वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में इटली जाएंगी नागपुर की उड़न परियां
वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में इटली जाएंगी नागपुर की उड़न परियां
डिजिटल डेस्क, नागपुर। वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में इटली में देश का प्रतिनिधित्व करने नागपुर की उड़न परियां भाग लेने जा रही हैं। जिससे नागपुर शहर केवल ऑरेंज सिटी के नाम से ही नहीं अब एथलीट में भी पहचान बना रहा है। एशियाड गेम्स और ओलंपिक में भी सबसे ज्यादा एथलीट यहीं से क्वालिफाइड हुए हैं। देशभर में सबसे ज्यादा एथलीट विदर्भ और नागपुर से निकलते हैं। वर्तमान में एथलेटिक्स में शहर की बेटियां ही नाम रोशन कर रही हैं। शहर की तीन बेटियां जुलाई में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में इटली जाने वाली हैं। तीनों अलग-अलग वर्ग में भाग लेंगी।
जलवायु का भी असर
विदर्भ और नागपुर की जलवायु ने भी एथलीट्स तैयार किए हैं। हर क्षेत्र की जलवायु के अनुसार खेल में वहां से ज्यादा खिलाड़ी जाते हैं। बंगाल केरला और अन्य समुद्र तट से लगे राज्यों से स्विमिंग और स्प्रिंट के खिलाड़ी, हरियाणा पंजाब से हॉकी और फुटबॉल के खिलाड़ी ज्यादा होते हैं। इसी तरह नागपुर और नाशिक से ही सबसे ज्यादा एथलीट खिलाड़ी निकलते हैं। नागपुर और आसपास के क्षेत्र की जलवायु एथलीट्स के अनुरूप है जो उन्हें ज्यादा बेहतर बनाती है। नागपुर डिस्ट्रिक्ट में आज 4000 रजिस्टर्ड एथलीट हैं।
काॅर्पोरेशन और अन्य शासकीय विद्यालयों के बच्चे ज्यादा मेडल लाते हैं
एथलेटिक्स में लड़के कम क्वालिफाइड हो रहे हैं क्योंकि आज हर कोई जाॅब करना चाहता है। इसलिए लड़कियां आगे आ रही हैं। सीबीएसई, मार्डन और अंग्रेजी स्कूलों में से भी कई खिलाड़ी आते हैं लेकिन उनका मेडल अचीवमेंट केवल 2 प्रतिशत आता है। इसकी तुलना में काॅर्पोरेशन और अन्य शासकीय विद्यालय के विद्यार्थियों की संख्या कम होती है लेकिन मेडल अचीवमेंट 68 प्रतिशत होता है।
पुणे में पांच, शहर में एक ट्रैक
नागपुर शहर एथलेटिक्स खिलाड़ियों का गढ़ है बावजूद इसके शहर में पर्याप्त सुविधा नहीं है। पुणे में एथलीट्स के लिए 5 सिंथेटिक ट्रैक हैं, लेकिन यहां केवल एक ही ट्रैक है। वह भी कुछ दिनों पहले उखड़ गया था। स्टीपल चेज की कोई सुविधा नहीं है। बांस के डंडे की कैंची बना कर बाधा बनाते है और उन्हीं पर प्रैरेक्टिस करते हैं। यदि खिलाड़ियों को और सुविधा मिल जाए तो एथलेटिक्स में सबसे ज्यादा मेडल भारत को ही मिलेंगे।
तीनों पहले मैराथॉन करती थी
इटली जाने वाली ज्योति चौहान से एक साक्षात्कार। उन्हांेने बताया कि तीनों लड़कियां वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। तीनों पहले मैराथन करती थीं, लेकिन अब तीनों अलग-अलग कैटेगरी में जाएंगी, जिससे तीनों क्वालिफाइड हो सके। साथ ही तीनों लड़कियाें ने बिना किसी की सहायता और स्पॉन्सरशिप के इतना लंबा सफर तया किया है।
जानिए क्या तमन्ना है इनकी
मेरी उम्र 24 वर्ष है। मेरे पिता एक मजदूर है और मां घर पर रहती है। मेरी परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मैं हिंगना के पंचशील नगर के झोपड़पट्टी क्षेत्र में रहती हूं जो फाॅरेस्ट विभाग की जमीन पर है कई बार घर हटाने के नोटिस भी आते हैं । हमारे घर में आज भी बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। घर के बाहर कच्चा रोड है। पानी के लिए कई किमी चल कर जाना पड़ता है। मैंने एथलेटिक्स को कैरियर के रूप में चुना है। लोकल लेवल पर हर टूर्नामेंट मंे भाग लेती हूं और उसी की प्राइजमनी से अपना खर्चा और घर में भी मदद करती हूं। ज्योति चौहान पिछले वर्ष आल इंडिया यूनिवर्सिटी में स्टीपल चेस मंे 10 मिनट 30 सेकंड का नेशनल रिकार्ड बनाया था। (ज्योति चौहान)
प्राजक्ता की उम्र 21 वर्ष है। उन्होंने बताया कि मेरे पिता पेरेलाइज्ड हैं अौर मां कैटरिंग का काम करती हैं। मैं अभी बीए प्रथम वर्ष में हूं। मैं पिछले 7-8 सालों से प्रैरेक्टिस कर रही हूं। इसके बीच मैंने लोकल लेवल पर कई मेडल और प्राइजमनी जीती है। मैंने स्टेट लेवल पर एक गोल्ड और नेशनल लेवल में बेस्ट ऑफ फाइव में सिलेक्ट हुई थी। पहले परिवार वाले भी इस यह सब करने से रोकते थे। बाद में उन्होंने भी सपोर्ट करना शुरू किया। आज मेरे माता-पिता सभी को गर्व से बोलते हैं कि मेरी बेटी को मेडल मिला है और विदेश जाने वाली है। (प्राजक्ता गोडबोले)
मेरे पिता वेटर हैं और मां हाउसवाइफ हैं। मैं लगातार 8 सालों से प्रैक्टिस कर रही हूं। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पहले बहुत समस्या आती थी, लेकिन बाद में प्राइजमनी से आगे का सफर तय किया। मैं अभी बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही हूं। स्पोटर्स में हाेने के कारण कॉलेज में एक्सट्रा मार्क्स मिल जाते हैं। मैं 5000, 10000 और 21 किमी कैटेगरी में खेलती हूं। मुझे आल इंडिया टूर्नामेंट में ब्रांज मिला था। और अगले एशियाड गेम्स में एथलेटिक्स में यह भी क्वालिफाइड करूंगी। (निकिता राउत)