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मध्य प्रदेश: माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी का, मध्य प्रदेश की “संस्कृति और कला के द्वार” ग्वालियर में आगमन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश के विभिन्न बस्तियों की अनोखी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाने वाली कला एवं शिल्प की प्रगति के लिए जरुरी कौशल विकास और प्रशिक्षण, का एक लम्बा इतिहास रहा है। प्रदेश में वर्षों पहले प्रवास हुए, जिनसे एक जगह से दूसरी जगह तक प्रतिभाओ का आदान-प्रदान हुआ, उदाहरण के लिए सिंध में लरकाना के खत्री, मध्य प्रदेश के मनावर में आए और बाग नगर में पहुंचे, जहां उन्होंने बाग प्रिंट विकसित किया, जो आज अपनी सुंदरता के लिए भारत तथा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह केवल एकमात्र उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसे कई प्रवासनों में से एक है, जिनके माध्यम से वर्तमान मध्य प्रदेश में कला एवं शिल्प का उत्तरोत्तर विकास संभव हुआ है। इन्ही क्षेत्रों में से एक है ग्वालियर शहर, जो पूर्व में रणनीतिक रूप से दक्षिणपथ के समृद्ध व्यापार मार्ग पर स्थित था, जो उत्तर में तक्षशिला तथा दक्षिण में कांचीपुरम से जुड़ा था, जहाँ उच्च गुणवत्ता वाली कला एवं शिल्प को विकसित करने के लिए अनुकूल वातावरण था।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं, वरन वास्तविकता है कि, समय के साथ-साथ ग्वालियर, संस्कृति और कला का प्रवेश द्वार बन गया है। प्राचीन युग से ही सिंधिया महाराजाओं एवं महारानियों ने, संस्कृति तथा संगीत के केंद्र के रूप में ग्वालियर की इस पहचान को लोकप्रिय बनाने के लिए गहन प्रयास किए हैं और ये प्रयास आज भी जारी हैं। हाल ही में भारत गणराज्य की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी की, सिंधिया संग्रहालय की यात्रा के दौरान, हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए बलिदान देने वाले सिंधिया मराठों के गौरवशाली इतिहास का चित्रण दिया गया और साथ ही ग्वालियर की भव्यता को दर्शाने के लिए, सिंधिया संग्रहालय में, मध्य प्रदेश का एक कलात्मक सूक्ष्म जगत भी दर्शाया गया था। इसके साथ-साथ दो पुस्तकें, पहली मेरे द्वारा लिखित “सिंधिया, स्वराज एंड मोर” तथा दूसरी “ए हिस्ट्री ऑफ पॉसिबल फ्यूचर्स” नामक पुस्तक, महामहिम महाराजा जीवाजीराव सिंधिया संग्रहालय द्वारा माननीय राष्ट्रपति को भेंट की गई जो श्रीमती गायत्री सिंह द्वारा संपादित तथा सुश्री शिवानी खनका द्वारा संकलित है।
माननीय राष्ट्रपति के सम्मान में, मध्य प्रदेश के युवाओं द्वारा कथक, भरतनाट्यम एवं निमाड़ी नृत्य के मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रदर्शनों के साथ, उज्जैन के बाटिक प्रिंट से लेकर वर्तमान के धार जिले के विख्यात बाग प्रिंट तक, पत्थर शिल्प से लेकर लकड़ी के काम तक, गोंड कला से लेकर ग्वालियर के कालीन तक तथा ऐसी कई कलाओं एवं शिल्पों का प्रदर्शन किया गया। इतना ही नहीं, ग्वालियर के प्रतिभाशाली बच्चों को माननीय राष्ट्रपति के साथ बातचीत करने और उनके ज्ञान तथा अनुभव से प्रेरणा प्राप्त करने का अवसर मिला। ये युवा भारत तथा मध्य प्रदेश के भविष्य के निर्माता हैं, जिसके लिए सिंधिया राजघराना लंबे समय से प्रतिबद्ध रहा है। राष्ट्रपति जी को, ग्वालियर के भूतपूर्व शाही परिवार की नारीवादी व्यवस्था से अवगत कराया गया तथा उन्होंने बहुत पहले से सिंधिया राजघराने द्वारा संरक्षित की जा रही ग्वालियर गायकी (संगीत) का आनंद भी लिया।
