गड़चिरोली के इस गांव में नक्सली दहशत के बीच होगा मतदान
गड़चिरोली के इस गांव में नक्सली दहशत के बीच होगा मतदान
डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। जिले की सर्वाधिक नक्सल प्रभावित तहसीलों में एक एटापल्ली में नक्सलियों से आम जनता के साथ ही जनप्रतिनिधि भी डरे -सहमे हुए हैं। तहसील स्थित सुरजागढ़ की पहाड़ी के पास बसे जांभिया गांव और आस-पास के इलाके में नक्सलियों ने पोस्टर लगाकर लोगों से धमकी भरे लहजे में 11 अप्रैल को होने वाले मतदान का बहिष्कार करने की बात कही है। जिससे आलम ये है कि तहसील में किसी भी उम्मीदवार ने अब तक न तो चुनावी रैली की और न ही कोई लोगों से मतदान की अपील करने पहुंचा है। हालांकि इलाके के लोग मतदान के प्रति उत्साहित दिखाई देते हैं। उनसे बात करने पर उनकी जनप्रतिनिधियों से रोजगार के अवसर, स्थानीय संस्कृति के संरक्षण समेत अन्य उम्मीदें सामने आती हैं।
जीवनयापन के लिए वनोपज ही सहारा
तहसील में माढ़िया व गोंड समुदाय की जनसंख्या सर्वाधिक है, जिनकी अपनी-अपनी समस्याएं और मांगें हैं। क्षेत्र में फैली सुरजागढ़ पहाड़ी अरबों रुपए के लौह खनिज से लैस है। लेकिन स्थानीय लोग अपने जीवनयापन के लिए इस पहाड़ी के जंगल से प्राप्त होने वाले महुआ फूल, तेंदूपत्ता व अन्य वनोपज पर ही आश्रित हैं। घने जंगल में सड़क किनारे लोगों को 20 रुपए प्रति बोतल के हिसाब से ताड़ी बेचते भी देखा जा सकता है। लिहाजा अब पहाड़ी से सटे गांवों के लोगों को जनप्रतिनिधियों से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की आस है।
सुरजागढ़ प्रकल्प का विरोध
पहाड़ियों से उत्खनन करने के लिए 2008 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुरजागढ़ प्रकल्प की घोषणा की थी। लॉयड मेटल्स को टेंडर भी दिया गया था। लेकिन स्थानीय जनता और नक्सलवादी आज भी इस प्रकल्प का विरोध कर रहे हंै। आदिवासी कहते हैं कि पहाड़ी पर उनके आराध्य ठाकुरदेव के मंदिर में हर साल मेला भरता है। प्रकल्प के काम से इसमें बाधा आएगी। लोगों का यह भी कहना है कि उनके क्षेत्र से निकल रहे खनिजों को प्रोसेसिंग के लिए चंद्रपुर स्थित लॉयड मेटल्स की फैक्ट्री में ले जाया जाता है। यह फैक्ट्री उनके क्षेत्र में लगे तो उन्हें भी रोजगार मिलेगा। दो वर्ष पूर्व सुरजागढ़ से 80 किमी दूर कोनसरी में एक फैक्ट्री के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भूमिपूजन किया था। लेकिन इसका काम भी ठंडे बस्ते में हैं।
लोगों की मांग - संस्कृति की रक्षा हो, मिले रोजगार
स्थानीय लोगों के अनुसार विकास उनकी संस्कृति और जीवन शैली को तहस नहस करने वाला नहीं होना चाहिए। परसलगोंदी में ताड़ी बेच जीवनयापन करने वाले देऊ वेडदा कहते हैं- यदि उन्हें प्रकल्प में कोई काम मिले तो वे खुशी से करेंगे। प्रसाद दासरवार के अनुसार, स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलना चाहिए। चुनाव में रोजगार मुद्दा हो तो फिर चिंता ही क्या। वहीं जिला परिषद सदस्य सारिका प्रविण आईलवार कहती हैं- खनिज को बाहर भेजने से बेहतर यहीं फैक्ट्री डाल कर उसकी प्रोसेसिंग होनी चाहिए। कंपनी जो स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाने का दावा कर रही है वह सही नहीं है।