यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह फेल हुए रूस के हथियार, देश की हिफाजत के लिए कितनी जरूरी है भारत और फ्रांस की दोस्ती
- रूस हमें जरूरत के मुताबिक हथियार नहीं दे पाएगा।
- फ्रांस भारत का एक महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदार भी है।
- भारत के रणनीतिक महत्व को समझने वाला पहला देश फ्रांस ही था।
डिजिटल डेस्क,नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के दौरे पर हैं। पीएम मोदी को फ्रांस ने देश के सर्वोच्च नागरिक और सैन्य सम्मान ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। नरेंद्र मोदी फ्रांस की ओर से यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। पीएम मोदी को यह सम्मान दिए जाने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, 'भारत के लोगों की ओर से इस अद्वितीय सम्मान के लिए धन्यवाद।'
वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट करते हुए इस पुरस्कार को भारत फ्रांस साझेदारी की भावना का गर्मजोशी से भरा प्रतीक बताया है।
आज यानि शुक्रवार को पीएम मोदी सम्मानित अथिति के रूप परेड़ में शामिल हुए। जो द्विपक्षीय संबंधो की गहराई और ताकत को दिखाने का मौका माना जा रहा था।
बता दें फ्रांस भारत का एक महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदार भी है। भारत और फ्रांस की दोस्ती काफी पुरानी है। एक समय था जब सभी बड़े देशों ने भारत का साथ देने से मना कर दिया था लेकिन फ्रांस भारत के साथ खड़ा था। फ्रांस की यह दोस्ती धीरे-धीरे और भी मजबूत होती गई। अब फ्रांस,रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश बन गया है।
लेकिन अब भारत और फ्रांस दोनों ही देश अपने रिश्तों को और भी मजबूत करना चाहते हैं यही वजह है कि भारत भी रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैन्य परमाणु सहयोग की रणनीतिक साझेदारी में फ्रांस के साथ और भी समझौते करना चाहता है। ऐसे में हमें यह समझना होगा की रूस से भारत सबसे ज्यादा हथियार खरीदता रहा है।
लेकिन फिर भी भारत रक्षा हथियार और विमानों को लेकर फ्रांस पर अधिक ध्यान दे रहा है जिसकी वजह क्या है? खास वजहों तक पहुंचने से पहले आइये समझते हैं फ्रांस और भारत के रिश्ते के बारे में।
फ्रांस और भारत की दोस्ती
भारत और फ्रांस दोनों ही देशों के बीच पारंपरिक रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। फ्रांसीसी विमान और हेलीकॉप्टर 1960 के दशक से ही भारतीय हवाई बेडे का हिस्सा रहे हैं। जिसमें ओरागन, माइस्टर, अलीज़, अलौएट, जगुआर आदि विमान शामिल थे।
1984 में अमेरिका ने तारापुर परमाणु संयंत्र के लिए परमाणु ईंधन की आपूर्ति करने वाले समझौते से घरेलू कानूनी बाधाओं का हवाला देते हुए अपने कदम पीछे कर लिए थे। तब फ्रांस ने परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए भारत की मदद की थी।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के शुरूआत से ही फ्रांस ने इसका समर्थन किया है। श्रीहरिकोटा लांच साइट स्थापित करने में भी फ्रांस ने भारत की मदद की है। यही नहीं 1970 के दशक नें सेंटोर और वाइकिंग रॉकेट प्रोद्योगिकियों को भी साझा किया। माना जाता है कि शीत युद्ध के वजह से संबंध बाधित भी हुए थे लेकिन इसके बावजूत शीत युद्ध के युग में पश्चिम में फ्रांस ही सबसे महत्वपूर्ण और विश्वनीय भागीदारों में से एक था।
बता दें साल 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद भारत के रणनीतिक महत्व को समझने वाला पहला देश फ्रांस ही था। फ्रांस और भारत दोनों ही देशों के बीच 1998 से ही रणनीतिक साझेदारी द्विपक्षीय संबंधों के साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर आपसी बातचीत और सहमति का दौर जारी हुआ।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक रूस में पूर्व राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा का कहना है 'फ्रांस ने भारत का साथ उस वक्त दिया था जब तमाम बड़े देशों ने भारत से मुंह मोड़ लिया था। फ्रांस के साथ साझेदारी यूरोप में भारत की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारी है'।
रूस की जगह भारत की निगाहें फ्रांस पर क्यों?