दरअसल ग्वालियर में कला और शिल्प को शाही संरक्षण की गाथा बहुत पुरानी रही है। सिंधिया शासक विभिन्न जातियों में कला के संरक्षण को बनाए रखने में अपने व्यापक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे, बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के हर समुदाय और जाति के लोगों और उनकी कला को मराठा राजवंश में जगह दी गई । सिंधिया महल का कारखाना प्रतिभाशाली लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता था, ग्वालियर से लेकर उज्जैन तक, मंदसौर से लेकर चंदेरी तक, गंगापुर से शिवपुरी और कई अन्य बस्तियों तक इस कारखाने ने रोजगार तो दिए ही, साथ ही युवाओं और महिलाओं की आकांक्षाओं को एक नयी दिशा भी दिलाई। सिंधिया कारखाने का आधुनिक रूप आज भी जीवित है, श्रीमती प्रियदर्शनी राजे सिंधिया की पहल ‘अरन्या’ के माध्यम से मध्य प्रदेश के शिल्प समुदाय को सशक्त करने का कार्य किया जा रहा है।
सिंधिया ने कला और शिल्प को संरक्षित करने के लिए दुनिया भर से विशेषज्ञों को बुलाया, अर्मेनियाई से लेकर फ्रांस तक, हर जगह से विशेषज्ञ आदि आए । श्री सरकिस कचदौरियन, एक जातीय अर्मेनियाई कलाकार जिन्होंने पुरे भारत में कला के बचाव के लिए अभूतपूर्व कार्य किया, उन्होंने सिंधिया राज्य के दौरान ‘मध्य भारत का अजंता’ माने जाने वाला ‘बाग’ क्षेत्र की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाओं की दीवारों पर सुंदर भित्तिचित्रों की खोज की। सिन्धियाओं ने 1913 में ही सिन्धिया राज्य में पुरातत्व विभाग की स्थापना की थी।
श्री काचदौरियन ने बाग में दीवार चित्रों की पूर्ण आकार की प्रतियां बनाने में दो महीने बिताए, इसमें पहले से ज्ञात तथा नवीन चित्र शामिल थे और उन्होंने बीमार होने के बावजूद भी अपना कार्य शानदार सफलता के साथ पूरा किया। वह इन प्रतियों को ग्वालियर ले आये, जिन्हें ग्वालियर मेला में प्रदर्शित किया गया, जिसे महाराजा सिंधिया द्वारा संरक्षित किया गया था।
उत्कृष्टता की नींव शिक्षा है और सिंधिया वास्तव में इसे बहुत अच्छी तरह से समझते थे। कपड़ा उद्योग के विकास के लिए, सिंधिया परिवार ने 1915 में चंदेरी और वर्तमान मध्य प्रदेश के मंदसौर और नरवर में कपड़ा संस्थान खोले, जिसके बहुत ही संतोषजनक परिणाम प्राप्त हुए। राज्य के औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को न केवल कुशल कर्मचारी प्राप्त हुए बल्कि बहुत से युवाओं ने छोटी-छोटी कार्यशालाएँ शुरू कीं, स्वतंत्र आजीविका अर्जित की और ‘आत्मनिर्भर’ बनें।
उसी वर्ष ग्वालियर के लश्कर क्षेत्र में सिंधिया राज्य द्वारा केन्द्रीय तकनीकी संस्थान स्थापित किया गया, जहाँ यांत्रिकी (mechanics), फिटिंग (fitting), बढ़ईगीरी (carpentry), बुनाई (weaving), प्रौद्योगिकी, हाथ से बुनाई और रंगाई, और छपाई जैसे प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शामिल थे। संस्थान ने शहर, लंदन के गिल्ड और बॉम्बे सरकार की ड्राइंग की परीक्षाएँ भी की थी।
यदि हम मध्य भारत में कला एवं शिल्प उद्योग की सफलता की गाथा का गहराई से विश्लेषण करें तो पाएंगे की इसका सिंधिया राज्य के साथ एक महत्वपूर्ण संबंध, जैसे चंदेरी बुनाई का विकास । मध्य प्रदेश, एक राज्य जो वास्तव में भारत का दिल है, वहां के सांस्कृतिक परिदृश्य को उभारने, इस से जुड़े अवसरों को बढ़ावा देने और ग्वालियर को विरासत एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार बनाने में सिंधिया परिवार का हमेशा एक अतुलनीय योगदान रहेगा।
तो आप मध्य प्रदेश की अपनी अगली यात्रा कब रहे हैं? अभी तय करें!
लेखक: श्री अरुणांश बी गोस्वामी द्वारा
प्रमुख, सिंधिया रिसर्च सेंटर
ग्वालियर 474009
Created On :   20 July 2023 12:39 AM IST