बच्चों में खून की कमी - सबसे ज्यादा संख्या सिंगरौली में - दस्तक अभियान में सामने आए आंकड़े

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
बच्चों में खून की कमी - सबसे ज्यादा संख्या सिंगरौली में - दस्तक अभियान में सामने आए आंकड़े

डिजिटल डेस्क, सिंगरौली (वैढन)। सर्वे के मुताबिक जिले में अभी तक 912 बच्चे खून की कमी यानी एनिमिया से ग्रसित मिले हैं। ये सभी बच्चे 0 से 5 वर्ष तक की उम्र के हैं। यह बात इसलिये भी अहम है, क्योंकि यह चौकाने वाली बात स्वास्थ्य व्यवस्था के जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग के ताजा सर्वे में सामने आयी है। जिससे अब स्वास्थ्य महकमे से लेकर जिला प्रशासन तक सभी के होश उड़े हुये हैं। इससे भी गंभीर बात यह है कि एनिमिया के शिकार मासूमों के ये आंकड़े दस्तक अभियान के तहत कराये जा रहे सर्वे में सामने आये हैं और यह स्थिति गुरूवार-शुक्रवार तक की है। 10 जून से शुरू हुये दस्तक अभियान का सर्वे अभी 20 जुलाई तक चलना हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि खून की कमी से ग्रसित मासूमों का आंकड़ा करीब एक हजार के पार तक भी पहुंच सकता है। जो अपने आप में काफी गंभीर है। इससे ऊर्जाधानी की मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई भी खुलकर सामने आई है 

अब तक सिर्फ 15 को चढ़ाया गया ब्लड
जानकारी के अनुसार खून की कमी से जूझते जो मासूम मिले हैं। उनमें से अभी सिर्फ 15 को ही ब्लड चढ़ाया जा सका है। बाकी सभी के लिये खून व्यवस्था नहीं हो पायी है। जिससे फिलहाल स्वास्थ्य महकमा शेष बच्चों के लिये खून की व्यवस्था करने में जुटा है। 

जिला अस्पताल की नर्सें देंगी ब्लड
बताया जाता है कि दस्तक के सर्वे में मिले एनिमिया से ग्रसित जो बच्चे मिले हैं। उन्हें ब्लड नहीं मिल पाने की समस्या बनी हुई है। जिसे देखते हुये सीएमएचओ डॉ. आरपी पटेल ने जिला अस्पताल की नर्सों और अन्य स्टाफ से इसके चर्चा की। जिसमें नर्से और अन्य स्टाफ मासूमों के लिये ब्लड डोनेट करने को तैयार हो गया है। 

दस्तक में पहले क्यों नहीं मिले इतने एनिमिक
स्वास्थ्य विभाग भी मानता है कि खून की कमी से जूझते मासूमों की इतनी बड़ी संख्या जिले में पिछले कुछ वर्षो में पहली बार सामने आयी है। जबकि दस्तक अभियान कोई पहली बार नहीं, बल्कि इससे पहले भी जिले में चलाया जाता रहा है और लगभग मौजूदा टीम ही पहले भी सर्वे किया करती थी। लेकिन इस बार दस्तक अभियान को लेकर स्वास्थ्य महकमे के साथ कलेक्टर भी काफी तेजी से सक्रिय रहे। समय-समय पर मॉनिटरिंग करके रिपोर्ट लेते रहे। जिसका नतीजा बड़ी संख्या में एनिमिक बच्चों को चिन्हित किया जा सका। इन हालात में यह कहना गलत नहीं होगा कि पहले इस तरह के सर्वे को लेकर व्यापक स्तर पर लापरवाही की गई और मासूमों की जान को जोखिम में डाला गया। 

कैसे और कौन कर रहा सर्वे?
दस्तक अभियान में घर-घर सर्वे के लिये आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता और एएनएम की एक टीम सभी क्षेत्रों में बनाई गई हैं। इन्हें दस्त, निमोनिया, एनिमिया, सिस्पिेस केस, कुपोषण जैसी बीमारियों और ओआरएस वितरण, वजन नापने, हाथ धोना, स्तनपान, टीकाकरण जैसी सेवाओं में कुल 11 तरह के बिन्दुओं पर 0 से 5 वर्ष के बच्चों की रिपोर्ट तैयार करती हैं। 

पिछले साल तो सर्वे ही नहीं हुआ
बताया जाता है कि पिछले वर्ष तो दस्तक अभियान जिले में ढंग से शुरू ही नहीं हो पाया था, जिससे इसके तहत सर्वे ही नहीं हो पाया। इसकी वजह को लेकर बताया जाता है पिछले साल मीजेल्स-रूबेला को लेकर अभियान शुरू कर दिया गया था। जिससे प्रशासन का पूरा फोकस उस पर था। यानि, इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं लचर प्रशासनिक व्यवस्थाएं भी दस्तक जैसे प्रभावी अभियान के आगे बाधा बनती रहती हैं और कायदे से इसे लेकर प्रशासन को भी अच्छे से होमवर्क करने की जरूरत है। 

इनका कहना है
दस्तक अभियान में खून की कमी वाले जितने बच्चों को चिन्हित किया गया है। उन सभी को जिला अस्पताल में ब्लड चढ़वाया जाएगा। इनके लिये जिला अस्पताल की नर्सें व अन्य स्टाफ ब्लड डोनेट करेंगे। कोशिश है कि जल्द से जल्द ब्लड चढ़वाया जा सके।
- डॉ. आरपी पटेल, सीएमएचओ सिंगरौली
 

Created On :   13 July 2019 2:14 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story