ग्रीष्म ऋतु में जंगलों को आग से बचाने की चुनौती
छिंदवाड़ा ग्रीष्म ऋतु में जंगलों को आग से बचाने की चुनौती
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। ग्रीष्म ऋतु आने के साथ ही जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ जाती है। इससे निपटने के लिए वन विभाग फरवरी माह तक हर हाल में फायर लाइन तैयार करने का दावा करता है इसके बावजूद घटनाएं कम नहीं हो रही है। हर साल जंगलों में अग्रि प्रकरणों की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। हालांकि इस बीच यह अच्छी बात रही है कि वर्ष २०२० मेें अग्निप्रकरण के मामलों में कमी आई थी लेकिन एक बार फिर वर्ष २०२१ में एक बार फिर मामले बढ़े है।
ग्रीष्म ऋतु, इसलिए बढ़ जाते मामले
महुआ बिनने वाले द्वारा लगाई जाने वाली आग को जंगल में लगने वाली आग का प्रमुख कारण माना जाता है। खेतों में नरबई जलाने के दौरान भी जंगल में आग भड़कने की बहुत संभावनाएं होती है। सूखी पत्तियों पर जलती बीड़ी-सिगरेट को फेंक देने, जंगल में पिकनिक मनाने वालों के द्वारा अधबुझी आग छोड़ देने के कारण भी जंगल में आग लगने की घटना हो सकती है। बांस रगडऩे से उत्पन्न होने वाली चिंगारी एवं अन्य प्राकृतिक कारणों से भी आग लगने की कुछ घटनाए बीते सालों में हुई है।
अब तक जंगलों में लग चुकी आग
वर्ष २०१९- इस वर्ष कुल ६०२ स्थानों में आग लगी थी जिसमें सबसे अधिक पूर्व वनमंंडल में ३००, पश्चिम १२८ और दक्षिण में १७४ स्थानों में अग्नि प्रकरण बने थे।
वर्ष २०२०- पूर्व वनमंडल ११८, पश्चिम ३१ और दक्षिण वनमंडल में २६ स्थानों के साथ कुल १७५ स्थानों में आग लगी थी।
वर्ष २०२१- पूर्व वनमंडल में ३७४, पश्चिम वनमंडल १७० और दक्षिण वनमंडल में १९१ स्थानों के साथ कुल ७३५ स्थानों में आग की घटनाएं हुई थी।
इनका कहना है
- समय पर बजट मिलने के कारण जंगलों में फायर लाइन बनाने का काम पूरा हो चुका है। अब तक अग्नि प्रकरण के मामले सामने नहीं आए है। हमे उम्मीद है कि इस बार आग की घटनाओं में कमी होगी।