सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के सशक्तीकरण के लिए ठोस कदम उठाए सरकार
वर्चुअल संवाद सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के सशक्तीकरण के लिए ठोस कदम उठाए सरकार
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। पूर्व विदेश सचिव एवं काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के अध्यक्ष मुचकुंद दुबे ने कहा कि सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के सशक्तीकरण के लिए सरकार ने तत्काल ठोस कदम उठाने चाहिए। कोरोना काल में बच्चों की पढाई पर हुए भयावह असर को रेखांकित करते उन्होंने कहा कि सभी विकसित देश अब बच्चों को स्कूल भेजने को प्राथमिकता दे रहे हैं, ताकि देश को हो रहे जबरदस्त नुकसान से बचा जा सके। लिहाजा हमें भी यथाशीघ्र पूर्ण सुरक्षा उपायों के साथ बच्चों को स्कूल भेजने का निर्णय करना चाहिए।
राइट टू एजुकेशन फोरम की ओर से बच्चों की स्कूली शिक्षा एवं कोविड-19 की चुनौतियां के संदर्भ में सासंदों के साथ एक वर्चुअल संवाद आयोजित किया गया था। अपने संबोधन में पूर्व विदेश सचिव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक की स्कूल शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लक्ष्य को हासिल करने की भले ही सिफारिश की है, लेकिन इसे कानूनी दायरे में लाए बगैर यह कतई संभव नहीं है। उन्होंने सरकार पर शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई एक्ट) की निरंतर अवहेलना करने का भी आरोप लगाया। कहा कि बच्चों के अधिकारों के प्रति सरकार की जो प्रतिबद्धता है वह निश्चित समय सीमा के अंतर्गत कानून द्वारा लागू की जानी चाहिए।
वर्चुअल संवाद में शामिल कांग्रेस के सांसद प्रदीप टम्टा, डॉ मोहम्मद जावेद, सपा के विशंभरप्रसाद निषाद और सपा के ही पूर्व सांसद रवि प्रकाश वर्मा, राज्यसभा सांसद मनोज झा, बसपा के सांसद कुंवर दानिश अली और राम शिरोमणि वर्मा ने अपने संबोधन में बच्चों की शिक्षा की मौजूदा स्थिति को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। फोरम द्वारा पेश 13 सूत्री मांगों पर सभी सांसदों ने एक स्वर में अफसोस जताया कि जब शिक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए अतिरिक्त वित्तीय जरुरत थी, तब वर्ष 2021 में शिक्षा के राष्ट्रीय बजट में भारी कटौती की गई। सांसदों ने इस आशंका पर गहरी चिंता व्यक्त की है कि कोरोना की पहली लहर के बाद अतिरिक्त सहायता नहीं मिलने की स्थिति में भारत के ग्रामीण इलाकों के 64 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट गई है।
राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय समन्वयक मित्ररंजन ने डिजिटल विभाजन के कारण शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती नई गैरबराबरी को चिंताजनक बताया। उन्होंने कहा कि इसने 80 फीसदी बच्चों के शिक्षा की पहुंच से बाहर हो जाने का खतरा पैदा कर दिया है जबकि पहले से ही सामाजिक, आर्थिक, लैंगिक एवं अन्य स्तरों पर कई असमानताएं व्याप्त हैं। उन्होंने एक अनुमान का हवाला देते हुए कहा कि स्कूल लॉकडाउन की वजह से भारत को भविष्य में होने वाली 400 बिलियन डॉलर की कमाई का नुकसान उठाना होगा, जो देश के लिए बड़ी क्षति होगी।