गोटमार मेला: बरसेंगे परंपरा के पत्थर
छिंदवाड़ा गोटमार मेला: बरसेंगे परंपरा के पत्थर
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा/पांढुर्ना, उमेश पाल। विश्वभर में प्रसिद्ध गोटमार मेला 27 अगस्त को पांढुर्ना में लगेगा। जाम नदी पर पांढुर्ना और सावरगांव के संगम पर वर्षों पुरानी गोटमार खेलने की परंपरा को निभाते हुए एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए जाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन मनाए जाने वाले गोटमार मेले पर भले ही खून की धारा बहेगी, पर इस दर्द को भूलकर परंपरा निभाने का जोश व उमंग कम नहीं होगी। मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर हर कोई गोटमार मेले में शामिल होगा। गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी पांढुर्ना और सावरगांव से एक-दूसरे पर पत्थरों की बरसात करेंगे।
चंडी माता मंदिर में लगेगा भक्तों का मेला
गोटमार मेले के अवसर पर आराध्य देवी मां चंडिका के मंदिर में भक्तों का मेला लगेगा। मेले में गोटमार खेलने वाले हर खिलाड़ी और मेले में शामिल होने वाला हर व्यक्ति मां चंडिका को नमन करके मेले में पहुंचेगा। गोटमार मेले के समापन पर झंडेरूपी पलाश के पेड़ को खिलाड़ी मां चंडिका के मंदिर में अर्पित करेंगे।
सताएगा अपनों को खोने का गम
भले ही गोटमार मेला परंपरा की भांति मनाया जाएगा, पर गोटमार मेले के दिन कई परिवारों को अपनों के खोने का गम भी खूब सताएगा। गोटमार मेले के आते ही क्षेत्र के कई परिवारों के सालों पुराने दर्द उभर आते हंै। क्योंकि कई परिवारों ने गोटमार के दौरान अपनों को खोया है। गोटमार के दौरान अब तक किसी का पति, तो किसी का बेटा, किसी का पिता और भाई अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं कई खिलाडिय़ों को शरीर पर मिले जख्म गोटमार के दिन हरे हो जाते हैं।
एक ही परिवार के तीन सदस्यों ने गंवाई जान
गोटमार में वर्ष 1955 में महादेव सांबारे, 1978 में देवराव सकरडे, 1979 में लक्ष्मण तायवाड़े, 1987 में कोठीराम सांबारे, 1989 में विठ्ठल तायवाड़े, योगीराज चौरे, गोपाल चन्ने व सुधाकर हापसे, 2004 में रवि गायकी, 2005 जनार्दन सांबारे, 2008 में गजानन घुघुसकर और 2011 में देवानंद वघाले ने जान गंवाई है। जिसमें महादेव सांबारे, कोठीराम सांबारे और जनार्दन सांबारे एक ही परिवार के हैं। इनके अलावा हर साल खेल में पांच सौ से अधिक खिलाड़ी लहुलूहान होकर घायल होते हैं।
प्रशासन के हर प्रयास अब तक असफल
गोटमार की परंपरा सालों से निभाई जा रही है। गोटमार के दौरान एक-दूसरे पर पत्थर बरसाकर लहुलूहान करने के इस खेल को रोकने प्रशासन ने कई प्रयास किए, पर अब तक हुए हर प्रयास असफल रहे हैं। पत्थरों की बरसात रोकने रबर बॉल से खेल आयोजन का प्रयास हुआ, पर यह प्रयास चंद मिनटों में सिफर हो गया। बीते चार सालों से हर बार गोटमार रोकने भरसक प्रयास किए गए, मानवाधिकार आयोग तक बात पहुंची, गोटमार मेले की गतिविधि को रोकने प्रशासन सख्ती से मुस्तैद रहा, पर गोटमार मेले की परंपरा को रोकने के प्रयास असफल रहे।
मानव अधिकार आयोग ने पत्थरबाजी रोकने का किया प्रयास
वर्ष 2009 में मानव अधिकार आयोग ने गोटमार मेले में होने वाली पत्थरबाजी पर रोक लगाने की भरसक कोशिश कं। तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव व एसपी मनमीतसिंह नारंग ने चप्पे-चप्पे पर पुलिस फोर्स तैनात कर पत्थरबाजी बंद कराते हुए मेले के मुख्य झंडे को चंडी माता मंदिर ला दिया। जिससे लोगों में आक्रोश पनप गया और जगह-जगह तोडफ़ोड़ की स्थिति बनी। प्रशासन के इस रवैए से नाराज लोगों ने खेलस्थल पहुंचकर पत्थरबाजी की।
रबर गेंद का अपनाया था विकल्प
गोटमार के दौरान घायलों की संख्या कम करने और मेले का स्वरूप बरकरार रखने के लिए प्रशासन ने साल 2001 में रबर गेंद से खेल खेलने का आग्रह किया। खेल स्थल से पत्थर हटाकर रबर गेंद बिछा दी गई। खेल की शुरूआत में खिलाडिय़ों ने एक-दूसरे पर रबर गेंदे बरसाई, पर दोपहर के बाद मेला अपने शबाब पर आ गया और खिलाडिय़ों ने नदी के पत्थरों को निकाल-निकालकर गोटमार खेल खेला।
गोली दागने तक की बन गई स्थिति
वर्ष 1978 और 1987 के दौरान गोटमार खेल स्थल से खिलाडिय़ों को हटाने के लिए पुलिस प्रशासन को गोली चलानी पड़ी थी। पत्थरबाजी बंद करने के लिए प्रशासन ने खिलाडिय़ों से आग्रह किया, पर खिलाडिय़ों के नहीं मानने पर प्रशासन ने पहले लाठीचार्ज कर खिलाडिय़ों हटाने का प्रयास किया। नहीं मानने पर पहले आंसू गैस के गोले दागे और बाद में बंदूक से गोली चलाने की भी नौबत आ गई।
मेले से जुड़ी हंै किवदंतियां
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदंतियां और कहानियां जुड़ी हंै।
प्रेमीयुगल की कहानी...
