समर्थन मूल्य ना मिलने पर किसान बंद कराएं मंडी- कृषि अर्थशास्त्री
समर्थन मूल्य ना मिलने पर किसान बंद कराएं मंडी- कृषि अर्थशास्त्री
डिजिटल डेस्क नरसिंहपुर । विचार मध्यप्रदेश एवं किसान संघर्ष समिति द्वारा पीजी कॉलेज आडीटोरियम में आयोजित किसान जनसंवाद कार्यक्रम में कृषि अर्थशास्त्री दिल्ली योगेन्द्र यादव ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान शासन द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से कम दाम पर अपनी उपज न बेंचे। यदि कृषि उपज मंडियों में समर्थन मूल्य से कम बोली लगती है तो किसान मंडी बंद कराये।उन्होंने कहा कि संघर्ष से नुकसान नही फायदा होता है। किसान को प्राकृतिक आपदा आदि से नुकसान नही है किसान लुट रहा है और इसकी वजह है सरकार की नीतियां, अब किसान आंदोलन एक नये मोड पर पहुंचा है इसमें किसानों की एकजुटता जरूरी है।
वादे से मुकर रही भाजपा
श्री यादव ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों का जिक्र करते हुए कहा कि सिफारिशे 2007 में लागू हो जाना थी। जिसमें फसल की सम्पूर्ण लागत का डेढ गुना दाम मिलने की सिफारिश की गई थी। कांग्रेस सरकार के दिया नही, भाजपा सुप्रीम कोर्ट में हल्फनामा देकर देने से साफ मना कर रही है। चुनाव के पूर्व भाजपा ने सिफारिश लागू करने का वायदा किया था सरकार में आने के बाद वह मुकर रही है।
किसान लेनदार है कर्जदार नही
उन्होंने कहा कि यदि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें 2007 में लागू हो जाती तो पिछले 10 सालो में किसानों के खाते में 20 लाख करोड़ रूपये अतिरिक्त आते वर्तमान समय में किसानों के ऊपर 14 लाख 4 हजार करोड का कर्ज है। यदि इसका अंतर निकाला जाए तो किसान कर्जदार नही बल्कि लेनदार है।हमारी शासन से मांग है कि किसानों को उसका पैसा दिला दो और इसके बाद जो तुम्हारा बनता है वह ले लो।
भावान्तर योजना किसानों के साथ धोखा
श्री यादव ने भावान्तर योजना को किसानों के साथ सबसे बड़ा धोखा बताया उन्होंने कहा कि इससे किसानों को कोई फायदा नही बल्कि उल्टा नुकसान हुआ है। उन्होंने फसल बीमा योजना को भी धोखा करार दिया।
किसान लुटे बाकी बढ़े उन्होंने कहा कि देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है इसका किसानों को कोई फायदा नही मिला। किसानों से खाद बीज बेचने वाले और आढ़तियों को तो बेजा फायदा हुआ लेकिन किसान जहां के तहां है।
किसानों को पांच तरह से नुकसान
श्री यादव ने विशेषण करते हुए कहा कि किसानों को पांच तरफ से नुकसान है। पहला वायदे से कम दाम मिलना, लागत से कम पर फसल बिकना, खर्च की तुलना में पैसा कम मिलना और समय के मान से लाभ न मिलना। उन्होंने कहा पिछले 50 साल में शासकीय सेवकों का वेतन ढाई सौ गुना तक बढ़ा है लेकिन किसान की आय 20 गुना ही हुई।