स्वास्थ्य/चिकित्सा: लाइफ के म्यूजिक को बैलेंस करती है 'क्रोमोथेरेपी', नींद न आए तो बस रंगों की दुनिया में खो जाएं, मिलेगा लाभ

लाइफ के म्यूजिक को बैलेंस करती है क्रोमोथेरेपी, नींद न आए तो बस रंगों की दुनिया में खो जाएं, मिलेगा लाभ
हर रंग कुछ कहता है। दिल दुख से भरा हो तो दुनिया बदरंग और अगर मन प्रसन्न हो तो पूरा माहौल रंग में सराबोर। ये रंग सिर्फ मूड बनाने या बिगाड़ने में ही नहीं बल्कि मीठी नींद सुलाने में भी मददगार साबित होते हैं। एक थेरेपी है जिसका चलन पिछले कुछ दशकों में खूब बढ़ा है और इस कलर थेरेपी को नाम दिया गया है क्रोमोथेरेपी। इसमें गुण बहुत सारे हैं और इसे ही लेकर आईएएनएस ने बात की आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्टर अशोक शर्मा से।

नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। हर रंग कुछ कहता है। दिल दुख से भरा हो तो दुनिया बदरंग और अगर मन प्रसन्न हो तो पूरा माहौल रंग में सराबोर। ये रंग सिर्फ मूड बनाने या बिगाड़ने में ही नहीं बल्कि मीठी नींद सुलाने में भी मददगार साबित होते हैं। एक थेरेपी है जिसका चलन पिछले कुछ दशकों में खूब बढ़ा है और इस कलर थेरेपी को नाम दिया गया है क्रोमोथेरेपी। इसमें गुण बहुत सारे हैं और इसे ही लेकर आईएएनएस ने बात की आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्टर अशोक शर्मा से।

रंगों का हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है। हल्के-फुल्के, गहरे-चटख या फिर फीके रंग एक कहानी कहते हैं। दिल के जज्बात की आपके जेहन की! रंगों के मर्म को सबसे पहले भारतीय मूल के दीनशाह पेस्टनजी घड़ियाली ने समझा। 1933 में 'द स्पैक्ट्रो क्रोमोमिटरी इनसाइकलोपिडिया' में इसकी जानकारी दी। चीन, भारत और मिस्र में रंगों के जरिए वैकल्पिक चिकित्सीय सुविधा की जानकारी बाद के रिसर्च में भी सामने आई। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के तौर पर इसका आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है।

डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया, हमारी जिंदगी रेनबो की तरह है, हमारे भाव अलग-अलग होते हैं, कभी खुश होते हैं, कभी दुखी होते हैं... कभी उमंग होता है तो बहुत रंग दिखते हैं और कभी दुखी होते हैं तो बदरंग हो जाती है। इस पर खूब रिसर्च हुई। रिसर्च किया गया कि रंगों की पहेली आखिर है क्या? फिर क्रोमोथेरेपी का जन्म हुआ जो नॉन इनवेसिव है। माइंड-बॉडी को रेगुलेट करता है, मतलब इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

डॉ. अशोक 'बॉडी ऑर्केस्ट्रा' के लिए इसे जरूरी मानते हैं। आखिर ये बॉडी ऑर्केस्ट्रा होता क्या है? डॉक्टर के मुताबिक ये मन, मस्तिष्क और आत्मा का संबंध है। कहने का मतलब ये कि ये बॉडी ऑर्केस्ट्रा के लिए जरूरी हैं। ये रंग हार्मोनी प्रदान करते हैं, ठीक हारमोनियम की तरह ये जिंदगी को सुरीला बना देते हैं।

मनोचिकित्सक के मुताबिक हर रंग का अपना महत्व है। यही वजह है कि वास्तु एक्सपर्ट्स को भी आपने अक्सर ये कहते सुना होगा कि दीवारों को हरे या नीले रंग में रंगें। वो इसलिए क्योंकि जब आप सोने के लिए आंखें बंद करते हैं तो जो आखिरी बार रंग देखा होता है वो दिमाग में छप जाता है। ये रंग आपके इमोशन्स को स्टिम्युलेट करते हैं। जैसे लाल आपको उत्तेजित कर सकता है। ये उत्साह का भी सूचक है, येलो सूदिंग है, ये सूरज की रोशनी और सकारात्मकता से जुड़ा है, तो वहीं नीला पानी का रंग है, शांत है और गहरी नींद में ले जाने का माद्दा रखता है। हरा प्रकृति का रंग है। ऐसा माना जाता है कि हरा रंग प्रकृति, शांति और स्वीकृति से जुड़ा है।

अगर दीवारें हरी-नीली न हों तो फिर क्या करें? डॉक्टर साहब कहते हैं, "ऐसी दशा में सोने से पहले आंखें मूंदें और उस रंग पर विचार करें। पाएंगे कि कुछ ही देर में आप पर इसका सकारात्मक असर जरूर होगा।"

क्रोमोथेरेपी के रूप में जानी जाने वाली रंग चिकित्सा इस विश्वास पर आधारित है कि हर रंग में अलग-अलग ऊर्जा होती है और वो आपकी भावनाओं और विचारों पर अच्छा खासा असर डाल सकते हैं।

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Created On :   22 March 2025 3:27 PM IST

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