जहां उसकी हालत गंभीर होने पर जिला अस्पताल रैफर कर दिया, जहां डॉक्टरों ने चैकअप के बाद उसे भर्ती कर लिया। उसका इलाज चल रहा था, तभी अचानक दम तोड़ दिया।
मिट्टी ढहते ही बाकी बच्चे भाग गए
परिजनों के मुताबिक प्रीति के साथ कल्लो अहिरवार (5) और पुच्ची अहिरवार (4) मिट्टी के ढेर के पास खेल रहे थे, तभी अचानक मिट्टी का ढेर ढह गया। प्रीति उसमें दब गई और अन्य दो बच्चियां भाग गईं। प्रीति का पैर दो जगह से टूट गया था।
ड्रिप चढ़ने के पहले ही चली गई जान
बच्ची को इमरजेंसी वार्ड में दिखाया। डॉक्टर ने तीसरी मंजिल पर ऑपरेशन कक्ष में भेज दिया। टांके लगाए गए, बोतल चढ़ना थी, तभी उसकी मौत हो गई। यह सुनते ही परिजनों की सांसे थम गईं और रोना शुरू कर दिया। उन्हें भरोसा नहीं हो रहा था कि प्रीति दुनिया में नहीं रही, क्योंकि बिजावर से उसकी स्थिति ठीक थी और बातचीत कर रही थी। प्रीति दो बहनों में सबसे छोटी थी। एक भाई है। पिता के शराब पीने के कारण परिजनों ने उसे मामा के घर भेज दिया था।
कम नहीं हुईं मुसीबतें : जब शव वाहन नहीं मिला, तो पहले बस से चुपचाप, फिर टैक्सी से ले गए शव
अस्पताल में घंटों इंतजार के बाद परेशान किशोरी को शव वाहन नहीं मिल सका। इसके बाद वह भांजी के शव को पैदल लेकर जाने लगा, तो उसे किसी ने नहीं रोका। वह शव लेकर छत्रसाल चौराहे के पास लेकर भटकता रहा। इसके बाद बिजावर नाका से बिजावर के लिए बस पर चढ़ा। बस वालों को बच्ची बीमार होने की बात मजबूरी में कहना पड़ी। बिजावर से ऑटो से शव गांव ले गए। इसमें गरीब मामा के दो हजार खर्च हो गए। ये पैसों का इंतजाम एक और रिश्तेदार ने किया। किशोरी भांजी से इतना प्यार करता था कि पीएम भी नहीं कराया।
समाधान पर ध्यान देना जरूरी : शव वाहनों के लिए भी सेंट्रलाइज्ड कॉल सेंटर बने, तब समस्या से निजात संभव
जिले के अस्पतालों में शव वाहन न मिलने के कारण गरीबों को शव ले जाने में लगातार परेशानी हो रही है। सरकार को 108 या डायल 100 की तर्ज पर शव वाहन के लिए भी सेंट्रलाइज्ड कॉल सेंटर बनाने पर गंभीरता से विचार करना होगा, वरना गरीब अपने परिजनों के शव को अस्पताल से ले जाने के लिए इसी तरह भटकते रहेंगे।