दोहरा हत्याकांड: 77 दिन छकाने के बाद आरोपी मुकुल ने किया सरेंडर
- सामने आया हत्याकांड का दहलाने वाला राज
- 5 लोगों को मौत के घाट उतारने की थी प्लानिंग
- नेपाल जाने का प्रयास भी किया लेकिन दस्तावेज नहीं होने पर वह और नाबालिग नेपाल नहीं जा सके।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। सिविल लाइन थाना क्षेत्र की रेलवे मिलेनियम कॉलोनी निवासी पिता-पुत्र की निर्मम हत्या के सनसनीखेज मामले के आरोपी 21 वर्षीय मुकुल कुमार सिंह ने शुक्रवार को सिविल लाइंस थाने में आत्म समर्पण कर दिया।
मुकुल को पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ से उसे सात दिन की रिमांड पर लिया गया है। वहीं मृतक राजकुमार विश्वकर्मा की नाबालिग पुत्री को भी पुलिस टीम हरिद्वार से लेकर शहर आ गई है। मुकुल और मृतक की नाबालिग बेटी से भी वारदात के विषय में पूछताछ की जा रही है।
प्रारंभिक पूछताछ में मुकुल ने ये भी राज खोला है कि वह पाँच लोगों को मौत के घाट उतारना चाह रहा था।
पत्रकारवार्ता में एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने बताया कि बीते 15 मार्च को कॉलोनी स्थित शासकीय आवास में राजकुमार विश्वकर्मा एवं उनके 8 वर्षीय पुत्र तनिष्क विश्वकर्मा की धारदार हथियार से हत्या कर दी गई थी। मौके पर पहुँची टीम को आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों में आरोपी मुकुल कुमार सिंह स्कूटी से मृतक की नाबालिग पुत्री के साथ जाते हुए दिखाई दिया था। इसके बाद से ही वह फरार चल रहा था। वहीं उसके साथ मृतक की नाबालिग पुत्री भी गायब चल रही थी।
हत्याकांड के बाद फिंगरप्रिंट प्रभारी अखिलेश चौकसे, एफएसएल डॉ. नीता जैन तथा एसपी आदित्य प्रताप सिंह मौके पर पहुँचे थे। मृतक के रिश्तेदार बाबूलाल विश्वकर्मा की रिपोर्ट पर अपराध क्र. 79-2024 धारा 302, 201 भादंवि का मामला दर्ज कर विवेचना शुरू की गई थी।
एसपी से मिले निर्देश पर एएसपी शहर सोनाक्षी सक्सेना, समर वर्मा तथा नगर पुलिस अधीक्षक ओमती पंकज मिश्रा के मार्गदर्शन में टीआई धीरज राज के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच एवं पुलिस की टीम ने जाँच शुुरू की थी।
रुपए खत्म होने पर लंगर और भंडारे में किया भोजन| आरोपी मुकुल ने पुलिस को जानकारी दी है कि उसने मृतक के अकाउंट से करीब 1 लाख रुपए ऑनलाइन निकाले थे। इसके बाद वह जबलपुर से कटनी, इंदौर, बैंगलोर, पुणे, मुंबई, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, शिलांग, मेघालय, झांसी, आगरा, चण्डीगढ़, अमृतसर एवं हरिद्वार सहित कई अन्य शहरों में भागता रहा।
नेपाल जाने का प्रयास भी किया लेकिन दस्तावेज नहीं होने पर वह और नाबालिग नेपाल नहीं जा सके। रुपए खत्म होने के बाद दोनों रेलवे स्टेशनों के प्लेटफाॅर्म, बस स्टैंड में रुकते रहे और गुरुद्वारों के लंगर एवं मंदिरों में होने वाले भण्डारों में खाना खाते थे।