किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानी, नकद फसल हाथ से गई
अतिवृष्टि किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानी, नकद फसल हाथ से गई
डिजिटल डेसक्क, अमरावती। अगस्त से जारी अतिवृष्टि ने किसानों की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। लगातार चौथे वर्ष बारिश व अतिवृष्टि सेे सफेद सोना कहे जाने वाले कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है। स्थिति यह है कि अतिवृष्टि का शिकार हुई फसल अलग-अलग तरह के रोगों से जूझ रही है। इस कारण कपास की कीमतों में भी इस वर्ष काफी गिरावट देखी जा रही है। किसानों के खेतों से कपास निकलकर अब मंडियों तथा बाजारों तक पहुंचने लगा है, लेकिन गुणवत्ता में कमी के कारण इस वर्ष अपेक्षाकृत खरीददार नहीं मिल पा रहे हैं। जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। कपास नकदी आधारित फसल है। इसकी बिक्री से होने वाली आमदनी पर ही किसानों का जीवन गुजरता है। साथ ही रबी की बुअाई भी की जाती है, लेकिन इस बार कीमतों में आई भारी गिरावट से एक बार फिर किसानों को कर्ज का संकट सताने लगा है।
पूर्ण जिले में 2 लाख 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई की गई थी। इस वर्ष बेहतर बारिश की आस में किसानों ने हवाई क्षेत्र में इजाफा भी किया था, लेकिन इसका कोई फायदा किसानों को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि कृषि विभाग द्वारा अब तक एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार करीब 30 हजार हेक्टेयर कपास की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। बोंड इल्ली, फफूंदी के प्रकोप से हाथ लगनेवाली फसल नष्ट हो जाने से किसानों को काफी नुकसान हुआ है। कई किसानों के सामने इस बात को लेकर भी संकट है कि, उनकी लागत भी निकल पाएगी अथवा नहीं। इसके अलावा किसान खरीद के पहले दिए गए कर्ज को चुकाने के लिए भी चिंताग्रस्त दिखाई देने लगे हैं। गत वर्ष औसतन तौर पर एक हेक्टेयर जमीन पर कपास की पैदावार 714 किलो के करीब हुई थी। इस वर्ष मौसम अधिकतर समय अनुकूल रहने से किसानों को यह अपेक्षा थी कि, पैदावार में इजाफा होगा, लेकिन अतिवृष्टि ने किसानों की अपेक्षा पर पानी फेर दिया और इस वर्ष भी उन्हें बारिश के कारण भारी नुकसान हुआ है। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन कपास की गुणवत्ता कम हो जाने के कारण इस बार अधिकतर कपास न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं देखी जा सकेगी। इसकी चिंता भी किसानों में देखी जा रही है। मजबूरन किसान अपना कर्ज अदा करने और दीपावली पर्व मनाने अपना माल कम दाम में बाजार में बेचने पर मजबूर है। अब तक सरकारी खरीदारों ने खरीदी शुरू नहीं की है। कपास की गुणवत्ता कम होने के कारण किसान इसे संभालकर रखने के बजाए निजी खरीदारों के हाथों बेचते दिखाई दे रहे हैं।