धुंधकारी व गौकर्ण की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता 

शाहनगर धुंधकारी व गौकर्ण की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता 

Bhaskar Hindi
Update: 2023-02-06 11:39 GMT
धुंधकारी व गौकर्ण की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता 

डिजिटल डेस्क शाहनगर नि.प्र.। शाहनगर के सिमरी गांव स्थित हनुमान मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में कटनी के चनेहटा से पधारे   कथाव्यास अशोक चौबे के सानिध्य में यजमान राम किशन तिवारी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमति लक्ष्मी बाई तिवारी व परिवार सहित गांव के लोगों ने बैण्ड-बाजों के साथ शोभा यात्रा निकाली जो कथा परिसर हनुमान मंदिर में सम्पन्न हुई। रविवार को श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुये कथा व्यास अशोक चौबे ने गौकर्ण और धुंधकारी का वृतांत सुनाया। कथावाचक ने कथा में बताया कि तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहते थे। उनकी पत्नी का नाम धुंधुली था वह झगड़ालू किस्म की थी। संतान न होने के कारण वह परेशान रहते थे। बुढ़ापे में संतान का मुख देखने को नहीं मिलेगा तो पिंडदान कौन करेगा। आत्मदेव जी दुखी मन से आत्महत्या के लिए कुआं में कंूदने वाले थे तभी एक ऋषि ने उसे बचा लिया। ऋषि ने पूछा क्यों आत्महत्या करने जा रहे हो। इसके बाद ऋषि की बात को सुनकर आत्मदेव जी ने कहा ऋषिवर मेरे एक भी संतान नहीं है। इसके अलावा मैंने गाय पाल रखी है। गाय के भी संतान नहीं है इस कारण आत्महत्या करने का कदम उठाया। यह सुनकर ऋषि ने अपने थैले से फल निकालकर कहा कि तुम यह फल अपनी पत्नी को खिला देना इससे एक संतान की प्राप्ति होगी।

घर जाकर आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी को दिया लेकिन पत्नी ने सोचा कि अगर गर्भवती हो गई तो 9 महीने तक कहीं आने-जाने का मौका नहीं मिलेगा। अंतत उसने फल को नहीं खाया। एक दिन उसकी बहिन घर आई उसने सभी किस्सा बहिन को सुनाया। बहिन ने कहा मैं गर्भवती हूं प्रसव होने पर बच्चा तुम्हें दे दूंगी। तुम ये फल गाय को खिला दो। आत्मदेव की पत्नी ने अपनी बहिन की बातों में आकर फल गाय को खिला दिया। कुछ दिन के बाद धुंधुली को उसकी बहिन ने बच्चा दे दिया। इसके बाद संतान को देखकर आत्मदेव बड़ा खुश हुआ। बच्चे का नाम एक विद्वान पंडित ने धुंधकारी रख दिया। इसके बाद गाय ने भी एक बच्चे को जन्म दिया जो मनुष्याकार था पर उसके कान गाय के समान थे उसका नाम गोकर्ण रख दिया। गोकर्ण और धुंधकारी दोनों गुरुकुल गए। गुरुकुल में अपना कार्य खुद करना पड़ता है। इस बीच धुंधकारी नशेड़ी चोर निकल गया। एक दिन उसने अपनी माता को मार डाला। पिता व्यथित होकर वन चले गए। धुंधकारी वेश्याओं के साथ रहने लगा। वेश्याओं ने एक दिन धुंधकारी को मार डाला। मरने के बाद धुंधकारी भूत-प्रेत बन गया। धुंधकारी का भाई अपने घर में सोया रहता था तभी प्रेत धुंधकारी ने आवाज लगाई कि भाई मुझे इस योनि से छुड़ाओ। गौकर्ण त्रिकाल संध्या की पूजा करते थे। तभी सूर्यनारायण भगवान से पूछते हैं कि इसके लिए क्या उपाय करना पड़ेगा। सूर्यनारायण ने कहा कि तुम सात गांठ बांस मंगाओ और भागवत का आयोजन करो। हर दिन बांस की गांठ धीरे-धीरे फट जाती है जो सात दिन फटती है। तब पवित्र होकर धुंधकारी एक दिव्य रूप धारण करके सामने खड़ा हो जाता है। कथा सुनकर सभी श्रोता भाव विभोर हो गये। कथा के उपरांत श्रीमदभागवत की आरती उतारकर महाप्रसाद का वितरण किया गया।  

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