किवदंती के अनुसार पांढुर्ना के युवक व सावरगांव की युवती के बीच प्रेमसंबंध था। एक दिन प्रेमी युवक ने सावरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा। जैसे ही दोनों जाम नदी के बीच पहुंचे तो सावरगांव के लोगों को खबर लगी, प्रेमीयुगल को रोकने पत्थर बरसाए गए, वहीं विरोध में पांढुर्ना के लोगों ने भी पत्थर बरसाए। जिसमें प्रेमीयुगल की मौत हो गई। किवदंती को गोटमार मेला आयोजन से जोड़ा जाता है।
युद्धभ्यास की कहानी...
कहानी प्रचलित है कि जाम नदी के किनारे पांढुर्ना-सावरगांव वाले क्षेत्र में भोंसला राजा की सैन्य टुकडिय़ां रहा करती थी। रोजाना युद्ध अभ्यास के लिए सैनिक नदी के बीचोंबीच एक झंडा लगाकर पत्थरबाजी का मुकाबला करते थे। यह सैन्य युद्ध अभ्यास लंबे समय तक चलता रहा। जिसके बाद यह परंपरा बन गई। जो आज भी गोटमार के रूप में निभाई जा रही है।
साल दर साल बदलता स्वरूप
गोटमार मेला भले ही पारंपरिक है और परंपरा की भांति कई वर्षों से निभाया जा रहा है, पर इस परंपरा पर विसंगतियां हावी होने लगी हैं। पांढुर्ना की पहचान इस गोटमार मेले के साल दर साल बदलते स्वरूप और मेले पर हावी विसंगतियों से नगर के बड़े-बुजुर्गों को दुख होता है। बुजुर्गों का कहना है कि गोटमार मेले में बहुत बदलाव आ गया है। पहले की गोटमार में और आज की गोटमार में बहुत कुछ बदल गया है। अवैध शराब, गोफन ने मेले का स्वरूप बिगाड़ दिया है। गोटमार खेलने वाले खिलाडिय़ों को परंपरा निभाने की जिम्मेदारी समझते हुए मेले का पारंपरिक स्वरूप बरकरार रखना चाहिए और दायरे में रहकर गोटमार खेलनी चाहिए।
बेटों के बगैर सूना हो गया गिरजाबाई का घर
जाटबा वार्ड निवासी गिरजाबाई घुघुसकर के बेटे गजानन की 31 मार्च 2008 को गोटमार में घायल होने के कारण दर्दनाक मौत हो गई। इसके बाद उनके दूसरे बेटे की भी अन्य कारणों से मौत हुई। विगत 13 साल से गिरजाबाई गोटमार आते ही फफककर रो पड़ती है। आंखों से आंसू बहने लगते है। अब इस परिवार में छह महिला सदस्य है। गोटमार के कारण बड़े बेटे की असमायिक मौत ने सभी को गमगीन कर दिया है।
अलग-अलग सालों में हुई एक ही कुटुंब के लोगों की मौत
गोटमार में जनहानि का दौर दशकों से चला आ रहा है। वर्ष 1955 में सावरगांव के महादेव सांबारे, 1987 में कोठीराम सांबारे और 2005 में जनार्दन सांबारे की मौत हुई। जिसमें महादेव सांबारे की गोटमार के दौरान पत्थर लगने से मौत हुई थी, वहीं कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हो गई थी। जिसके कारण उनके पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की गई थी।
सामने नही आना चाहते सकारात्मक विचार वाले लोग
गोटमार मेले के आयोजन को लेकर शहर का एक बड़ा तबका दूसरी विचारधारा रखता है। परंतु वह कभी खुलकर सामने नही आना चाहता। हालांकि तीन दिन पहले गोटमार की बैठक में सावरगांव पक्ष के वरिष्ठ नागरिक सुरेश कावले ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस साल नदी में पानी अधिक है, इसलिए जनहानि से बचने के लिए पथराव व खतरनाक खेल से बचना चाहिए। इसे पूजन-अर्चना और प्रतिकात्मक रूप से मनाना चाहिए। परंतु इनके अलावा शहर का कोई भी जनप्रतिनिधी सामाजिक संगठन या गणमान्य नागरिक मेले में पत्थरबाजी रोकने को लेकर खुलकर प्रतिक्रिया नही देता।
सिमटते जा रहे प्रशासन के समांतर प्रयास
दूसरी ओर गोटमार मेले के स्वरूप परिवर्तन को लेकर दस साल पहले जिला प्रशासन ने एमपीएल ग्राउंड, रामलीला मैदान व अन्य स्थानों पर खेल स्पर्धाएं एवं मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियां आयोजित करवाता था। परंतु कुछ वर्षों से प्रशासन ने भी इसके सुधार कार्यक्रमों के प्रति अनदेखी करना शुरू कर दिया। विगत तीन वर्षों से गोटमार तो जरूर हो रही है, परंतु इससे ध्यान हटाने के लिए अन्य स्पर्धाओं का कोई आयोजन नहीं हो रहा।