साइबर अटैक: देश में रैनसमवेयर हमलों की दर घटी, लेकिन इसका असर बढ़ा
- पिछले वर्ष 64 प्रतिशत भारतीय संगठन आए रैनसमवेयर की चपेट में
- 2022 में रैनसमवेयर हमलों की दर 73 प्रतिशत थी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में रैनसमवेयर हमलों की दर में गिरावट आई है। वर्ष 2022 में जहां रैनसमवेयर हमलों की दर 73 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2023 में घटकर 64 प्रतिशत रह गई है। हालांकि 2023 में अधिक फिरौती की मांग और वसूली लागत के कारण पीड़ितों पर रैनसमवेयर हमलों का असर तेज हुआ है। यह निष्कर्ष साइबर हमलों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाली कंपनी सोफोस की वार्षिक रिपोर्ट में सामने आया है। ‘स्टेट ऑफ रैनसमवेयर इन इंडिया-2024’ रिपोर्ट के निष्कर्ष 14 देशों के 5,000 आईटी निर्णय निर्माताओं के एक स्वतंत्र सर्वेक्षण से प्राप्त हुए हैं, जिसमें भारत के 500 उत्तरदाता भी शामिल हैं।
सोफोस के उपाध्यक्ष (सेल्स) सुनील शर्मा ने बताया कि पहली बार भारतीय संगठनों में बैकअप (52 प्रतिशत) का उपयोग करने की तुलना में फिरौती (65 प्रतिशत) का भुगतान करके डेटा को फिर से हासिल करने की अधिक संभावना पाई गई। उन्होंने बताया कि फिरौती की औसत मांग 4.8 मिलियन डॉलर थी, जिसमें 62 प्रतिशत मामलों में मांग एक मिलियन डॉलर से अधिक थी।
भुगतान की गई औसत फिरौती 2 मिलियन डॉलर थी। श्री शर्मा के मुताबिक भारतीय पीड़ितों के खिलाफ हमलों में प्रभावित कंप्यूटरों में से औसतन 44 प्रतिशत एन्क्रिप्टेड थे। 34 प्रतिशत हमलों में एन्क्रिप्शन के अलावा डेटा चोरी भी शामिल है, जो पिछले वर्ष के 38 प्रतिशत से थोड़ा कम है। 61 प्रतिशत पीड़ित एक सप्ताह के भीतर डेटा को िफर से हासिल करने में सफल रहे, जो 2022 की घटनाओं (59 प्रतिशत) की तुलना में अधिक है।
रैनसमवेयर क्या है?
रैनसमवेयर एक प्रकार का फिरौती मांगने वाला सॉफ्टवेयर है। इसे इस तरह बनाया जाता है कि वह किसी भी कंम्प्यूटर सिस्टम की सभी फाइलों को एन्क्रिप्ट कर दे। जैसे ही सॉफ्टवेयर इन फाइलों को एन्क्रिप्ट करता है, वैसे ही वह फिरौती मांगने लगता है।