विपक्षी एकता की बैठक से पहले बीएसपी बीजद और बीआरएस ने बनाई दूरी, क्या है वजह?

  • बीजेपी को हराने में विपक्ष की एकता
  • चुनावी तैयारी या अपना फायदा
  • कौन करेगा विपक्ष का नेतृत्व ?

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-12 12:57 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज से अगले 12 महीनों के भीतर पांच राज्यों के साथ देश की सियासी कुर्सी का फैसला होना है। ऐसे में पक्ष -विपक्ष अपने को मजबूत करने के लिए गठबंधन करने में जुट गए हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और आम चुनाव के चलते राजनैतिक पारा आसमान छू रहा है। केंद्र में बीजेपी की मोदी सरकार से मुकाबला करने के लिए तमाम विपक्षी दलों में एकजुट होने की कोशिशें तेज हो गई हैं। विपक्षी दलों ने एक होने के लिए 23 जून को बिहार के पटना में एक बड़ी बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस मीटिंग में ये तय होगा कि विपक्ष में कौन साथ आएगा और कौन नहीं। बैठक में गठबंधन की रूपरेखा तैयार हो सकती है। खबरों के मुताबिक विपक्ष की इस एकजुटता की बैठक में कांग्रेस, जेडीएस, राजद से लेकर टीएमसी, सपा, डीमके तक के नेता मौजूद रहेंगे।  पटना में आयोजित इस बैठक में पार्टियों के बीच सीट बंटवारे की भी चर्चा हो सकती है।साथ ही भाजपा को कैसा घेरा जाए इस पर भी मंथन हो सकता है.

विपक्ष के नेता अलग राजनैतिक विचारधारा से पैदा हुई पार्टियों को वैचारिक एकजुटता के जरिए एक करने की कोशिश में है। इसके लिए बिहार सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात भी की थी। अब सबसे बड़ा सवाल ये उपज रहा है कि विपक्षी एकता का नेतृत्व कौन करेगा। कोई नीतीश कुमार तो कोई शरद पवार का नाम ले रहा है। और खुद नीतीश कुमार अपने नेतृत्व की मनाई करते हुए कांग्रेस से अगुवाई करने को कह चुके है। ऐसे में कई छोटे दल नाराज हो सकते है।

नीतीश का मानना है कि बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के लिए केवल 100 सीटों पर हराना होगा। इसके लिए क्षेत्रीय पार्टियों को एक साथ लाना होगा। आपको यूपी की 80, बिहार की 40, बंगाल की 42,महाराष्ट्र की 48,दिल्ली की 7, पंजाब की 13, झारखंड की 14 लोकसभा सीटें शामिल हैं।

दूसरा सवाल आम चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर है, इसके लिए नीतीश का कहना है कि राज्य में जनाधार और दल के दबदबे से ये तय हो। इस तरह यूपी में समाजवादी, राजस्थान-छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश  में कांग्रेस, बिहार में आरजेडी और जेडीयू लीड कर सकती है। विवाद की स्थिति में आपस में बैठकर मसला हल किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि इस फॉर्मूले के दम पर विपक्ष 543 लोकसभा सीटों में से करीब 450 सीटों पर सीधे मुकाबले की तैयारी कर रहा है।

जिन मुद्दों पर हालफिलहाल विपक्षी नेताओं की एक राय है, उनमें जातीय जनगणना, जांचीय एजेंसियों का दुरूपयोग और अल्पसंख्यकों के मुद्दे शामिल है। इस वक्त सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर केसीआर, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक कई मामलों में फंसे हुए हैं। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर सभी दलों की राय एक है। सभी ने इसके खिलाफ सरकार पर हमला बोला है।

23 जून की बैठक के बाद सभी दल अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, हिंसा, भ्रष्टाचार मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरेंगे,और बड़े पैमाने पर रैलियां, जनसभा करेंगे। होंगी। विपक्षी बैठक में प्रधानमंत्री चेहरे को लेकर चर्चा हो सकती है। इसका अनुमान केंद्रीय ग्रहमंत्री अमित शाह के तमिल पीएम बयान से लगाया जा सकता है।

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने 67 वें जन्मदिन पर बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशों को तगड़ा झटका देते हुए कहा कि बीएसपी 2024 में अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ेगी। बीएसपी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और आम चुनाव में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री व भारत राष्ट्र समिति (BRS) के संस्थापक के चंद्रशेखर राव की पार्टी ने पटना बैठक से दूरी बना ली है। बीआरएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में बताया कि केसीआर ने हमेशा गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी मोर्चे की बात की है। यह बैठक उस मूल सिद्धांत के खिलाफ है जिसके लिए वह खड़े हैं।

2019 के आम चुनावों से पहले ही केसीआर और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक विपक्षी मोर्चा बनाने के लिए एक साथ आए थे। हालांकि उस समय उनको सफलता नहीं मिली थी।  उन्होंने जनवरी 2019 में सिर्फ एक रैली की थी। जिसमें कई विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। लेकिन खास कामयाबी नहीं मिली।  और बीजेपी की ताकत के आगे विपक्षी एकता की कवायद फेल हो गई थी।

ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल (बीजद) के अध्यक्ष नवीन पटनायक ने भी विपक्षी बैठक से दूरी बना ली है।  नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठक के तुरंत बाद पटनायक ने घोषणा की कि वह तीसरे मोर्चे में शामिल नहीं होंगे। पटनायक ने कहा उनकी पार्टी भाजपा और कांग्रेस दोनों से समान दूरी के सिद्धांत पर कायम हैं, इसलिए बीजद अगला चुनाव अकेले लड़ेगी। आपको बता दें 2009 में बीजद-बीजेपी गठबंधन सरकार के टूटने के बाद, नवीन पटनायक ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाए रखने का फैसला किया। 

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