नागपुर: ऑडिट रिपोर्ट ने खोली पोल, आवंटित भूखंड खाली, न टैक्स वसूली और न कार्रवाई
- सिर्फ कागजों पर औद्योगिक विकास के दावे
- सिर्फ भूखंड आवंटन तक सीमित रह गया औद्योगिक महामंडल
डिजिटल डेस्क, नागपुर. महाराष्ट्र में औद्योगिक विकास को लेकर सरकार रोज नये-नये घोषणाएं और दावा कर रही है। लाखों-करोड़ों की घोषणाएं कर हजारों लोगों को रोजगार देने के दावे हो रहे हैं, लेकिन कागजों पर यह फिसड्डी साबित हो रहा है। भारत के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट ने इन दावों की पोल-खोल कर रख दी है, जो सरकार को आईना दिखाने काम कर रही है। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल द्वारा 2014-15 से 2020-21 के बीच किए गए कामों का ऑडिट करते हुए भारत के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक ने कहा कि अनेक योजनाओं से पर्दा उठाते हुए सरकार को जमीन पर लाने का काम किया है। एक-एक कर उसने कई खामियां और भ्रष्टाचार की परतें खोली हैं।
परिणाम आर्थिक स्थिति पर
शुरूआत ही महामंडल के अधूरे गठन से हुई। रिपोर्ट में कहा कि 2014 से 21 के बीच महाराष्ट्र सरकार ने महामंडल में 15 में से सात सदस्यों की नियुक्ति ही नहीं की। जमीन आवंटन, किराया पट्टा अधिमूल्य / हस्तांतरण शुल्क / विस्तार शुल्क और उप-किराया पट्टा शुल्क वसूलने के मामलों में प्रचलित नियमों को नजरअंदाज करने से उसका परिणाम आर्थिक स्थिति पर हुआ। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल ने राज्य के औद्योगिक नीति निश्चित किए उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए कार्यक्रम या योजना तक तैयार नहीं की। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल के पास औद्योगिक क्षेत्र में भूसंपादन, विकास और आवंटन उपक्रमों के लिए योजना भी नहीं है। महामंडल ने डीपीआर अनुसार प्रस्तावित निवेश और रोजगार निर्मिती का विचार कर संभावित उद्योजकों को जमीन का आवंटन किया,लेकिन इसकी जांच-पड़ताल करने कोई भी डेटाबेस या प्रणाली नहीं है। ऐसे में महामंडल ने अपनी भूमिका राज्य औद्योगिक नीति में जमीन के विकास और आवंटन तक सीमित रखी है।
अनेक अनियमितताएं
औद्योगिक विकास करने के लिए दृष्टिकोण का अभाव है। भूखंड वापस लेने के लिए कोई योजना या प्रणाली तैयार नहीं की। अनेक नियमों का भी उल्लंघन दिखता है। महामंडल ने वैधता की कालावधि में निविदा समय पर अंतिम नहीं की, जिस कारण निविदा रद्द हुई और अतिरिक्त दर से पुन: निविदा निकाली गई। जमीन के दर निश्चित करना योग्य नहीं है। जमीन के सुधारित दरों के क्रियान्वयन में विलंब हुआ। शुल्क व राजस्व वसूल करते समय भूखंडधारकों को मनमानी छूट दी गई, जिस कारण अल्प वसूली हुई। महामंडल ने जिसपर जीएसटी की छूट नहीं थी, उस पर भी भूखंडधारकों से कर वसूल नहीं किया। कर वसूल नहीं करने से बकाया बढ़ता गया। भूखंड वापस लेने के लिए निश्चित समय में नोटिस तक नहीं दिए गए। आवंटित किए गए भूखंड के उपयोग में बदलाव, देखरेख का अभाव, अतिक्रमण हटाना और अतिक्रमणकर्ताओं को जमीन का अनियमित वितरण अनेक उदाहरण दिखाई दिए।