कभी बनते थे 50 हजार बैल, अह सिर्फ 4 हजार बना पा रहे, पहले 600 कारीगर थे, अब मात्र 50

कोरोना का कारोबार पर असर कभी बनते थे 50 हजार बैल, अह सिर्फ 4 हजार बना पा रहे, पहले 600 कारीगर थे, अब मात्र 50

Bhaskar Hindi
Update: 2021-09-03 06:04 GMT
कभी बनते थे 50 हजार बैल, अह सिर्फ 4 हजार बना पा रहे, पहले 600 कारीगर थे, अब मात्र 50

डिजिटल डेस्क,  नागपुर। कोरोना के चलते कई क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। किसी का रोजगार गया तो किसी का कारोबार बंद हो गया। ऐसे में लोगों ने दूसरे क्षेत्रों में अवसर तलाश कर रोजी-रोटी का जुगाड़ करना शुरू किया। इस चक्कर में कुछ का पारंपरिक कला से भी मोह छूट गया है। इसी महीने की 6 तारीख को महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण त्योहार पाेला मनाया जाएगा। पहले दिन बड़ा पोला और दूसरे दिन छोटा (तान्हा) पोला मनाया जाता है। छोटे पोले के दिन लकड़ी के बैलों की पूजा की जाती है। बाद में बच्चे उन्हें घुमाने ले जाते हैं। इसलिए हर साल लकड़ी के कारीगर बड़ी संख्या में लकड़ियों के बैल बनाते हैं। दिक्कत यह है कि नई पीढ़ी इस काम में दिलचस्पी नहीं ले रही है। पुराने कारीगर ही इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। 

एक समय पूरे विदर्भ में यहा से बैल भेजे जाते थे
15 साल पहले तक नागपुर जिले में लकड़ी के बैल बनाने वाले 600 कारीगर थे। अब इनकी संख्या केवल 50 रह गई है। एक समय था जब नागपुर से पूरे विदर्भ में लकड़ी के बैल निर्यात हुआ करते थे। हर साल 50 हजार से अधिक बैल तैयार किए जाते थे। अब केवल 4 हजार बैल ही बन पाते हैं। यहां अब भी दूसरे शहरों से होलसेल खरीदार आते हैं, लेकिन इनकी संख्या 15-20 होती है। पहले कम से कम 200 ग्राहक आते थे। इस बार शहर में 200 रुपए से लेकर 1.50 लाख रुपए तक के बैल बने हैं। 

इसलिए कम हो रहे कारीगरों की संख्या
पिछले कुछ सालों से यहां बड़े शहरों से मशीन से बनने वाले न्यूवूड नामक मटेरियल के बैल तैयार होकर आने लगे हैं। यह बैल लकड़ी के मुकाबले काफी सस्ते होते हैं। इस कारण लकड़ी के कारीगरों का रोजगार खत्म हो चुका है। वहीं फर्नीचर व अन्य लकड़ियों की सामग्री बनाने का काम खत्म हो चुका है। बड़ी कंपनियां और कारखानादारों ने इस काम को अपना लिया है। इनके सामने टिक पाना लकड़ी कारीगरों के लिए मुश्किल हो गया है।  

सीजन पर कोरोना की मार
कारीगरों ने बताया कि कोरोना के चलते उनके दो सीजन खराब हो गए हैं। पिछली बार आधे बैल नहीं बिके थे। इस साल भी बाहर के ग्राहक कम आ रहे हैं। स्थानीय लोगों में भी उत्साह कम है। पहले 15 दिन पहले से बैलों की खरीदारी हुआ करती थी, अब ग्राहक ही नहीं है।  कोरोना के कारण त्योहार का उत्साह खत्म हो चुका है। पहले छोटे पोले के लिए परिजन और बच्चे पहले से तैयारी करते थे, अब यह बात खत्म हो चुकी है। त्योहार अब आया-गया हो चुका है।

परंपरागत व्यवसाय से मोहभंग
लकड़ियों के बैल बनाना परंपरागत व्यवसाय है, लेकिन नई पीढ़ी को इस कला के प्रति रुचि नहीं रह गई है। वे पढ़-लिखकर दूसरे क्षेत्रों में रोजगार पा रहे हैं। इसलिए भविष्य में लकड़ी कारीगरों के हाथों से बने बैल नजर नहीं आएंगे।    -सुभाष बंडीवार, लकड़ी कारागीर
 

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