निशाना: भारत में भी बढ़ रही इजरायल-हमास संघर्ष की तपिश
- सियासी नफा-नुकसान के आधार पर पार्टियां बना रहीं हैं राय
- इजरायल-हमास संघर्ष की तपिश
- तपिश भारत में भी बढ़ रही
- भाजपा नहीं चाहती चुनावों में जाति बने मुद्दा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, अजीत कुमार. इजरायल और हमास के बीच बढ़ते संघर्ष की तपिश भारतीय राजनीति में भी महसूस की जा रही है। इस मामले में मोदी सरकार जहां खुलकर इजरायल के समर्थन में है तो वहीं कांग्रेस और राकांपा जैसी पार्टियां इजरायल का समर्थन करने के लिए सरकार पर सवाल उठाए हैं। जाहिर है राजनीतिक पार्टियां आगामी चुनावों के मद्देनजर अपनी पोजिशनिंग कर रही हैं।
हालांकि राजनीतिक पार्टियां इजरायल मसले को सियासी नफा-नुकसान के चश्मे से देखने की बात से इंकार कर रही हैं, लेकिन यह तय है कि सत्ताधारी भाजपा को देश की बहुसंख्यक आबादी के झुकाव के हिसाब से इजरायल के साथ जाने में फायदा दिख रहा है तो वहीं कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों को फिलिस्तीन के साथ हमदर्दी दिखाने में अपना भला दिख रहा है। कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी में फिलिस्तीनी नागरिकों के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया तो राकांपा सुप्रीमों शरद पवार ने इजरायल का समर्थन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाने पर लिया है। पवार कहते हैं कि भारत हमेशा से फिलिस्तीन के साथ खड़ा रहा है। लेकिन पहली बार भारत ने इजरायल का समर्थन किया है। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने विपक्ष के इस रूख को तुष्टीकरण की राजनीति करार दिया है।
‘इजरायल के साथ जाना विदेश नीति में बदलाव नहीं’
उधर भाजपा का कहना है कि इजरायल के साथ जाना भारत की विदेश नीति में बदलाव नहीं है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भारत इजरायल के साथ नहीं, बल्कि हमास के आतंकवादी हमले के खिलाफ है। सांसद सूर्या ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत का रूख हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ रहा है, आतंकवाद का स्वरूप चाहे जो हो। चूंकि हमास ने इजरायल के सैकड़ों लोगों को आतंक का शिकार बनाया है, लिहाजा हमारा समर्थन इजरायल को है।
भाजपा नहीं चाहती चुनावों में जाति बने मुद्दा
सूत्र बताते हैं कि जाति जनगणना का मसला उठने के बाद भाजपा चुनाव वाले राज्यों में अपनी जीत को लेकर आशंकित है। ऐसे में वह नहीं चाहती कि ‘अगड़े बनाम पिछड़े’ की बहस तेज हो। ऐसे में ‘इजरायल-हमास संघर्ष’ का मुद्दा उसे ज्यादा मुफीद लग रहा है। यही वजह है कि भाजपा के सभी छोटे-बड़े नेता खुलकर इजरायल के पक्ष में बोल रहे हैं और फिलिस्तीन का समर्थन करने वालों को खरी खोटी सुना रहे हैं।