गांधी चिंतन केन्द्र जहां में पहुंचते हैं देश-विदेश के नामचीन लोग
गांधी चिंतन केन्द्र जहां में पहुंचते हैं देश-विदेश के नामचीन लोग
डिजिटल डेस्क कटनी। आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कटनी में जिस प्राथमिक शाला के प्रांगण में आम सभा को संबोधित करने आए थे वह अब गांधी चिंतन के रूप में देश विदेश में विख्यात है। वैसे तो यह शाला भी आम भवनों की तरह तरह ही थी किंतु यहां आए शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने इस जर्जर हो चुके भवन की मरम्मत कराकर यहां इसे चिंतन केंद्र के रूप में विकसित किया। इस केंद्र में गांधीजी से जुड़ा हुआ साहित्य उपलब्ध है ,साथ ही यहां की संस्कृति भी पूर्णरूपेण गांधीवादी ही है।
लोगों का मानना है कि यहां फर्श पर बैठकर जब वे गांधी चिंतन करते हैं तो उन्हें बड़ी ही शांति प्राप्त होती है । शांति के इन्हीं पलों को जीने के लिए लोग यहां खिंचे चले आते हैं । इस भवन के द्वार सभी के लिए खुले हैं और बिना किसी रोक-टोक के भवन के अनुशासन सीमा में हर कोई आकर यहां गांधी जी की इस विरासत को महसूस कर सकता है।
यहां पर सभी बराबर
स्कूल को तो जनपद शिक्षा केन्द्र बना दिया गया। लेकिन गांधीजी के सम्मान को बरकरार रखने की चुनौती शिक्षा विभाग के अधिकारियों के सामने रही। बीआरसी विवके दुबे बताते हैं कि पेंटर जब पोताई कर रहा था, तो सामने गांधी प्राथमिक शाला के बोर्ड की भी पोताई अंजाने में कर दी। इसके बाद तो मानों उनके जीवन का यह सबसे बड़ा दुखदायी क्षण रहा।
इसके बाद भवन के अंदर ही एक हॉल में गांधी चिंतन केन्द्र खोलने का मन बनाते हुए कदम आगे बढ़ाया, तो गांधी के सपनों को धरातल में उतारा गया। अब इस हाल में ही जनपद की बैठक होती है। जिसमें अधिकारी के साथ सभी लोग चटाई में ही बैठकर बैठक का आयोजन करते हैं। यहां पर अतिथियों के स्वागत के लिए फूल-माला नहीं बल्कि सूत का ही प्रयोग करते हैं।
इतिहास पर एक नजर
शहर के अंदर 1919 में अंग्रेजों के शासनकाल में हार्डिंग स्कूल की स्थापना की गई थी। आजादी दिलाने के दौरान राष्ट्रपिता कटनी पहुंचे थे। 1947 में आजादी मिलने के बाद इस स्कूल का नाम बापू के सम्मान में गांधी प्राथमिक शाला रख दिया गया। बच्चे कम होने के बाद 2013 में स्कूल को बंद करते हुए इसे पूरी तरह से खंडहर घोषित किया। बाद में यह भवन अतिक्रमण का शिकार हो गया। इस भवन पर बीआरसी विवेक दुबे की नजर पड़ी। जिसके बाद प्रशासनिक अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के बाद मामूली लागत से ही भवन को चकाचक बनाया गया।
तीन वर्ष में ही ख्याति
यह चिंतन केन्द्र तीन वर्ष के अंतराल में ही गांधीवादियों के बीच अपनी ख्याति बना चुका है। गांधी भवन भोपाल से दयाराम नामदेव इस केन्द्र में पहुंच चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आज तक देश-विदेश के जितने लोग भी इस केन्द्र में पहुंचे हैं, वे औचक ही पहुंचे हैं। स्वीडन से तीन विदेशी, आयकर भवन से आरके पालीवाल, देश के ख्याति प्राप्त डॉ.एस.एन सुब्बाराव और राजगोपाल पीवी जैसे के साथ और कई लोग इस केन्द्र में पहुंच चुके हैं।