पुरस्कार वापस लेना सरकार का गलत निर्णय: जोग

चंद्रपुर पुरस्कार वापस लेना सरकार का गलत निर्णय: जोग

Bhaskar Hindi
Update: 2022-12-19 07:57 GMT
पुरस्कार वापस लेना सरकार का गलत निर्णय: जोग

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। कोबाड गांधी के फ्रैक्चर फ्रिडम किताब को पुरस्कार घोषित कर बाद में उसे वापस लेने का सरकार का यह कृृत्य सर्वथा निषेधार्थ है। ऐसा करना सरकार को शोभा नहीं देता। पुरस्कार घोषित कर फिर वापस लेने का सिलसिला सरकार ने शुरू किया है। यह खेल बंद कर सरकार खुद अब यह पुरस्कार लेखक के घर जाकर सम्मानपूर्वक प्रदान करें, ऐसी मांग 68वें विदर्भ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा.वि.स.जोग ने की।

गोंडवाना विद्यापीठ, सर्वाेदय शिक्षण मंडल, सुर्यांश साहित्य व सांस्कृतिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी सभागृह में आयोजित 68वें विदर्भ साहित्य सम्मेलन का समापन रविवार शाम को हुआ। इस समय प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व मंत्री विजय वडेट्टीवार ने कहा कि, विदर्भ के साहित्यकारों ने महाराष्ट्र को दिशा दी है। भय के माहौल में साहित्यकारों को साहित्य के जरिए केवल सत्य सामने रखना चाहिए।  समापन के दौरान मंच पर अध्यक्ष जोग, पूर्व मंत्री वडेट्टीवार, स्वागताध्यक्ष कुलगुरु डा.प्रशांत बोकारे, प्र.कुलगुरु डा.श्रीराम कावले, प्रशांत पोटदुखे, डा.कीर्तिवर्धन दीक्षित, वि.सा.संघ के अध्यक्ष प्रदीप दाते, कार्याध्यक्ष डा.रवींद्र शोभणे, विलास मानेकर, केंद्रीय प्रतिनिधि श्याम मोहरकर, कार्याध्यक्ष प्रमोद काटकर, इरफान शेख, ग्रामीण कांग्रेस अध्यक्ष प्रकाश देवतले आदि उपस्थित थे। 

समापन अध्यक्षीय भाषण में डा.जोग ने राज्य सरकार पर प्रहार किया।
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवा सौ करोड़ जनता को बताया कि, किसानों के प्रश्न को लेकर हमारी गलती हुई। ऐसे ही राज्य सरकार नेे भी पुरस्कार वापस लेना गलती होने की बात स्वीकार लेनी चाहिए। वही साहित्यकारों द्वारा भी पुरस्कार वापस किए जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। इतिहास गलत तरीके से रखा जा रहा है। इतिहास उचित पद्धति से रखने का आग्रह सम्मेलन अध्यक्ष ने किया। 

पूर्व मंत्री वडेट्टीवार ने समापन भाषण में कहा कि, साहित्य सम्मेलन में राजनीति पर टिप्पणी किए बगैर सम्मेलन पूर्ण नहीं हो पाता। इस सम्मेलन के आयोजन में जो गलतियां हुईं, वह हो गई। लेकिन भविष्य में गलतियां पुन: न हो, इस ओर ध्यान देना चाहिए। साहित्यकार बूढ़े हो रहे हैं। उन्हें युवा करने की जरूरत है। तब ही देश खड़ा होगा। राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज साहित्य के गुरु है। जीवन कैसे जीना है, इसका संपूर्ण सार उन्होंने बताया है। इस बीच वर्तमान में महापुरुषाें का जो अपमान चल रहा है, उससे महापुरुषाें का नाम लेने में भी डर लगता है। आज की राजनीतिक परिस्थिति   में साहित्यकारों को दोनों ओर से मरना है। ऐसी स्थिति में साहित्कार बिना डरे साहित्य के जरिए सत्य रखे। डा.दीक्षित ने कहा कि साहित्यकारों को  सरकार की उपलब्धि  नहीं तो सरकार की कमी दिखाने का काम करना चाहिए। 
 

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