मुआवजा लेकर बेच दी डेम के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन 

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
मुआवजा लेकर बेच दी डेम के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन 

डिजिटल डेस्क, कटनी/ढीमरखेड़ा। ढीमरखेड़ा तहसील में तीन दशक पहले बनाए गए सगौना जलाशय में भूमि नामांतरण को लेकर जल संसाधन विभाग और राजस्व विभाग की लापरवाही सामने आई है। भूमि का अधिग्रहण कर मुआवजा देने के बावजूद राजस्व रिकार्ड में डेम की जमीन विभाग के नाम पर दर्ज न होने का फायदा उठाते हुए किसानों ने इसे फिर से बेच दिया है। मामला तब उजागर हुआ जब जमीन खरीदने वाले किसान ने बही बनने के बाद क्रय भूमि का सीमांकन कराया। इसकी जानकारी जल संसाधन विभाग के कर्मचारियों को लगी और विभाग के कान खड़े हुए। 

35 साल पहले ले चुके मुआवजा
हासिल जानकारी के मुताबिक सगौना जलाशय का निर्माण 35 साल पहले सन 1984 कराया गया था। जिसके लिए जल संसाधन विभाग के द्वारा करीब डेढ सौ किसानों की भूमि अधिग्रहीत की गई थी। अधिग्रहीत भूमि अभी भी किसानों के वारसानों के नाम पर है। सन 1982 में कृषक भक्तिबाई पति रूपलाल गौड़ निवासी कोठी के खसरा नंबर 138/2 रकवा 2. 97 हेक्टेयर भूमि का मुआवजा का भुगतान कर दिया गया था लेकिन डेढ साल पहले भक्तिबाई के वारसान कृपाल सिंह धु्रवपाल सिंह वगैरहा ने उक्त अधिग्रहीत भूमि के नए बंदोबस्त खसरा 178 रकवा 2.73 हेक्टेयर भूमि को कूम्ही सतधारा निवासी शोभा रानी पति  बद्री प्रसाद कोल को विक्रय कर रजिस्ट्री कर दी। पटवारी और आरआई ने मौका मुआयना किए बिना भूमि का नामांतरण करते हुए बही बना दी है। 
 

सीमांकन में सामने आई घपलेबाजी
सगौना डेम के डूब क्षेत्र में आने वाली जमीन की खरीदी करने के बाद जब शोभारानी पति बद्रीप्रसाद ने सीमांकन कराया तब घपलेबाजी उजागर हुई। पटवारी रमेश झारिया व आरआई जालिम सिंह मार्को जब डेम के तल पर चैनेज स्टोन के भीतर जमीन की नापजोख कर रहे थ तभी लोगो के द्वारा इसकी जानकारी अमीन व उपयंत्री को दी गई। जिसके बाद उपयंत्री आर के परौहा और अमीन आर.बी.एस. धुर्वे ने मौके पर पहुंचकर आपत्ति दर्ज कराई। इस दौरान पंचनामा तैयार करते हुए उपयंत्री के द्वारा संबंधित किसान और पटवारी तथा आरआई को हिदायत दी गई। पंचनामा बनाने के बाद इसकी प्रति अनुविभागीय अधिकारी व कार्यपालन यंत्री जल संसाधन विभाग को भेजते हुए फर्जीवाड़ा कर जल संसाधन विभाग की भूमि बेचे जाने की बात कही गई। जिसके बाद विभाग ने भूमि के तबादले की कोशिशें शुरू की है। 
 

पूरी भूमि किसानों के नाम पर 
तीन दशक से पहले भूमि का मुआवजा देकर अधिग्रहण किए जाने के बावजूद अभी भी अधिग्रहीत भूमि किसानों और उनके वारसानों के नाम पर है। ऐसे करीब डेढ सौ किसानों को मुआवजा देने के बाद जल संसाधन विभाग के द्वारा अब तक इसका नामांतरण नहीं किया गया है। राजस्व विभाग के द्वारा भी आंख बंद कर बही बनाएं जाने से लापरवाही सामने आ रही है। यहां तक कि चैनेज स्टोन के भीतर सीमांकन किए जाने की स्थिति में भी राजस्व विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों ने विभाग को जानकारी देने मुनासिब नहीं समझा जो गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। 
 

पट्टे पर भूमि देता है विभाग
बताया जाता है कि जलाशय का पानी खाली होने पर जल संसाधन विभाग के द्वारा पानी से बाहर निकलने वाली भूमि को किसानों को रबी और ग्रीष्म मौसम में फसल बुवाई के लिए पट्टे पर देता है। हर वर्ष  जमीन पट्टे पर दी जाती है। विक्रय की गई जमीन भी पट्टे पर दी जा रही थी। मौका पाकर मुआवजा लेने वाली महिला कृषक के मुखास निवासी वारसानों के द्वारा जमीन बेच दी गई। 

इनका कहना है
भूमि का मुआवजा देने और अधिग्रहण कर नामांतरण कार्यवाही न होने के बारे में  जानकारी नहीं है। सीमांकन के दौरान पंचनामा बनाने के बाद इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों को दी गई है। राजस्व विभाग के अधिकारियों को भी इसकी जानकारी दे दी गई है।    
-आर.के. परौहा,जल संसाधन विभागं
 

Created On :   13 July 2019 5:38 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story