मेडिकल-डेंटल पीजी के एडमिशन में इस बार मराठा एसईबीसी आरक्षण नहीं

मेडिकल-डेंटल पीजी के एडमिशन में इस बार मराठा एसईबीसी आरक्षण नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2019-05-09 08:46 GMT
मेडिकल-डेंटल पीजी के एडमिशन में इस बार मराठा एसईबीसी आरक्षण नहीं

डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश के सर्वोच्च न्यायालय से महाराष्ट्र सरकार को तगड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर खंडपीठ के उस फैसले को कायम रखा है जिसमें नागपुर खंडपीठ ने शैक्षणिक सत्र 2019-20 की मेडिकल और डेंटल पीजी प्रवेश प्रक्रिया में मराठा आरक्षण को अवैध करार देते हुए प्रवेश सूची रद्द कर दी थी। अब राज्य सरकार को नए सिरे से प्रवेश प्रक्रिया आयोजित करनी होगी। सर्वोच्च न्यायालय से राज्य सरकार की याचिका खारिज हो गई है। डॉ. शिवानी रघुवंशी और डॉ. प्रांजलि चरडे ने हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि प्रदेश के विविध सरकारी और निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में पीजी पाठ्यक्रमों के लिए जारी प्रवेश प्रकिया में कई गड़बड़ियां हैं। आरोप थे कि प्रवेश प्रक्रिया में ओबीसी से ज्यादा सीटें मराठा वर्ग के सामाजिक और आर्थिक पिछड़े प्रवर्ग (एसईबीसी) के लिए दर्शाई गई हैं। 

दरअसल, मराठा समाज की मांग के बाद सरकार ने एसईबीसी प्रवर्ग के तहत 16 प्रतिशत आरक्षण घोषित किया है। इसके अनुसार, मेडिकल और डेंटल पीजी की सीटों पर आरक्षण तय किया गया। इसमें डेंटल के लिए निजी कॉलेजों में 383 सीटें हैं। इसमें से ओबीसी के लिए 36 और एसईबीसी के लिए 61 सीटें आरक्षित हैं। इसी तरह चिकित्सा (मेडिकल) पाठ्यकम के लिए उपलब्ध 461 सीटों में ओबीसी के लिए 45 सीटें और एसईबीसी के लिए 75 सीटें रखी गई हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, पीजी एडमिशन की प्रक्रिया मई 2018 में शुरू हो गई थी। तब मराठा समाज के लिए आरक्षण नहीं था। अब राज्य सरकार को दोनों अदालतों से झटका लगा है। 

सबूतों के अभाव में छूटे दहेज प्रताड़ना के आरोपी
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने दहेज प्रताड़ना और युवती को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के तीन आरोपियों को ठोस सबूतों के अभाव में बरी किया है। आरोपियों मंे देवेंद्र डोंगरे और उसके माता-पिता माधवराव और द्रोपदाबाई डोंगरे का समावेश था। सत्र न्यायालय ने उन्हें भादवि 304-बी, 306, 498-ए और अन्य के तहत दोषी मान कर सात साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने उनकी यह सजा रद्द कर दी। दरअसल,  देवेंद्र की 14 मई 2003 को वर्ष नामक युवती शादी हुई थी। शादी के बाद दोनों मंे संबंध अच्छे नहीं थे, आए दिन झगड़े हुआ करते थे। पुलिस में दर्ज प्रकरण के अनुसार, वर्षा जब भी अपने मायके जाती, परिजनों से ससुराल वालों की शिकायत करती। वर्षा के आरोप थे कि ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं। कभी बाइक, कभी सोना तो कभी पैसों की मांग करते। विवाह के पांच महीने बाद 16 दिसंबर 2003 को उसने कलह से तंग आकर जहर खाकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद वर्षा के पिता आनंदराव गजभिए ने तीनों के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। मामले में आरोपियों की ओर से एड.राजेंद्र डागा ने पक्ष रखा। 
 

 

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