शीर्ष अदालत ने नवलखा को घर में नजरबंद करने की अनुमति देने वाले पहले आदेश पर संदेह जताया

  • कोर्ट ने कहा- ऐसा आदेश गलत मिसाल कायम कर सकता है
  • नवलखा को घर में नजरबंद करने की अनुमति देने वाले पहले आदेश पर संदेह जताया

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-02 04:41 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के आधार पर घर में नजरबंद करने की अनुमति देने के अपने नवंबर 2022 के आदेश पर संदेह जताया है। अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की है कि ऐसा आदेश गलत मिसाल कायम कर सकता है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आज नवलखा की उस अर्जी पर सुनवाई की जिसमें मुंबई में अपने नजरबंदी के स्थान को बदलने की मांग की है। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। इस दौरान पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्ट्या हमें आपत्ति है, लेकिन पहली पीठ ने एक लंबा आदेश पारित किया है। मामले के गुण-दोष पर गौर किए बिना, यह गलत मिसाल कायम कर सकता है। गौरतलब है कि जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने बीते 10 नवंबर 2022 के आदेश में कहा था कि इससे पहले भी नवलखा को घर में नजरबंद किया गया था, लेकिन प्रथम दृष्ट्या उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं है कि उन्होंने घर की गिरफ्तारी का दुरुपयोग किया। उनके खिलाफ इस मामले के अलावा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। लिहाजा उन्हें कम से कम एक महीने की अवधि के लिए हाउस अरेस्ट की अनुमति देनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान नवलखा के वकील ने पीठ से कहा कि शीर्ष अदालत ने अप्रैल में आवास बदलने के अनुरोध वाली याचिका पर एनआईए को जवाब दाखिल करने के लिए कहा था, लेकिन वह अभी तक जवाबी हलफनामा दायर नहीं कर पाए। अपने आवेदन की तात्कालिकता पर प्रकाश डालते हुए हुए कहा कि नवलखा को जल्द ही अपना वर्तमान आवास खाली करना होगा। इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने एक बार फिर नजरबंदी के आदेश पर केंद्रीय एजेंसी की चिंताओं को दोहराया। पीठ ने एनआईए को इस पर एनआईए को हलफनामा दायर करने के लिए आठ हफ्ते का समय दिया। साथ ही नवलखा को भी एनआईए के हलफनामे पर अपना रिज्वाइंडर प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी। मामले की सुनवाई अब अक्टूबर के अंत में होगी।

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