विधान भवन में संगीत समारोह से नाराज हुई उपसभापति - मनाने पहुंचे मुख्यमंत्री

अधिकारों को लेकर शीत युद्ध विधान भवन में संगीत समारोह से नाराज हुई उपसभापति - मनाने पहुंचे मुख्यमंत्री

Bhaskar Hindi
Update: 2023-03-16 16:15 GMT
विधान भवन में संगीत समारोह से नाराज हुई उपसभापति - मनाने पहुंचे मुख्यमंत्री

डिजिटल डेस्क, मुंबई। विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोर्हे और विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के बीच अधिकारों को लेकर शीत युद्ध छिड़ा नजर आ रहा है।उपसभापति की नाराजगी इस बात को लेकर है कि नार्वेकर उन्हें विश्वास में लिए बिना अहम फैसले ले रहे हैं। उपसभापति ने कहा कि मुझसे नार्वेकर ने बुधवार को विधानभवन परिसर में "शतायु मुकेश संगीत समारोह' आयोजित करने के बारे में कोई राय नहीं ली थी। उपसभापति ने कहा कि इसके पहले विधान भवन के सेंट्रल हॉल में शिवसेना प्रमुख दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के तैलचित्र लगाते समय भी इस तरह की घटना हुई थी। मुझे उस दिन पता चला था कि विधानसभा अध्यक्ष इतने पॉवरफुल हैं कि बालासाहेब को भी "कस्टडी' में रख सकते हैं। गोर्हे ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मैं केवल विधान परिषद के सदन के कामकाज के लिए उपसभापति हूं क्या? 

दरअसल, गुरुवार को राकांपा के सदस्य शशिकांत शिंदे ने विधानभवन परिसर में हुए संगीत समारोह का मुद्दा उठाया था। शिंदे ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने विधान भवन परिसर में संगीत समारोह आयोजित करने का फैसला लिया था। आमतौर पर विधानमंडल अथवा विधान परिसर में आयोजनों को लेकर विधानसभा अध्यक्ष और विधान परिषद के सभापति संयुक्त रूप से फैसला लेते हैं। फिलहाल सभापति का पद रिक्त हैं। इस लिए सभापति का अधिकार उपसभापति को मिला हुआ है। इससे कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में विधानसभा अध्यक्ष को उपसभापति से चर्चा करके फैसला लेना चाहिए था। विधान परिषद उच्च सदन है। इसलिए सभापति के अधिकार बरकरार रखना चाहिए। इस पर उपसभापति ने कहा कि मुझसे विधान भवन परिसर में संगीत समारोह आयोजित करने के बारे में नार्वेकर ने पूछा ही नहीं था। मुझे सीधे पत्र के द्वारा संगीत समारोह के आयोजन के बारे में जानकारी मिली थी। मैंने पत्र पढ़ा तो मुझे लगा कि विधानसभा अध्यक्ष नए पीढ़ी के हैं, उन्हें नई परंपरा शुरू करना होगा। इसलिए मैंने संगीत समारोह का विरोध नहीं किया। इससे पहले मुंबई के विधानभवन में कभी संगीत समारोह आयोजित नहीं हुआ था। उपसभापति ने कहा कि बीते जनवरी महीने में विधानमंडल के सेंट्रल हॉल में बालासाहेब ठाकरे का तैलचित्र लगाने का फैसला लिया गया था।

उस समय बालासाहेब का तीन तैलचित्र तैयार किया गया था लेकिन किस कलाकार का तैलचित्र लगाया जाए, इसको लेकर विवाद हुआ था। इसलिए मैं देखना चाह रही था कि बालासाहेब का कौन सा तैलचित्र लगाया जाने वाला है। लेकिन विधानमंडल के सभी अधिकारियों ने मुझसे कहा कि तैलचित्र किस कलाकार का लगेगा, यह केवल विधानसभा अध्यक्ष को मालूम है। इसके बाद मैं लोकार्पण समारोह के दिन ही बालासाहेब का तैलचित्र देख पाई थी। उपसभापति ने कहा कि मेरी बालासाहेब के प्रति श्रद्धा और निष्ठा के कारण मैंने किसी से एक शब्द नहीं बोला। मैं पहली बार सदन में यह बात कह रही हूं। उपसभापति ने कहा कि मुझे पता चला था कि विधानसभा अध्यक्ष का सरकारी बंगला अजिंठा की जगह पर फ्लैट का निर्माण होने वाला है। मैंने अधिकारियों से पूछा कि इस बारे में बैठक हुई थी क्या? जिस पर अधिकारियों ने मुझसे कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने फैसला लिया है। इसलिए इस बारे में बैठक आयोजित करने की आवश्यक महसूस नहीं हुई। उपसभापति ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा लगाने संबंधी समिति में मेरे नाम का समावेश होने की जानकारी पहले मुझे मीडिया से मिली थी। उसके बाद मुझे नियुक्ति पत्र मिला था। मुझे भाजपा के सदस्य प्रवीण दरेकर ने समिति में शामिल करने के लिए आग्रह किया था। लेकिन वह समिति विधानसभा अध्यक्ष ने बनाई थी तो मैं दरेकर को कैसे शामिल कर सकती? 

गोर्हे ने कहा कि मुझे अधिकारियों ने बताया कि विधानमंडल का एक अध्यक्ष मंडल होता। जिसमें विधानसभा अध्यक्ष और विधान परिषद के सभापति होते हैं। सभापति का पद रिक्त होने पर विधानसभा अध्यक्ष के पास सभी अधिकार होते हैं। उपसभापति ने कहा कि इस नियम को बदलना है या नहीं? इस पर सर्वसहमति से फैसला होना चाहिए। जिसके बाद राज्य के संसदीय कार्य मंत्री चंद्रकांत पाटील ने कहा कि इस पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और विधान परिषद के विधायक दल नेताओं की बैठक में उचित फैसला लिया जाएगा। बाद में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गोर्हे के केबिन में जाकर उनसे चर्चा की। सूत्रों के अनुसार इस मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री ने उपसभापति की नाराजगी दूर करने की कोशिश की। 

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