रेलवे ट्रैक पर कवच: हाथियों को ट्रेन की चपेट में आने से बचाएगी गजराज टेक्नोलॉजी
- हाथियों की जान बचाएगी
- 200 मीटर दूर से ही मिल जाएगी हाथियों की मूवमेंट की जानकारी
- ‘गजराज टेक्नोलॉजी’ है खास
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आने से हाथियों की मौत की खबर अक्सर सुनने को मिलती है। हाथियों की होने वाली इस तरह की मौत पर लगाम लगाने के लिए भारतीय रेलवे ने एक नई ‘गजराज तकनीक’ विकसित की है। इस तकनीक से 99.5 प्रतिशत एक्यूरेसी के साथ हाथियों के ट्रैक के नजदीक होने का पता चल जाता है। अब गजराज तकनीक को देश भर में 700 किलोमीटर से अधिक उन रेलमार्गों पर स्थापित किया जाएगा, जहां हाथी बहुतायत से पाए जाते हैं।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि देश में ही डिजाइन की गई गजराज तकनीक से 200 मीटर की दूरी से ही हाथियों का मूवमेंट पता चल जाता है और लोको पायलट इसी हिसाब से ट्रेन की गति को नियंत्रित कर हाथियों की जान बचाता है। उन्होंने बताया कि ऑप्टिकल फाइबर के पास जैसे ही कोई दबाव पड़ता है तो उससे साउंड वेव डिटेक्ट होता है और इसका सिग्नल सबसे पहले स्टेशन मास्टर और लोको पायलट के पास जाता है। रेलवे सूत्रों के मुताबिक असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, उत्तराखंड, छत्तीसगढ में लगभग 750 किलोमीटर का रेलवे ट्रैक हाथी प्रोन है। रेलवे की योजना अगले 7-8 महीने में इन सभी रूटों पर गजराज तकनीक स्थापित करने की है। बता दें रेलवे ट्रैक पर हाथियों के आने से प्रति वर्ष बड़ी संख्या में हाथियों की मौत होती है। खास बात यह कि स्वदेश निर्मित यह तकनीक सस्ता भी है। 700 किलोमीटर के हाथी प्रोन इलाके में गजराज तकनीक स्थापित करने का खर्च सिर्फ 181 करोड़ रूपये है।
सभी रेलवे ट्रैक पर ‘कवच’ टेक्नोलॉजी लागू करने पर है जोर
ट्रेनों की आपसी भिड़ंत रोकने के लिए देश के सभी रेलवे ट्रैक पर ‘कवच’ टेक्नोलॉजी लागू करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। विशेष बात यह कि स्वदेश निर्मित ‘कवच’ को अब संचार की 4जी और 5जी आधारित किया जा रहा है। रेल मंत्री वैष्णव ने बताया कि दिसंबर 2022 में 3,000 किलोमीटर रूट को कवच तकनीक से कवर करने का टेंडर निकला था। इसमें से 500 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। आने वाले समय में 6,000 किलोमीटर के कवच नेटवर्क को 4जी और 5जी तकनीक पर अपग्रेड करने का टेंडर निकाला जाएगा।
2025 तक प्रति वर्ष 5,000 किमी की क्षमता होगी
इस समय देश में प्रति वर्ष 1,500 किलोमीटर कवच तकनीक स्थापित करने की क्षमता है। यह क्षमता 2024 में 2,500 किमी और 2025 तक बढ़कर प्रति वर्ष 5,000 किलोमीटर तक पहुंचेगी
। रेल मंत्री ने दावा किया कि भारत का ‘कवच’ यूरोप की ऐसी ही तकनीक ईटीसीएस से कहीं अधिक सक्षम और आधुनिक है। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस दावे का भी खंडन किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके रेल मंत्री रहने के दौरान एंटी कोलिजन डिवाइस (एसीडी) प्रणाली क्रियान्वित की गई थी। मंत्री ने कहा कि उनके समय में कुछ इंजनों में जरूर एसीडी की तकनीक का इस्तेमाल हुआ था, लेकिन उनके बाद के रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने परीक्षण के बाद एसीडी को विफल घोषित कर दिया था।
क्या है कवच टेक्नोलॉजी
कवच स्वदेशी रूप से विकसित ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिसे भारतीय रेलवे ने आरडीएसओ के जरिए विकसित किया है। कवच टेक्नोलॉजी ट्रेनों के आपसी भिड़ंत को रोकती है। इस टेक्नोलॉजी में सिग्नल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रूक जाती है।