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Mumbai News: बीमारी से उबर रही तीरा, 6 हजार बच्चों में एक पैदाइश से स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी से होता है पीड़ित

- अमेरिका में उपलब्ध है इंजेक्शन
- 6 हजार बच्चों में से एक पैदाइश से स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी से होता है पीड़ित
- चार भाषाओं में करती है बात, अभिभावकों में खुशी
Mumbai News. अनुवांशिक बीमारी स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी (एसएमए) से पीड़ित बच्ची तीरा कामत अब स्वास्थ्य परेशानियों से उबरने लगी है। इस बीमारी से निजात दिलाने के लिए उसे 16 करोड़ रुपए का इंजेक्शन लगाया गया था। इसे चार साल हो गए और अब उसकी सेहत में व्यापक सुधार देखा जा रहा है। तीरा अब बिना किसी उपकरण के अपने दम पर सांस लेने और बोलने लगी है। तीरा के अभिभावकों का कहना है कि वह अंग्रेजी, हिंदी, मराठी और कोंकणी भाषा में बात करती है। बेटी की हालत में सुधार होता देख अभिभावकों के चेहरे पर भी मुस्कान है।
तीरा मिहिर कामत जब 6 महीने की थी तब उसमें स्पाीइनल मस्क्यु लर एट्रोफी नामक बीमारी का पता चला था। इसका इलाज जोलगेंसमा नामक इंजेक्शमन से ही संभव है। यह इंजेक्शन खासतौर पर अमेरिका से मंगाना पड़ता है और इसकी कीमत 16 करोड़ रुपए बैठती है। देश में आयात शुल्क के साथ यह आंकड़ा 22 करोड़ रुपए पहुंच जाता है। तीरा के माता-पिता ने उस समय क्राउडफंडिंग के जरिए इंजेक्शन की रकम जुटाई थी। बच्ची के माता-पिता की गुहार पर केंद्र सरकार ने इंजेक्शन पर लगनेवाले आयात शुल्क और कर की रकम करीब 6 करोड़ रुपए माफ कर दिया था। अमेरिका से आयात के बाद 27 फरवरी 2021 को यह इंजेक्शन तीरा को हिंदुजा अस्पताल में लगाया गया था। गुरुवार को इंजेक्शन दिए चार साल हो गए हैं।
स्वास्थ्य में सुधार
तीरा का इलाज कर रही पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीलू देसाई ने बताया कि बच्ची में काफी सुधार देखा जा रहा है। तीरा जब तीन साल की थी तब वह बिना उपकरण के ही अपने दम पर सांस लेने लगी थी। इतना ही नहीं वह खुद से उठ और बैठ सकती है। अब वह बोलने भी लगी है। उन्होंने कहा कि सिर्फ दवाई ही नहीं बल्कि इसमें ज्यादा देखभाल की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि तीरा के माता-पिता ने उसकी काफी देखभाल की। इसी के वजह से तीरा में बहुत सुधार आया है।
सुनहरे पल का था बेसब्री से इंतजार
तीरा की मां प्रियंका ने बताया कि वो अपनी बच्ची के ठीक होने के सुनहरे पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थीं। उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों से, वह इस दवा के साथ-साथ नियमित रूप से घर पर फिजियोथेरेपी और जांच के लिए अस्पताल ले जाती रही हैं। पिछले चार साल में तीरा की जिंदगी में काफी सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। अब वह हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और कोंकणी भाषा में बात भी करती है। तीरा के पिता मिहिर कामत कहते हैं कि इस दवा की वजह से तीरा में अच्छी प्रगति हो रही है।
देश में ही हो इंजेक्शन का उत्पादन
डॉ. नीलू ने बताया कि यह दवा बहुत महंगी है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को विचार करना चाहिए कि वे इन दवाओं का उत्पादन भारत मे ही कर सकें।जिससे बीमारी से पीड़ित बच्चों को कम दाम में यह दवा उपलब्ध हो सकेगी।
Created On :   28 Feb 2025 9:01 PM IST