कृषि प्रधान देश में अन्नदाता ही उपेक्षित
समर्थन मूल्य कम, लागत ज्यादा कृषि प्रधान देश में अन्नदाता ही उपेक्षित
डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। कृषि का सारा दारोमदार कृषकों के कंधों पर टिका हुआ है। इसके लिए किसान सुबह से शाम तक खेतों में जी तोड़ मेहनत करते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि, दूसरों का पेट भरने वाले अन्नदाता किसान को ही अपना पेट भरने के लिए दो जून की रोटी नसीब नहीं हो पाती है। किसानों के हित में सिर्फ बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया जाता। दिन प्रतिदिन खेती घाटे का सौदा साबित होती जा रही है। वर्तमान स्थिति में किसान खेतों में अपने श्रम को छोड़कर जो पूंजी लगाता है, वही निकल आए तो बड़ी बात होती है। लाभ तो दूर की बात है। सिंचाई के साधनों की समस्या और बीजों व उर्वरकों के आसमान छूते दामों ने तो किसानों की कमर ही तोड़ कर रख दी है। प्राकृतक आपदाओं की मार भी इन किसानों को झेलनी पड़ती है। कभी अत्यधिक बारिश तो कभी बारिश की कमी से फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। प्राकृतिक आपदा आने पर किसानों की सबसे अधिक फजीहत होती है। किसानों को उतना मुआवजा नहीं मिल पाता है। जितना कि उनका नुकसान होता है। राज्य के अंतिम छोर पर बसे आदिवासी बहुल तथा नक्सल प्रभावित गड़चिरोली जिले को धान उत्पादक जिले के रूप में पहचना जाता है। जिले के 75 प्रतिशत लोग खेती व्यवसाय कर अपने परिवार का गुजरबसर करते हैं, लेकिन उत्पादन खर्च की तुलना में समर्थन मूल्य कम होने से किसानों का खेती व्यवसाय से मोहभंग होते दिखाई दे रहा है। फसलों के उत्पादन के लिए खर्च की पूंजी निकालना मुश्किल होने से खेती क्यों करें। इससे अच्छा मजदूरी करना ही ठीक। यह सवाल किसानों द्वारा किया जा रहा है। प्रति एकड़ धान फसलों का उत्पादन लेने करीब 22 हजार रुपए खर्च होता है। खर्च की राशि समेत लाभ मिले। इसके लिए धान को प्रति क्विंटल 3 हजार से 3 हजार 200 रुपए तक समर्थन मूल्य मिलना आवश्यक है। बेमौसम बारिश, फसलों पर कीटों का प्रकोप से इस वर्ष धान फसलों का उत्पादन कम हुआ है। वहीं धान खरीदी केंद्र पर (अ) ग्रेट धान को 2060 रुपए तथा (ब) ग्रेट धान को 2024 रुपए समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। इससे किसानों को उत्पादन खर्च निकालना मुश्किल हो गया है।