ये नदियां पानी से नहीं, आंसुओं और मूत्र से है बनीं, जानिए इनकी कहानी
ये नदियां पानी से नहीं, आंसुओं और मूत्र से है बनीं, जानिए इनकी कहानी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नदी का नाम आते ही ठंडा और फ्रेश पानी जेहन में आता है। वो पानी जो बिना किसी फिल्ट्रेशन के पिया जा सकता है। हमारे देश में भी कई ऐसी नदियां है जो बेहद पवित्र मानी जाती है। जिनमें डूबकी लगाने मात्र से ही आपके सारे पाप धूल जाते हैं। भारत की सबसे बड़ी और सबसे पवित्र नहीं गंगा मानी जाती है। गंगा नदी के बारे में पुराणों में कथा है कि इनका आगमन पृथ्वी पर स्वर्ग से हुआ है। यमुना और सरस्वती नदी के बारे में भी कथा है कि एक श्राप की वजह से इनको नदी बनकर देवलोक से पृथ्वी पर आना पड़ा, लेकिन कुछ नदियों और झीलों की कहानी बहुत ही अजब-गजब है। कथाओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति आंसुओं और मूत्र से हुआ है। इनकी कथाओं के साथ कुछ मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं नदियों की इन कथाओं के बारे में...
सरयू नदी: उत्तर प्रदेश
आनंद रामायण के यात्रा कांड में बताया गया है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया और खुद भी वहीं छिप गया। तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया था और ब्रह्मा को वेद सौंप दिया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े और वह आंसू सरयू नदी कहलाई। भगवान विष्णु के आंसू से उत्पन्न होने के कारण सरयू परम पवित्र नदी मानी जाती है।
कटासराज सरोवर: पाकिस्तान
पाकिस्तान के पंजाब में स्थित कटस राज मंदिर हिंदुओं के लिए एक तीर्थ स्थल माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने आत्मदाह किया था तब भगवान शंकर की आंखों से दो बूंद आंसू टपके थे। एक बूंद आंसू से कटास सरोवर निर्मित हो गया जो अमृत कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरा अजमेर में टपका, जहां पुष्कर तीर्थस्थल बना है।
तमस या टोंस नदी: गढ़वाल, उत्तराखंड
उत्तराखंड की लोककथाओं के अनुसार महाभारत काल में बभ्रुवाहन पाताल लोक का राजा था। बभ्रुवाहन कौरवों की तरफ से युद्ध में शामिल होना चाहता था लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे रोके रखा था। कथाओं में बताया गया है कि जब-जब कौरवों की हार होती थी तब-तब बभ्रुवाहन रोता था। इनके रोने से टोंस नदी निर्मित हो गई। आंसूओं से निर्मित होने की वजह से लोग टोंस नदी का पानी नहीं पीते हैं।
रावण पोखरा देवघर, झारखंड
कथाओं के अनुसार, एक बार रावण भगवान शिव से लंका चलने की हठ करने लगा। शिवजी ने उसकी बात मान ली और शिवलिंग रूप में चल दिए। शिवजी ने रावण से कहा कि एक बार भूमि पर शिवलिंग को रख दोगे तो फिर नहीं उठा सकोगे। शक्ति के अहंकार में रावण शिवलिंग को लेकर चल दिया। इसे देखकर भगवान विष्णु ने गंगा से रावण के पेट में जाने के लिए कहा। इससे रावण को लघुशंका आ गई। रावण शिवलिंग एक बालक को थमाकर स्वयं लघुशंका करने चला गया। रावण जब मूत्र त्याग करने के बाद लौटा तो देखा बालक ने शिवलिंग भूमि पर रख दिया है और वहां कोई नहीं है। शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया, रावण शिवलिंग लंका नहीं ले जा सका। यही शिवलिंग आज बैजनाथ धाम के नाम से जाना जाता है और यहां एक तालाब है, जिसका निर्माण रावण के मूत्र से हुआ है ऐसा माना जाता है। इस तालाब को स्थानीय लोग रावण पोखर कहते हैं। लोग इस पोखर में ना तो स्नान करते हैं ना इसके जल से पूजा-पाठ करते हैं।