रायसेन में 4 विधानसभा सीट, दो दलों में होता है मुकाबला, तीसरा कभी भी बिगाड़ सकता है गणित

  • सांची में बौद्ध स्तूप
  • भोजपुर में शिवलिंग

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-03 14:09 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में साल के आखिरी महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले है। इसके लिए राजनीतिक दलों ने तैयारियां तेज कर दी है। नेता जनता के बीच पहुंचकर उसका भरोसा जितने में जुटे है। भोपाल संभाग में पांच जिले भोपाल, रायसेन, राजगढ़, सीहोर, विदिशा जिला आते है। आज हम आपको रायसेन जिले में आने वाली विधानसभा सीटों और उनके चुनावी समीकरण के बारे में बताएंगे।

रायसेन में उदयपुरा, भोजपुर,सांची (अजा), सिलवानी सीट आती है। रायसेन जिला दो संसदीय क्षेत्र विदिशा और होशंगाबाद से संबंध रखता है। रायसेन में उदयपुरा, भोजपुर,सांची (अजा), सिलवानी सीटआती है। चार विधानसभा क्षेत्रों में से उदयपुरा विधानसभा क्षेत्र होशंगाबाद में और बाकी तीन विदिशा संसदीय क्षेत्र में आता है। रायसेन जिले की विधानसभा सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता है। इनके इर्द गिर्द ही रायसेन की राजनीति घूमती रहती है। तीसरा फ्रंट यहां पनप ही नहीं पाया। सिँधिया गुट के कांग्रेस से बीजेपी में आ जाने से बीजेपी पार्टी के पुराने नेताओं में नाराजगी साफ नजर आ रही है।

उदयपुरा विधानसभा सीट

चुनाव को लेकर उदयपुरा में चर्चाएं तेज है। उदयपुरा सीट पर अभी तक6 बार बीजेपी और 4 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच द्विपक्षीय मुकाबला देखने को मिलता है। सीट पर किरार समाज के वोटर सर्वाधिक है। उसके बाद एससी और ब्राह्मण मतदाता की तादाद ठीक ठाक है। जो चुनाव में हार जीत का फैसला करते है

2018 में कांग्रेस के देवेंद्र पटेल गदरवास

2013 में बीजेपी के रामकिशन पटेल

2008 में कांग्रेस के भगवान सिंह राजपूत

2003 में बीजेपी के रामपाल सिंह

1998 में बीजेपी के रामपाल सिंह

1993 में कांग्रेस के अग्नि चंद्रकर

1990 में बीजेपी के रामपाल सिंह

1985 में कांग्रेस के मकसूदनलाल चंद्राकर

1980 में बीजेपी के दिलीप सिंह

1977 में जेएनपी के गोवर्धन सिंह

भोजपुर विधानसभा सीट

महादेव की नगरी भोजपुर को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। यहां विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थित है। जिसे परमार राजा भाज ने बनवाया था। 1967 और 2003 को छोड़कर यहां से हर बार बीजेपी ने ही जीत दर्ज की है। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा लगातार तीन बार से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी को मात दे रहे है। मतदाताओं की बात की जाए तो सर्वाधिक मतदाता आदिवासी और अनुसूचित जनजाति के है। एसटी के करीब 70 हजार और एसटी के 40 हजार मतदाता है,दोनों ही वर्ग चुनाव में अहम भूमिका अदा करता है। 

2018 में बीजेपी के सुरेंद्र पटवा

2013 में बीजेपी के सुरेंद्र पटवा

2003 में कांग्रेस के राजेश पटेल

1998 में बीजेपी के सुंदरलाल पटवा

1993 में कांग्रेस के श्यामचरण शुक्ला

1990 में बीजेपी के सुंदरलाल पटवा

1985 में बीजेपी के पुनितराम साहू

1980 में बीजेपी के शालीग्राम

1977 में जेएनपी के पराब चंद लखमिचंद

सांची विधानसभा सीट

सांची विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता है, लेकिन तीसरा दल कभी भी यहां के चुनावी गणित को बिगाड़ सकता है। यहां लंबे समय से चौधरी और शेजवार की चुनाव जंग चल रही थी, जो अब शायद ही देखने को मिले।

2020 उपचुनाव में बीजेपी के डॉ प्रभुराम चौधरी

2018 में कांग्रेस के डॉ प्रभुराम सिंह

2013 में बीजेपी के डॉ गौरीशंकर शेजवार

2008 में कांग्रेस के डॉ प्रभुराम चौधरी

2003 में बीजेपी से डॉ गौरीशंकर शेजवार

1998 में बीजेपी से डॉ गौरीशंकर शेजवार

1993 में कांग्रेस से ओन्कर शाह

1990 में बीजेपी से गौरी शंकर शेजवार

1985 में कांग्रेस के ईश्वर सिंह

1980 में बीजेपी से गौरीशंकर

1977 में जेएनपी से गौरीशंकर

सिलवानी विधानसभा सीट

सिलवानी सीट परिसीमन के बाद 2008 विधानसभा चुनाव में अस्तित्व में आई थी। पिछले दो चुनावों से यहां से बीजेपी के रामपाल सिंह विधायक है। सिलवानी सीट अनुसूचित बाहुल्य सीट है। यहां एससी और एसटी वोट निर्णायक भूमिका में रहता है। दोनों समुदायों के करीब 80 हजार वोट है।

2018 में बीजेपी से रामपाल सिंह

2013 में बीजेपी से रामपाल सिंह

2008 में बीजेएसएच से देवेंद्र पटेल

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