Nagpur News: पहली महिला विधायक की जीत को दी थी चुनौती, उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी याचिका

  • ए.बी. बर्धन ने चुनाव की वैधता को लेकर उठाया था सवाल
  • न्यायाधिकरण व उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी याचिका
  • उच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण को पढ़ाया पाठ

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-08 13:21 GMT

Nagpur News : चंद्रकांत चावरे | पश्चिम नागपुर में 1962, 1967 और 1972 में कांग्रेस की उम्मीदवार डॉ. सुशीला बलराज ने जीत हासिल की थी। पहली बार सीपीआई के ए.बी. बर्धन को, दूसरीबार जनसंघ की सुमतिताई सुकलीकर को और तीसरीबार भी जनसंघ की सुमतिताई सुकलीकर को हराया था। 1962 में पहलीबार जब ए.बी. बर्धन को हराया था तो जीत का अंतर काफी कम था। सुशीला बलराज को 12859 वोट और ए. बी. बर्धन को 12701 वोट मिले थे। मात्र 158 वोटों से ए. बी. बर्धन हार गए थे। कम वोटों से हार होने से उन्होंने चुनाव की वैधता को चुनौती दी थी।

ए. बी. बर्धन ने चुनाव आयोग के समक्ष याचिका दायर की। याचिका में राज्य विधानसभा के पश्चिम नागपुर निर्वाचन क्षेत्र के परिणाम दोषपूर्ण होने की बात कही गई। चुनाव 25 फरवरी 1662 को हुआ था। वोटों की गिनती 26 फरवरी  को शुरु हुई और परिणाम 27 फरवरी को घोषित हुए। याचिकाकर्ता के अलावा अन्य छह उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में थे। चुनाव परिणाम में सुशीला बलराज को 12859 और ए. बी. बर्धन को 12701 वोट मिले। सुशीला बलराज 158 वोटों से जीत गई। ए. बी. बर्धन ने 9 अप्रैल 1962 को चुनाव आयोग के समक्ष याचिका में उन्होंने खुद को निर्वाचित करने की घोषणा का आग्रह किया था। अथवा चुनाव को रद्द करने की मांग की गई।

याचिकाकर्ता ने इसके अनेक कारण बताए थे। आरोप लगाया गया कि कुछ मतपत्र अनुचित तरीके से प्राप्त किये गए। कुछ मामलों में नाबालिगों को वोट देने की अनुमति दी गई। मतगणना के दौरान अनियमितता होने का आरोप लगाया गया। जिस समय वोटों की गिनती चल रही थी उस दौरान लगभग एक घंटे तक बिजली गुल हुई थी। इससे पारदर्शिता पर प्रश्न उठाया गया। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उचित गणना हुई होती तो उसकी जीत निश्चित थी। इस पर डॉ. सुशीला बलराज ने स्पष्ट किया था कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोई भी भ्रष्ट आचरण नहीं हुआ। वोटों की गिनती उचित तरीके से की गई थी। कोई भी अनियमितता नहीं हुई। याचिकाकर्ता को समर्थन देनेवाले दोनों उम्मीदवार इस बात पर राजी नहीं हुए कि याचिकाकर्ता को निर्वाचित घोषित किया जाए। इसके अलावा अन्य उम्मीदवार भी याचिकाकर्ता के किसी दावे के समर्थन में नहीं थे। चुनाव प्रक्रिया में भ्रष्ट आचरण की कोई जानकारी नहीं होने का खुलासा अन्य उम्मीदवारों ने किया।

नागपुर में हिरासत, भंडारा में सुनवाई

याचिका पर सुनवाई के लिए चुनाव आयोग ने चुनाव न्यायाधिकरण नियुक्त किया। नागपुर के तत्कालीन जिला न्यायाधीश भूपाली के समक्ष 16 जनू 1962 को पहली सुनवाई हुई। उनका नागपुर से स्थानांतरण के बाद दूसरे जिला न्यायाधीश हाडोले को नियुक्त किया गया। उनके समक्ष 9 अगस्त 1962 को पहली सुनवाई हुई। हाडोले ने किसी कारणवश इस्तीफा दे दिया। उनके स्थान पर भंडारा के जिला न्यायाधीश हुसैन को नियुक्त किया। इसलिए सुनवाई भंडारा में होनी थी। न्यायाधीश हुसैन के समक्ष सुनवाईयां चल रही थी। इस बीच 7 नवंबर 1962 को रक्षा नियमों के तहत राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता को हिरासत में ले लिया। दूसरी तरफ न्यायाधिकरण ने 18 फरवरी 1963 साक्ष्य दर्ज करने की तारीख तय कर दी। इस मामले की अंतिम सुनवाई 23 सितंबर 1963 निश्चित की गई। याचिकाकर्ता ने  स्थगनादेश की मांग की। लेकिन उसे स्थगनादेश नहीं मिला। याचिकाकर्ता निश्चित तारीख तक साक्ष्य पेश नहीं कर पाया। अंतत: इसी तारीख को याचिका खारिज कर दी गई।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में अपील की। अपील में बताया गया कि चुनाव न्यायाधिकरण के स्थगनादेश नहीं देने से और मतपत्रों का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं देकर गलत किया है। तर्क दिया गया कि न्यायाधिकरण को उनकी याचिका खारिज करने का कोई अधिकार नहीं था। इस बात को भी रखा गया कि रक्षा नियमों के तहत वे हिरासत में थे। यह सुनवाई भंडारा में रखी गई थी और याचिकाकर्ता को नागपुर में हिरासत में लिया गया था। कुछ बिंदुओं का संज्ञान उच्च न्यायालय ने लिया था। न्यायाधिकरण ने मतपत्रों का निरीक्षण की अनुमति नहीं दी,मामले की सुनवाई के लिए भंडारा से नागपुर में स्थानांतरित नहीं किया गया। याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर चूक की गई थी। इसके बाद उच्च न्यायालय ने शीघ्रता से सुनवाई का निर्देश दिया। कहा गया कि न्यायाधिकरण ने विवेकपूर्ण व न्यायिक तरीके का प्रयोग नहीं किया। इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश का पालन होना चाहिए। उच्च न्यायालय ने माना कि याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता हिरासत में था, उसे स्थगन की छूट मिलनी चाहिए थी। साक्ष्य एकत्रित करने व पेश करने का अवसर दिया जाना चाहिए था। उसके रास्ते में बाधाएं निर्माण की गई है। यह संभावना भी व्यक्त की गई कि सत्ता पार्टी के कहने पर ऐसा किया गया हो। ऐसा भी उच्च न्यायालय ने कहा। इसके अलावा भी न्यायाधिकरण को न्याय के पक्ष में अनेक बिंदुआें पर विचार करने को कहा गया था। इसके बाद उच्च न्यायालय के आदेशानुसार न्यायाधिकरण ने न्यायिक प्रक्रिया के तरह सुनवाई की। अंतत: परिणाम यह हुआ कि याचिकाकर्ता ए. बी. बर्धन की याचिका खारिज की गई।

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