सूरत के सिंथेटिक टेक्सटाइल उद्योग पर मंदी की मार, हजारों बेरोजगार
उद्योग का उत्पादन सूरत के सिंथेटिक टेक्सटाइल उद्योग पर मंदी की मार, हजारों बेरोजगार
- सूरत के सिंथेटिक टेक्सटाइल उद्योग पर मंदी की मार
- हजारों बेरोजगार
डिजिटल डेस्क, सूरत (गुजरात)। सूरत भारत की सिंथेटिक कपड़ा राजधानी है। देश की सिंथेटिक कपड़े की 90 फीसदी जरूरत सूरत उद्योग से पूरी होती है, जो अब अभूतपूर्व मंदी का सामना कर रहा है। कई रंगाई और प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो गई हैं, जिससे हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। अब घरेलू बाजार में मांग में वृद्धि होने पर ही उद्योग का उत्पादन स्तर बढ़ सकता है। सूरत टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के आंकड़ों के अनुसार सूरत शहर और आसपास के क्षेत्रों में लगभग 485 प्रसंस्करण (रंगाई और छपाई) इकाइयां थीं। इससे 4 से 5 लाख लोगों को सीधा रोजगार मिल रहा था।
साउथ गुजरात टेक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र वखारिया ने कहा कि तीन से चार महीनों में सूरत में कम से कम 15 से 20 रंगाई और प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो गई हैं। उन्होंने कहा कि उद्योग लगभग 4.5 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन कर रहा था, लेकिन अब केवल 2.5 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन कर रहा है।
इसके पीछे कारण यह है कि पहले उपभोक्ताओं की प्राथमिकता रोटी, कपड़ा और मकान थी, अब प्राथमिकता बदल गई है। रोटी के बाद मोबाइल फोन, टेलीविजन सेट आदि जैसी अन्य जरूरतें होती हैं। पहले महिलाएं 7 से 8 मीटर लंबी साड़ियां खरीदती थीं, अब साड़ियों की मांग कम हो गई है। वे हर ड्रेस के साथ दुपट्टा खरीद रही थीं, अब वह भी आउट ऑफ फैशन हो गया है, लेगिंग्स की जगह चूड़ीदार पजामा ने ले लिया है, जिससे सिंथेटिक कपड़े की मांग में भारी गिरावट आ गई है।
भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस गुजरात के महासचिव कामरान उस्मानी का दावा है कि मंदी का यही एकमात्र कारण नहीं है। उनके अनुसार अवैध रंगाई और प्रसंस्करण गृह बड़ी संख्या में चल रहे हैं। उन्हें करों और अन्य शुल्कों का भुगतान नहीं करना पड़ता है, विभिन्न विभागों के साथ पंजीकृत इकाइयों की तुलना में उनकी उत्पादन लागत काफी कम है। इस अनुचित प्रतिस्पर्धा के कारण पिछले कुछ महीनों में कई इकाइयां बंद हो गई हैं।
उस्मानी का अनुमान है कि कम से कम 70 हजार से 1 लाख श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं, जिनमें से कई अपने मूल राज्य लौट आए हैं। कुछ साल पहले ये मजदूर 18 से 20 दिन का काम मिलने पर भी गुजारा कर लेते थे, लेकिन सूरत में महंगाई और रहने की बढ़ती लागत के कारण अब 24 दिन का काम भी गुजारा करने के लिए नाकाफी है।
वखारिया का कहना है कि उद्योग को प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष (टीयूएफ) के लाभ की जरूरत है, लेकिन यह योजना पिछले साल समाप्त हो गई। इसे जल्द से जल्द फिर से शुरू करने की जरूरत है। जहां तक कंज्यूमर डिमांड का सवाल है, टेक्सटाइल इंडस्ट्री को वैल्यू एडेड प्रोडक्ट्स और फैशन की दुनिया में चलने वाले प्रोडक्ट्स की जरूरत है, तो डिमांड में बढ़ोतरी और स्थिति में सुधार की संभावना है।
सोर्सः आईएएनएस
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