रूस,भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश है। दोनों देशों के बीच संबंध भी काफी मजबूत है इसका प्रमाण समय-समय पर दोनों ही देश देते रहे हैं। रूस,हमेशा से ही दुनिया के कई मंचों में भारत के साथ खड़ा रहा है। वहीं हाल ही में जब दुनिया भर के कई देश यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग को लेकर रूस को जिम्मेदार ठहरा रहे थे तब भारत रूस के साथ खड़ा था।
लेकिन भारत, फ्रांस से हथियार को लेकर अधिक आशावादी बन रहा है उसकी वजह है यूक्रेन-रूस यूद्ध में रूसी हथियारों की विश्वनीयता में सवाल उठाया जाना। साथ ही बीते कुछ सालों में रूस पर हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में भी अविश्वनीयता बढ़ी है। जिसका फायदा सीधे फ्रांस को मिला है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए दोनों ही देशों के पास रणनीति साझेदारी और अपने रिश्तों को और भी मजबूत करने का मौका है।
बता दें कि बीते साल ही फ्रांस के रक्षा मंत्री भारत दौरे पर आए हुए थे। उनके दौरे से पहले फ्रांस के रक्षा मंत्रालय के सलाहकार ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, 'हम वहां सैन्य उपकरण बेचने नहीं जा रहे हैं। हमारा लक्ष्य संबंधों के महत्व और गहराई से समझना है। हमारी यात्रा भारत के साथ "सद्भावना का संकेत" है। लेकिन भारत जिस तरह से दोनों तरफ से घिरा हुआ है, हम उन्हें दिखा सकते हैं कि दुश्मनों से निपटने के लिए रूसी हथियारों के बजाय यूरोपीय विकल्प मौजूद हैं'।फ्रांस का यह बयान ही भारत के प्रति उसकी सोच को बताने के लिए काफी है।
वहीं स्टिम्सन सेंटर के 2020 के एक अध्ययन की मानें तो भारतीय सशस्त्र बल 70 से 85 प्रतिशत रूसी उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। मोदी सरकार पहले से ही उस निर्भरता को कम करने पर विचार कर रही है। इडियन एक्सप्रेस की एक खबर की अनुसार भारतीय विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय सरकार स्मार्ट है। उनका मानना है कि सरकार अब यह समझ कर चल रही है कि रूस हमें जरूरत के मुताबिक हथियार नहीं दे पाएगा। वहीं यूक्रेनी सरकार की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि रूस के कई हथियार अप्रभावशाली हैं।
दुश्मन देश भी हथियारों से लेस
रूसी हथियारों की यूक्रेन में तबाही ने भारत की चिता इसलिए बढ़ा दी है क्योंकि भारत के दुश्मन देश भी हथियारों से लेस है। चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए भारत को ऐसे हथियारों की आवश्यकता है जो दुश्मन देशों को चकमा दे सके और दुश्मन के प्रहार से भी बच सकें। चीन ज्यादातर हथियार खुद तैयार करता है। चीन के पास भी कई घातक मिसाइलें हैं जो सुखोई को तबाह कर सकती हैं। वहीं पाकिस्तान के पास यूक्रेन की तरह ही अमेरिकी हथियार है जिसका प्रयोग वह दुश्मन देशों के साथ लड़ाई होने पर कर सकता है। पाकिस्तान की वायुसेना के पास भी अमेरिका की स्टिंगर मिसाइलें मौजूद है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारत को अब फिर से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। ऐसे समय में भारत के सामने फ्रांस ही विश्वसनीय विकल्प होगा।