जन अपेक्षाओं को जल्द पूरा करे सरकार : मोहन भागवत
जन अपेक्षाओं को जल्द पूरा करे सरकार : मोहन भागवत
डिजिटल डेस्क, नागपुर। आपसी फूट की राजनीति से बचने का आह्वान करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत ने कहा है कि सभी को देश धर्म की रक्षा के लिए मिलकर साथ चलना होगा। चुनाव को महज एक स्पर्धा मानते हुए कहा कि परिणाम आने के बाद किसी तरह का भेद नहीं रहना चाहिए। जीतने वाले जीत के गुमान व हारने वाले हार की भड़ास निकालने में लगे रहे, तो देश का नुकसान ही होगा। सरसंघचालक ने कहा कि अधूरी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए जनता ने जिस दल को दोबारा मौका दिया, उसकी सरकार को जल्द जन अपेक्षाओं को पूरा करना चाहिए।
कुर्सी मोह पर दो टूक
पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम पर कहा कि सभी को राष्ट्र चरित्र का ध्यान रखना चाहिए। ममता बैनर्जी का नाम लिए बगैर उन्हें नसीहत भी दी। उन्होंने कहा-केवल कुर्सी के मोह व कुर्सी प्राप्त नहीं होने की संभावना का सदमा किसी को इतना हिला सकता है...यह नहीं होना चाहिए। आपसी फूट का लाभ दूसरे उठाते रहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग के समापन कार्यक्रम में सरसंघचालक बोल रहे थे।
सरकार का दायित्व और भी बढ़ गया
रेशमबाग मैदान में आयोजित कार्यक्रम में प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के अलावा विविध क्षेत्रों के जाने-माने लोग उपस्थित थे। सरसंघचालक का संबोधन पूरी तरह से राजनीतिक घटनाक्रमों पर केंद्रित रहा। उन्होंने कहा, चुनाव में कोई चुनकर आता है कोई पराजित होता है। पिछली बार जो दल चुनकर आया था, वह अधिक शक्ति के साथ आगे आया है। चुनाव को लेकर महीने भर समाज में जो मंथन चला उसमें लगता है, समाज को सरकार का काम पसंद आया हो, लेकिन सरकार का दायित्व और भी बढ़ गया है। कार्यक्रम में विशेष आमंत्रित अतिथि चितरंजन महाराज (अगरतला), डॉ.कृष्णास्वामी (काेयंबटूर), श्रीनिवास (गोवा), कृष्ण गोपाल (बंगलुरु), श्रीरमेश (जालंधर), यशराज व युवराज (दिल्ली) उपस्थित थे। कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रशिक्षण वर्ग के सर्वाधिकारी अनिरुद्ध देशपांडे ने रखी।
सरसंघचालक की खास बातें
पश्चिम बंगाल पर
जो हो रहा है उसे रोकने का बंदोबस्त करना शासन प्रशासन का काम है। जनता नासमझ हो सकती है। राज्य दंड के कर्तव्य काे नहीं भूलना चाहिए। कानून व्यवस्था का व्यवहार स्थापित हो। हत्याओं का विरोध करनेवालों को बाहर के लोग व बंगाल में रहना है या नहीं यह कहना उचित नहीं है। ममता बैनर्जी का नाम लिए बिना कहा-शासन प्रशासन संभालनेवाले के पास समझ व अनुभव है। इतना ही नहीं, वह तो बहुत अनुभवी हैं। तपस्वी भी हैं। न्याय के लिए संघर्ष का भी अनुभव है। कानून के व्यवहार में चूक करनेवालों को कैसे राजा कह सकते हैं।
आरोपों की राजनीति पर
होली के आनंद में अभद्र व्यवहार भी होता है। होली जलने से रंग खेलने तक ही यह सीमित रहना चाहिए। बाद में उसको लोग पसंद नहीं करते हैं। चुनाव को लेकर भी ऐसी ही बात है। लेकिन कुछ लोग अभद्रता के रंग में डूबे रहते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। स्पर्धा के लिए समूह बनाए जाते हैं। लेकिन समूह में बंटे रहना ठीक नहीं हैं।
जनादेश पर
1952 से हर चुनाव में साफ हो रहा है कि जनता सीख रही है। स्वार्थ व भेद से ऊपर उठकर मतदान करती है। अब जनता को केवल प्रचार के माध्यम से भ्रमित नहीं किया जा सकता है।
नसीहत
संविधान सभा में बाबासाहब आंबेडकर की कही बात को मत भूलिए। आंबेडकर ने कहा था कि हमारे देश को दूसरे देश पराजित नहीं कर सकते हैं। आपसी भेद के कारण हम पर औरों ने राज किया। राष्ट्रीय चरित्र को कोई न भूले। 7 दशक में देश के पुरुषार्थ का नया प्रकरण शुरू हुआ है। देश बढ़ रहा है। हमारे बढ़ने को दूसरे देश सहन नहीं कर पाएंगे। हम बलवान हो रहे है, इसलिए वे मजबूरी में हमसे अच्छे संबंध जता रहे हैं। हमें सावधान रहने की आवश्यकता है। हमें कभी निरपेक्ष समर्थन नहीं मिला है। फूट का अवसर उनकाे दिया तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।