आंकड़ों का खेल: सिर्फ सत्तू के भरोसे कुपोषण कम, 7520 एक्टिव केस
पौष्टिक पोषण आहार महीनों से बंद, लेकिन कुपोषित बच्चों के आंकड़ों में भारी गिरावट का दावा आंकड़ों का खेल: सिर्फ सत्तू के भरोसे कुपोषण कम, 7520 एक्टिव केस
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा। कुपोषण के आंकड़ों को लेकर हमेशा ही महिला एवं बाल विकास विभाग पर उंगलियां उठती रही हैं। ताजा सर्वे के बाद जो आंकड़े अधिकारियों ने सामने रखे हैं। वह तो और चौंका देेने वाले हैं। वर्तमान में जिले में 7520 ही एक्टिव केस हैं। मतलब तकरीबन 76 प्रतिशत की कमी बताई जा रही है। जबकि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले डेढ़ साल से जिले में पौष्टिक पोषण आहार बंद पड़ा है।
डेढ़ साल पहले तो हर माह होने वाले कुपोषण के डाटा कलेक्शन में कुपोषित बच्चों की संख्या तकरीबन 28 हजार तो अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 3 से 4 हजार के बीच निकलती थी। मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते सभी आंगनबाडिय़ों का संचालन बंद कर दिया गया। संक्रमण न फैले इसलिए पौष्टिक पोषण आहार का वितरण भी रोक दिया गया था, लेकिन ताजा सर्वे बताते हैं कि जिले में वर्तमान में 6500 मध्यम कुपोषित और 920 कुपोषित बच्चे मौजूद हैं जो पिछले सर्वे की तुलना में काफी कम हैं। मतलब साफ है कि आंकड़ों के कलेक्शन में बड़ी बाजीगरी की गई है।
पौष्टिक पोषण आहार की जगह बंट रहा था सत्तू
जिले की ढाई हजार से ज्यादा आंगनबाडिय़ों में पौष्टिक पोषण आहार की जगह सत्तू का वितरण किया जा रहा है। पहले रोजाना मैन्यु के मुताबिक रोजाना अलग-अलग पौष्टिक पोषण आहार का वितरण आंगनबाडिय़ों में किया जाता आ रहा है, लेकिन कोरोना काल के चलते ये व्यवस्था फिलहाल बंद कर दी गई है।
डाटा में कमी की एक वजह ये भी
> डाटा में कमी की एक बड़ी वजह ये भी है कि आंगनबाडिय़ों का संचालन बंद होने के कारण फिलहाल हर माह नियमित बच्चों का वजन नहीं हो पा रहा है।
> ग्रामीण आदिवासी अंचलों की आंगनबाडिय़ों में बच्चों को माताएं वजन ही नहीं होने दे रही हैं। जिसकी वजह से एक्जेक्ट डाटा कलेक्शन नहीं हो पा रहा है।
> आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को फिलहाल वैक्सीनेशन कार्य में लगा दिया गया है। जिसके कारण भी डाटा कलेक्शन में दिक्कतें आ रही हैं।
इनका कहना है....
॥वर्तमान में विभाग के पास 7520 एक्टिव केस मौजूद हैं। कुपोषण कम करने के लगातार विभागीय कार्य किए जा रहे हैं। आगामी दिनों में इन आंकड़ों में और कमी आ जाएगी।
-कल्पना तिवारी,
डीपीओ, महिला एवं बाल विकास विभाग