नागपुर: जानवरों के भी होते हैं कानूनी अधिकार, प्रताड़ित करने पर हो सकती है सजा
- 250 से अधिक श्वानों को आश्रय
- वर्चुअल एडॉप्शन का विकल्प
डिजिटल डेस्क, नागपुर. आज के समय में पेट्स पालने का चलन बन गया है। जिस तरह एक इंसान प्यार का हकदार होता है, ठीक उसी तरह जानवर भी उसी स्नेह के हकदार होते हैं। फिर चाहे वह पालतू हों या सड़कों पर रहने वाले हों। उनके लिए एनिमल लवर के दिल में प्यार जाग ही जाता है। एनिमल लवर को जानवरों की संवेदनशीलता और उनके कानून अधिकार के बारे में जानकारी होती है, लेकिन आम जनता को भी इस बारे में समझने की जरूरत है। एनिमल के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ‘नेशनल एनिमल राइट्स-डे' प्रतिवर्ष जून के पहले संडे को मनाया जाता है। इस दिन जगह-जगह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और लोगों को जानवरों के कानून संबंधि अधिकारों से अवगत कराया जाता है।
जानवरों के साथ किया जाता है बुरा बर्ताव
स्मिता मिरे, समाज सेविका के मुताबिक कुछ लोग न केवल आवारा श्वानों के साथ, बल्कि अपने पालतू पशुओं के साथ भी बुरा व्यवहार करते हैं। उन्हें बुरी तरह पीटा जाता है, चोट पहुंचाई जाती है या प्रताड़ित किया जाता है और कुछ मामलों में तो उन्हें मार भी दिया जाता है। दुखद बात यह है कि पुलिस को भी जानवरों के खिलाफ क्रूरता से जुड़े कानूनों के बारे में जानकारी नहीं है। अगर लोगों को पता होता कि किसी जानवर को मारने पर पांच साल की जेल की सजा हो सकती है, तो वे कभी भी ऐसी घिनौनी हरकतें नहीं करते। जानवर भी मान्यता, पहचान और सुरक्षा के हकदार होते हैं।
13 साल से शुरू है शेल्टर : शहर में श्वानों और बिल्लियों के लिए शेल्टर होम हैं। कुछ शुरू हैं, जो पैसे लेकर देखभाल करते है, तो कुछ बंद हो चुके हैं। बावजूद इसके सड़कों पर आवारा श्वानों की संख्या कम नहीं है। ऐसे में कई बार यह दुर्घटना के शिकार होते हैं। कोई इन्हें नाले में फेंक कर चला जाता है, तो कोई जानबूझकर चोट पहुंचाने की कोशिश करता है। ऐसे में सेव स्पीचलेस आर्गनाईजेशन नाम से शहर में एकमात्र शेल्टर होम है, जो पैरालाइज्ड और घायल डॉग्स को आश्रय देता है। उनके खाने-पीने, दवा का खर्चा उठाता है। यह शेल्टर होम स्मिता मिरे पिछले 13 सालों से चला रही हैं।
250 से अधिक श्वानों को आश्रय : लोगों द्वारा आवारा श्वानों के साथ किए जाने वाले कठोर व्यवहार को देखकर स्मिता ने इस शेल्टर को शुरू किया। यहां लावारिस, बूढ़े और बीमार जानवरों को आश्रय दिया जाता है। श्वानों और बिल्लियों के साथ-साथ अन्य जानवरों को भी स्मिता की टीम बचाती है। इस शेल्टर होम में 250 से अधिक अलग-अलग नस्लों के लावारिस डॉग्स हैं, जो किसी न किसी परेशानी से गुजर रहे हैं। किसी के पैर टूटे हैं, तो किसी की आंखें निकल गई हैं। कई मानसिक रूप से डिस्टर्ब हैं।
वर्चुअल एडॉप्शन का विकल्प : यहां रहने वाले श्वानों को किसी ने छोड़ा है या किसी ने मारा है। शेलटर होम में लगने वाले खाने-पीने और वहां का किराया सब स्मिता और उनकी टीम को अपने पास से देना होता है। सरकार की तरफ से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलती, इसलिए एक वर्चुअल एडॉप्शन का विकल्प सभी के लिए है। यहां से किसी भी श्वान को वर्चुअली गोद लेकर उसका आर्थिक खर्चा उठा सकते हैं। इसके अलावा ग्रुप एडॉप्शन भी विकल्प है, जिसमें कोई छात्रों या सोसाइटी का ग्रुप अपने आस-पास की सड़कों के आवारा श्वानों को गोद लेकर उनकी मदद कर सकता है।